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अनेकान्त
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व्यक्तित्वका अमर डाला है. उसको देखते हुए कोई दो-चारक ग्वरे-ग्बोटे आचरण और व्यक्तित्वके हिन्द स्त्री अकेली उनके मुहल्लोमे निकलनेका साहम कारण ममूचा देश, धर्म समाज, वंश कलङ्कित हो नहीं कर मकती । जनता तो व्यक्तियोंके वर्तमान जाता है। और यह कलङ्क ऐसे हैं कि नानीके पाप व्यक्तित्वसे अपनी धारणा बनाती हैं। उनके पूर्वज धेवतोको भुगतने पड़ते है। बादशाह थे या पैग़म्बर. इमसे उसे क्या मरोकार ? एक बार एक मजन (मम्भवतया मुनि तिलक
अलीगढ़के ताले और लुधियानेकी नकली मिल्क विजय) वर्मा गये। वहाँ दो वर्मियोंने उनका यथेष्ट एजेण्टोंके धाग्योसे तङ्ग आकर. अलीगढ़ी और लुधि- मत्कार किया। प्रवामयोग्य उचित सहायता पहुँचाई। यानवी लोगांपरसे ही जनताका विश्वास उठ गया । जब वे वमासे प्रस्थान करने लगे तो वर्मी मेजवानोका कई धर्मशालाओंमें उनके ठहरनेपर भी आपत्ति आभार मानते हुए बार-बार अपने लिय कोई सेवाहोती देखी गई है।
कार्य बतलानेके आग्रह करनेपर वर्मियोंने मकुचाते __कुछ मारवाड़ी फूहड़ और लीचड़ होते है । फर्स्ट हुए कहा-यदि वर्मा-प्रवासमें आपको वर्मियोकी क्लासमें सफर करें तो बाथरुमके बेमिनको मिठीसे आरसे कोई लेश पहुंचा हो या उनके स्वभावभगदें. डिब्बेमें पानीकी बाल्टी छलका-छलका कर आचरण आदिके प्रति कोई आपने धारणा बना ली मिलबिल-मिलबिल कर दें। मारवाड़ी औरतें घूघट हो तो कृपाकर आप उसे समुद्रमे डालते जाएँ। मार रहेंगी. पर सेटफार्मपर बारीक धोती पहिन कर अपने देशवासियोको इसका आभाम तक भी न नहारेंगी और धोती जम्पर बदलते हुए नङ्गी भी होने दे। जरूर होंगी। कलकत्तसे बीकानेर जाते-जाते बाबुओं यो ? यही ननिक-तनिक-मी धारणा देश
और कुलियोको धूमके पचामों रुपये देते जाएंगे परन्तु समाजके लिये पहाड जैसी कलङ्क बनकर उभर आती दो रुपये देकर लगेज रमीद नहीं लेंगे। इन १००-५० है। बनियेके यहाँ लोग बिना रमीद लिय रुपया दे फहडोंके कारण अच्छे-अच्छे प्रतिष्ठित नैतिक मार- आत है। जो देना-पावना उसको बहा बतलाती है ठोक वाडियोंको भी कुली और बाबूसे तग होना पड़ता है। मान लन है परन्तु बैङ्कके बड़ेमे बड़े अफमरको बिना चङ्गीका जमादार गैर काननी वस्तुओंके आयात-निर्यात रमीद एक पाई भी कोई नहीं देना न पाई-टू-पाई करनेवाले बदमाशोको तो नजरन्दाज कर देगा परन्तु हिमाब मिलाय बिना कोई विश्वास हो करता है। सुमभ्य सुसंस्कृत मारवाड़ीका टुकविस्तर जार खल- इमका भी कारण यही है कि बनिया लेन-देनमे वायेगा। क्योकि उसकी धारणा बन गई है कि मार- अधिक प्रामाणिक समझ लिया गया है। जितनावाडीको तङ्ग करनेपर पैमा जरूर मिलता है। जितना अब वह पतनकी और जारहा है. उतना ही
एक सम्प्रदाय और प्रान्त विशेषके नौकरीके वह बदनाम भी होता जारहा है। इच्छुकोको कलकत्ते-बम्बईमे यह कहकर टाल दिया शिकारपुर भागाँव. बलियाके निवासी मर्य जाता है-"नौकरी तो है परन्तु छोकरी नहीं" । और बिहारी बुद्ध क्यों कहलात है ? क्या इन जगहीअर्थान जहाँ छोकरी नहीं. वहाँ तुम नौकरी कगंगे मे मार भारतके मूख इकट्ठे कर दिये गये है. अथवा नही और जहाँ छोकरी होगी तुम लेकर जरूर यहाँ मूर्ख और बुद्ध, पैदा ही होते हैं ? नही. इन भागोगे।
शहरोके १०-५ गधोंने बाहर जाकर इस तरहकी भारतमें कई जातियाँ ऐसी हैं कि लोग राह हरकतें की कि लोगांने उनसे उनके प्रान्त और शहरके चलते रात होनेपर जङ्गलोंमें पड़ रहना तो ठीक सम्बन्धमें उपहासास्पद धारणाएँ बना ली। वे गध तो समझते हैं किन्तु उनके गॉवमेंसे गुजरना मंजूर नहीं न जाने कबके मर गये होगे, पर उनके गधेपनका करते।
प्रसाद वहाँ वालोको बराबर मिल रहा है।