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किरण ८ ]
इससे समस्त यूरुपमे भारतके प्रति बड़ी भ्रामक धारणाएँ बन गई।
व्यक्तित्व
अधिकांश यहाँ के राजे-महाराजे वहाँ रङ्ग-रेलियाँ करने गये तो आमलोगोको विश्वाम होगया कि भारतीय ऐय्याश और पैसेवाले होते है। और इसा विश्वासके नाते यूरुपियन महिलाएँ इण्डियन्मके पाछे farai तरह भिनभिनाने लगीं।
अमेरिका कनाडामे गरीब तबकेके सिक्ख महनतमजदूरी करने पहुंचने लगे तो वहाँ समझा गया कि इडयन बहुत निर्धन होते है, अतः नियम बना दिया गया कि निद्धरित निधि दिखाये बिना कोई भी भारतीय अमरीकन सीमामे प्रवेश नही कर सकेगा ।
भारत मे जब इंग्रेजीका प्रभुत्व जमने लगा तां उन्होंने नीति निश्चित कर ली कि भारतमें उच्च श्री के इंग्रेज ही जाने पाएँ । ताकि शामित जातिपर शाanair ाधिक प्रभाव जम सके । उक्त नीति के अनुसार भारतमे जबतक इंग्रेज उच्चकोटिके आते रहे उनके सम्बन्धमे भारतीयांकी धारणा ae are aadi गई। लोगोका विश्वास दृढ़ होगया कि हिन्दुस्तानी न्यायाधीश. हाकिम व्यापारी और मित्र कही अधिक श्रेष्ठ इंग्रेज न्यायाधीश. हाकिम व्यापारी और मित्र होते है। ये बातके धनी. वक्तकं पाबन्द उदार हृदय और ईमानदार होते हैं।
परिणाम इस धारणाका यह हुआ कि इंग्रेज जज, हाकिम, डाक्टर वकील इञ्जनियर व्यापारी आदि हिन्दुस्तानियांकी नजरोमें हिन्दुस्तानियोंसे अधिक निष्पक्ष, योग्य और चतुर बन गये । यहाँ तक कि विलायती वस्तु के सामने हम स्वदेशी वस्तुको हेच समझने लगे। हमारा अभीतक विश्वास भी हैं कि विलायती वस्तु खालिस और उत्तम होता है। स्वदेशी नकली. मिलावटी और घटिया होती है। लिम्बा कुछ होगा और माल कुछ और होगा। ऊपर कुछ और अन्दर कुछ और होगा । हिन्दुस्तानीके व्यापार-व्यवहारमें स्वयं हिन्दुस्तानीको नैतिकनाकी
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पूञ्जीपतिके सामानको छोड़कर कुली इंग्रेजका सामान उठायेगा. लॉगेवाले टैक्सीवाले भी पहले इंग्रेजको ही तरजीह देंगे । यहाँतक कि मँगत भी पहले उन्हीके आगे हाथ पसारेगे ।
शङ्का बनी रहती है। इंग्रेजोकी उदारता-नैतिकताकी यहाँ तक छाप पड़ी कि बड़ेसे बड़े भारतीय
इंग्रजो व्यक्तित्वका जहाँ प्रभाव पड़ा, वहाँ उनके अवगुणोंसे भी लोग शङ्कित हुए। टामी लोगो में सच्चरित्र और विश्वस्त भी रहे होगे; परन्तुइनका किसी ने विश्वास नहीं किया। ये हमेशा यूरूपके कलङ्क समझे गये। गुरुपियन महिलाओ की स्वच्छन्दतासे आरतीय इतना घवगत थे कि कोई भी भला आदमी उनके सम्पर्क में आनेका साहस नहीं करता था । लोगोंका विश्वास था: -
'काजरकी कोठरी में कैसो हू सयानो जाय, काजरकी एक रख लागे पर लागे है ।' एक बार एक उद्योगपतिने मुझसे कहा था कि यदि मेरे बराबर के डिब्बेमें भी कोई यूरुपियन महिला सफ़र कर रही हो तो मै तत्काल उस डिब्बेको छोड़ देता हूं। यह लोग कब क्या प्रपञ्च रच दें अनुमान नही लगाया जा सकता। एक ही श्रादमीके अच्छेबुरे व्यक्तित्वसे लोग अच्छे-बुरे अनुमान लगाते रहते हैं ।
२-४ आदमियोकी तनिक सी भूल उनके देश. धर्म. समाजवंशके मार्गमें पहाड़ बनकर खड़ी होजाती है। १०-५ ब्राह्मणांने लोगोको विष दे दिया तो लोग कह बैठत है ब्राह्मणोका क्या विश्वास ? नाथूराम विनायक गांडसे के कारण - विदेशो में हिन्दुओं को और भारतमे ब्राह्मणो महाराष्ट्रों, विनायको और गोडमोंको कितना कलङ्कत होना पड़ा है ?
ईसाईयांने अपने सेवाभावी व्यक्तित्वकी ऐसी छाप मारी है कि उनके मायेसे भी घृणा करनेवाले बड़े-बड़े तिलकधारी अपनी बहू-बेटियोंको बच्चा प्रसत्रके लिये मिशनरी हॉस्पिटल्समं निःशङ्क अकेली छोड़ आते हैं। सबका अटूट विश्वास है कि उतनी सेवापरिचर्या घरवालांसे हो ही नही सकती ।
मुसलमानोंमें अनेक सदाचारी तपस्वी. और मुन्सिफ हुए हैं। परन्तु यहाँ जो उन्होंने अपने