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स्मृतिकी रेखाएँ
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(लेखक-श्रीअयोध्याप्रसाद गोयलीय)
मनुष्यके निजी व्यक्तित्त्वसे उसके देश, धर्म, वंश सम्बन्धमें वहाँ वालोकी बहुत ही भ्रामक धारणाएँ | आदिका परिचय मिलता है। अमुक देश, धर्म, बन गईं । और वहाँ कुली शब्द ही भारतीयताका
समाज और वंश कितना सभ्य, सुसंस्कृत, द्योतक होगया । हर भारतीयको अफ्रीकामे कुली विनयशील, सेवाभावी और सञ्चरित्र है. यह उस सम्बोधित किया जाने लगा। यहाँ तक कि महात्मा देशके मनुष्योके व्यक्तित्त्वसे लोग अनुमान लगाते गान्धी भी वहाँ इस अभिशापसे नहीं बच पाये। हैं। कहाँ कैसे-कैसे महापुरुष हुए हैं, किस धमके
कलकत्तेमें अक्सर मोटर-ड्राइवर सिक्य है। कितने उच्च सिद्धान्त हैं, इस पुरातत्त्वका ज्ञान सर्व
एकबार वहाँ गुरु नानकके जुलूसको देखकर किसी साधारणको नहीं हाता । वह तो व्यक्तिक वतमान अंग्रेजने बंगालीसे पूछा तो जवाब मिला-"यह व्यक्तित्त्वसे खरे-खोटेका अनुमान लगाते हैं।
ड्राइवरोके मास्टरका जुलूस है। सुना है यह मोटर दक्षिण अफ्रीकामें शुरू-शुरूमें भारतसे बहुत ही चलाने में बहुत होशियार था।" जवाब देनेवालेका क्या निम्न कोटिके मनुष्याको लेजाया गया और उनसे कुसूर ? वह सिक्ख मोटर-ड्राइवरोंकी बहुतायत और कुलीगीरीका काम लिया गया । उनकी घटिया मौजूदा व्यवहारके परे कैसे जाने कि सिक्खामे बड़े-बड़े मनोवृत्ति और महनत-मजदूरीके कार्योंसे भारतके त्यागी, तपस्वी, शूरवीर, राजे-महाराजे हुए है कि जो आत्मधर्मसे विमुख है वह ता मिध्यादृष्टि है
1 और है। ही किन्तु जो आत्मधर्म समझकर इस क्रियाकाण्डका
__ यूरुपकी किसी लायब्रेरीमे एक भारतीय पहलेपालन करता है वह भी मिथ्याष्टि है। जैनधर्मने पहल गया और वहाँ किसी पुस्तकसे चित्र निकाल
। भावोकी शुद्धिपर जितना अधिक जोर दिया है उतना लाया। दूसरे दिन ही बार्ड लगा दिया क्रियाकाण्डपर नहीं। यह इसीसे स्पष्ट है कि परिपर्ण (भारतीयांका प्रवेश निषिद्ध है)। सन १९१७मे अपने धर्मकी प्राप्ति वह सब प्रकारको क्रियाके अभाव में ही रिश्तेदार महावीरजी हात हुए भरतपुर भी उतरे । मै स्वीकार करता है।
भी उनके साथ था। महाराज भरतपुरके रंगमहल यह धर्मका रहस्य है जो आत्मार्थी इस रहस्यको मोतीमहल आदि देखने गय तो एक स्थानमे औरतोको जानकर जीवनमें उसे उतारता है वास्तवमें उसीका
नहीं जाने दिया गया। पूछनेपर मालूम हुआ कि जीवन सफल है। क्या वह दिन पुनः प्राप्त होगा जब
कोई औरत कुछ सामान चुराकर लेगई थी. तबसे हम आप सभी धर्मके इस रहस्यको हृदयङ्गम करनेमे सफल होंगे ? जीवनका मुख्य आधार श्राशा है। हम विदेशोमे भारतियोके लिये उनकी परतन्त्रता तो आशा करते हैं कि हम आप सभीका वे दिन पुनः अभिशाप थी ही. कुछ कुपूतोंने भारतीयताके उच्च प्राप्त होंगे।
धरातलका परिचय न देकर जघन्य ही परिचय दिया।