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________________ किरण ८] अतिशयक्षेत्र श्रीकुण्डलपुरजी [ ३२३ नीचे भी रखे हैं। गण सरस्वती भनाविद्याधीश आचार्य श्रीसुरेन्द्रकीर्ति___इतिहासकारोके सम्मुख एक बड़ी पहेली यह है जी कुन्दस्वामी कुन्दकुन्दाचायके वंशज अपने शिष्यों कि श्राग्विर ऐसी कौनसी बात छठवीं शताब्दीमें या सहित इस स्थानपर दर्शन हेतु पधार । बड़े बाबाके इसके पूर्व यहॉपर घटित हुई जिसके कारण यहाँ बड़े दशनसे वे बड़े प्रभावित हुए और उनके शिष्य श्री बाबाकी ऐसी विशाल प्रतिमाका निर्माण हुआ। ध्यान सुचन्दगणिजीने मन्दिरके जीर्णोद्धारके हेतु भिक्षा रहे कि इस कालमे इस स्थानपर गुप्तशासकोंका मॉगनेकी आज्ञा गुरुसे ली । आप मन्दिरजीका शासन था जो जैनधर्मानुयायी भी थे। कुछ इतिहास- कुछ हिस्सा ही बनवा पाये थे कि दैवदुर्विपाकसे कार' मानते है कि यह वही कुण्डलपुर नामक स्थान है आपकी आयु पूर्ण होगई तब उनके सच्चे मित्र जहाँसे अन्तिम श्रु तकेवली श्रीधर स्वामी मोक्ष गये थे नमिसागरजी ब्रह्मचाराने इस अधूरे कार्यका पूर्ण और इसलिये यह निर्वाणभूमि हानेके कारण करनेका बीड़ा उठाया। प्राचीन कालसे ही इस तरह पूज्यनीय बना चला इसी समय बुन्देलखण्डगौरव शूर-वीर-सम्राट औरहा । खैर बात जो भी हो, परन्तु निर्णय या क्षत्रसाल मुगल-आततायिया द्वारा सताए हुये अपनी अधिकारपूर्वक तभी कुछ कहा जा सकता है जबकि राजधानी पन्ना छोड़कर मार-मार इधर-उधर सहायता जैन विद्वान भी इस विषयपर एकमत हो। इस क्षेत्रकी और अपना राज्य वापिस लेनेके प्रयत्नमे फिर रहे बुन्देल-शासकांके कालमें अधिक उन्नति हुई. यह थे। मनुष्यका जहाँ वश नहीं चलता वहाँ वह अपनेबात निर्विवाद सिद्ध है और इसके प्रमाणस्वरूप बड़े को भगवानके बलपर छोड़ देता है। यही हाल महाबाबाके प्रवेश-द्वारपर लगा शिलालेख अब भी राजाधिराज क्षत्रसालका हुआ। वे बड़े बाबाके दरविद्यमान है। बारमे आए। नमिसागरजी ब्रह्मचारीसे उनकी भेंट सैकडो वर्षकी धूप और वर्षाने बड़े बाबाके मन्दिर हुई। ब्रह्मचाराजाने उनके सामने भी मन्दिरजीकी को न मालूम कब जीर्ण-शीर्ण बना दिया और वह मरम्मतके लिय हाथ फैला दिय। परन्तु सम्राट ढहकर एक टोलेका रूप धारण कर चूका जिससे लोग लाचार थे। वे खुद ही विपत्तिके मारे फिर रहे थे। उसे मन्दिर-टीला नामसे सम्बोधित करने लगे। तो भी सम्राट्ने साहस बटार कर प्रतिज्ञा की कि यदि उस टीलेमे बड़े बाबा पूर्ण सुरक्षित और अखण्ड बने मै पुनः अपना राज्य वापिस पाऊँ तो इस मन्दिरजीरहे । मन्दिर-टीला नाम शिलालेखमें मिलता है। का जीर्णोद्धार कोषकी तरफसे करा दूंगा। ___ इस प्रकार बड़े बाबाकी वह कीर्ति और यश कुछ आप इसे अतिशय कहिये या सम्राट्का पुण्यो दय कि उन्हें फिरसे अपना राज्य वापिस मिल गया। समयके लिये आलोप-सा हो गया। उस स्थानपर वे अपनी प्रतिज्ञा नहीं भूले और शाही-कोषसे मन्दिरभीहड़ झाड़ियो वृक्षों और जङ्गली पशुओका निवास जीका जीर्णोद्धार कार्य शुरू होगया। साथ ही मध्यहोजानेसे मनुष्यका गमन ही बन्द-सा हो गया। हाँ, स्थित तालाबके चारो ओर घाट बनवाए जाने लगे। कुछ लोग यह जानते रहे कि अमुक प्राममें मन्दिर संवत् १७५७ मघा नक्षत्र माघ सुदी १५ सोमवारको टीले नामक स्थानपर एक विशाल जैन प्रतिमा मौजूद . जीर्णोद्वार कार्य पूर्ण हुआ। है। इस प्रकार यह प्राचीन मन्दिर करीब २०० वर्ष । इस अवसरपर महाराजाधिराज क्षत्रसाल मन्दिरतक समाधिस्थ बना रहा। जीकी प्रतिष्ठा हेतु स्वयं श्रीकुण्डलपुरजी पधारे । संवत् १७७० या इसके करीब श्रीमूलसंघ बलात्कार उन्होने बड़े बाबाकी पूजन की और द्रव्य, वर्तन तथा १ जिनकी यह मान्यता है उनमेंसे एक दोके नाम यहाँ सोने-चॉदीके चमर-छत्र भी भेंट किये। उनका दिया प्रकट कर दिये जाते तो अच्छा होता। -कोठिया पीतलका एक थाल (कोपर) अब भी श्रीकुण्डलपुरजी लगा परन्त
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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