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________________ किरण -] व्यक्तित्व [ ३०६ भूमिका तनिक लम्बी होगई। प्रत्येक व्यक्तिको बन्दियोंके लिये शामके भोजनकी व्यवस्था दिनमे यह ध्यान रखना आवश्यक है कि उसके कारण न होकर गत्रिमे होती है। हालाँकि जेल-नियमानुसार उमके देश-ममाज आदि प्रतिष्ठित न हो सके तो मूर्यास्त से पूर्व मब कैदी भोजन कर लेते हैं। परन्तु बदनाम भी न होने पाएँ। प्रमङ्गवश आपबीती कुछ गजनैतिक बन्दी अपना भोजन गत्रिको ही बनवाते घटनाएँ दी जारही है। थे । रात्रिको भोजन न लेनेपर एक नेता बोले-. (१) "यहाँ दिन-विनका नियम नहीं चल पायेगा. इम दिल्लीमे १६३०के नमक सत्याग्रहके पहले जत्थेमे पाखण्डबाजीको अब धता बताओ" । मैंने प्रकट में ५ सत्याग्रहियोमे हम दो जैन थे । बाकी तीनमेंसे तो कुछ नहीं कहा. पर मनमे संकल्प किया-यह १ मुमलमान और दो बाहरके मज़दरवर्गसे थे। नियम अब डङ्ककी चोट निभेगा । हायर हम और ७.-८० हजारकी भीड़, हमे देहलीसे मत्याग्रह स्थल हमारे नियम । किसीमे मैंने कुछ कहा नहीं, उन (मलीमपुर-शाहदरा) की ओर पहुंचाने चली तो लोगोके भाजन-समय चुपचाप टल गया। परन्तु फिर मागमे किलक मामने जैन लालमन्दिर आया । भी पाखण्डीका फतवा नाजिल हो ही गया होना तो प्रत्यक शुभ कार्योम जैनी मन्दिर जान ही है। अतः यह चाहिये था कि हमार भूखे रहनेपर हमारे माथी हम दोनों भी मन्दिरको देवतं ही भीको गककर भी गत्रिमे भोजन करते हुए कुछ सङ्कोच अनुभव दर्शनार्थ गये । इम ननिक-मी बातसं देहलीम यह करत और व्रतकी विशेषता और दृढ़ताकी प्रशंसा बात फैल गई कि देहलीके दोनो सत्याग्रही जैन है। करते। इसके विपरीत हमार मुहपर ही इसे पाखण्ड जैनाने मबसे आगे बढ़कर अपनेका भंट चढ़ाया है। बताया जारहा है। मालूम होता है कोई न कोई त्रुटि हाँ भेट ही. कयाकि उस ममय किमीको गवर्नमण्टके हमम दिग्याई अवश्य देती है:इरादेका पता नहीं था । हमे जब जत्थमे लिया नियाजे इश्क़म खामी कोई मालम होती है । गया तब कॉग्रेस-अधिकारियोंने स्पष्ट चेतावनी दे दी तुम्हारी बगहमी क्यो बरहमी मालम होती है। थी-'सम्भव है तुमपर घोड़े दौड़ा जाएँ गालियां भाई नन्हंमलका जेलमे माथ छूट गया। हम चलाई जाएँ.लाठियां बरसाई जा अङ्गहीन याअपाहिज दोनो जुदा-जुदा गिरफ्तार किये गये थे। अतः मैं बनाये जाये। हर तरह के खतराको ध्यानमें रखकर अकेला ही उस समय जेलमें जैन था मैंने गोयलीय ही माबूत कदम और पूर्ण अहिसक बने रहनेकी के बजाय अपनेका तब जैन लिखना प्रारम्भ कर हमन एक लाग्य जन-समूहमे प्रतिज्ञा की थी। दिया था। २-४ रोज शामको भूखा रहना पड़ा होगा अतः लोगोका जब मालूम हुआ कि दोनों जैन है कि दिल्ली जेलवालोने हम सी-क्लास बन्दियोके लिये तो लोग अश-अश करने लगे और जैन तो गले मिल भोजनका प्रबन्ध हमारे सुपुर्द कर दिया। और हमने मिलकर रोने लगे। 'भाई तुम लोगांने हमार्ग पत सा प्रबन्ध किया कि मब सूयास्तसे पूर्व भोजन कर रखली" । नमक-सत्याग्रह हुअा। पुलिसने अण्डकोष लेते। हमारी भाजन-व्यवस्था स्वच्छता. प्रम-व्यवपकडकर घमीटे, नमकका गरम पानी छीनाझपटीमे हारका देग्यकर सभी प्रसन्न हुए। यहाँ नक कि उन शरोपर गिरा । परन्तु सदेव इसी 'पत'का ध्यान नेता महादयके मुहसे भी अनायास निकल ही गयाबना रहा। व्यक्ति तो हमार जैसे अनगिनत पैदा होगे. "भई नोकी भोजन-व्यवस्था और स्वच्छताको पर पत' गई तो फिर हाथ न श्रायेगी । इसी भाव- कोई नहीं पहुँच सकता ' इन लोगोका दिनमें भोजन नाने लहमेभरको विचलित नहीं होने दिया। करना और पानी छानकर पीना ता अनुकरणीय है। (२) रात्रिमें लाख प्रयत्न करो कुछ न कुछ जीव-जन्तु पेटमें जेल पहुंचनेपर मालूम हुआ कि राजनैतिक चले ही जाते हैं और भोजन ठीक नहीं पचता"।
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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