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________________ ३१० ] अनेकान्त [वर्ष अङ्गलियाँ यकसाँ नहीं होतीं।" "इस पार्सलमें किताबें कैसी आई हैं ? राजनैतिक दिल्लीसे मिण्टगुमरी जेल भेज दिया गया । या सरकारविरोधी तो नहीं हैं ?" अण्डमानमें स्थान रिक्त न होनेके कारण पंजाबके जीवन-पर्यन्तके सजायाफ्ता]ढी यहीं रक्खे जाते थे। जी. मैं देखकर अभी बतलाये देता हूं। आप हमें भी यहाँ एक वर्ष रहनेका मीभाग्य प्राप्त हुआ। विश्वास रखें जेल-नियम विरुद्ध किताब मैं एक भी ४ बजेका समय था, मैं अपना बान बॉटकर बैठा ही नही रक्तूंगा।" था कि लाला बनारसीदास (जेलबाबू) आये और किताब धर्म लाला पन्नालालजी अग्रवालने किताबोंका पार्सल दिवाकर बोले दिल्लोसे सब धार्मिक भेजा थी । किताबें लाला "यह पार्सल आपका है " बनारसीदासको भी पढ़ने दी गई तो उन्हे गोश्तस "जी" घृणा होने लगी। उन्होने कई बार कहा कि इन "क्या आप जैन हैं" किताबोंके पढ़नेसे हम पति-पत्नीक दिलपर बड़ा असर "जी।" हुआ है । वह अक्सर मुझसे तत्वचर्चा करने आता "आप लोग. सुना है गोश्त नहीं खाते" " । था। (व्यंग्यात्मक हॅमी) "जी, हम लोग गोश्त नहीं खाते"। "क्यो" जेलमे साग-दालमे प्याज-लहसन इतना पडता "जैनोंका विश्वास है कि जो किसी में जान नहीं डाल था कि खाना ता दरकिनार उसकी गन्धसे हा जी सकता वह किसीकी जान नहीं ले सकता । हमें दूसरो ऊपर-ऊपरका आने लगता था। अतः करीब ५-६ के साथ वही व्यवहार करना चाहिये, जिस व्यवहार माह रूखी रोटी. पानी या गु के महार पटमें उतरता। के लिये हम उनसे इच्छुक हैं। जैसी करनी वैसी एक राज भोजन करत समय लाला बनारसीदास श्रा भरनीके जैन कायल हैं। आज जो शक्तिके मद में दूसरों पहुंचे। इस तरह हावी राटी खात देखकर सबब को कष्ट पहुँचाते है, उन्हें एक न एक रोज़ अपराधियों- पूछा तो साथियोंने बतला दिया कि यह प्याज लहसन की श्रेणीमे खड़ा होना होगा। नहीं खा सकते। सुना तो बेहद बिगड़े। तुम लोगोंने दादख्वाहीके लिये हश्रका मेदॉ होगा । मुझे क्यों नहीं कहा.? ये रूर्खा रोटी खाते रहते है हाथ मकतूलका कातिलका गिरेबॉ होगा । और तुम लोग मजेसे इनके सामने दाल-साग खाते "ओह, माफ करना. मैने आपसे ऐसी बात की रहत हो । यदि तुम लोग ५० श्रादमी तैयार होजाओ जो आपके जमीरके खिलाफ थी।" तो आजसे ही प्याज-लहसनरहित दाल-भागका प्रबन्ध किया जा सकता है। साथियोंको इसमे क्या ___ "नहीं, यह तो श्रापका सौजन्य है जो आपने एक कैदीसे बात की. वर्ना यहाँ कौन किसीसे बात ऐतराज होता. वह तो मजबूरन खाते थे। दूसरे दिन ६०-७० के लिये प्याज-लहसनरहित भोजन आने करता है ?" "सुना है. जैन झूठ नहीं बोलते ?" लगा। मिण्टगुमरीमें भोजन जेलका बना ही मिलता "हॉ. बोलना तो नही चाहिये। पर, कला तो था। दिल्लीकी तरह हमारा प्रबन्ध नहीं था। चन्द्रमामें भी होता है। क्या कहा जासकता है. पॉचों (शेष हवी किरणमें)
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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