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________________ किरण ७ ] सम्पादकीय शीलनात्मक कार्यों में सहायता करना हो वहॉके अध्ययन-प्रवृत्तियाँ यहाँ चलें और जैन शिक्षाकी कोई विद्वानोंमें पं० प्रवर हजारीप्रसादजी द्विवेदी. आचार्य भी समुचित व्यवस्था न हो, यह भी आश्चर्यका ही क्षितिमोहनसेन, जैनमाहित्यके प्रेमी और अन्वेषक है। विषय है । १५ वर्ष पूर्व बाबू बहादुरसिंह सिंघीके श्रीयुत् रामसिंहजी तोमर तो प्राकृत और अपभ्रंश प्रयाससे 'सिंघीविद्यापीठ' संस्थापित हुई थी, जिसके साहित्यके गंभीर अभ्यासी हैं। आपने अपभ्रंशभापा मुख्य अध्यापक पुरातत्त्वाचार्य जिनविजयजी थे और माहित्यका विवेचनात्मक इतिहास भी बड़े परि- परन्तु उनका जबसे वहाँसे प्रयाण हुआ तभीसे श्रमपूर्वक तैयार किया है जो शीघ्र ही हिन्दीभवनकी संस्था भी चली गई । अब जैनोकी कोई खास ओरसे प्रकाशित होगा। आगे भी उपर्यक्त विद्वान जैन व्यवस्था वहॉपर नहीं है। जबकि वहॉके कार्यकर्ता संस्कृतिपर अध्ययन करनेकी सुरुचि रखते हैं; परन्तु चाहते अवश्य है । अतः जैनसमाजके श्रीमन्त आवश्यक साधनाके अभावमे उनका कार्य बढ़ नहीं व्यक्तियोंको चाहिये कि प्राकृतभाषा और जैनसकता. जब कभी कुछ जैनसाहित्य औरसंस्कृति- साहित्यादिकी शिक्षाके लिये या तो जैन संस्कृतिविषयक ग्रन्थोकी आवश्यकता पड़जाती है तो उन्हें शिक्षापीठ जैसी कोई स्वतन्त्र संस्था या ऐसी जैनवैयक्तिक रूपसे कहीसे प्राप्त कर काम चलाना पड़ता चेयर वहॉपर अवश्य ही स्थापित कर देंवे जिसपर एक है। जैन समाजके लिये यह अत्यन्त खेदका विषय ऐसे विद्वानकी नियुक्ति की जाये जो जैन दर्शन, धर्म, होना चाहिये । स्वतंत्र अन्वेषण करना तो रहा दूर, पर साहित्यादि सभी विषयोका विद्वान् और तुलनात्मक जो एतद्विपयक कार्योंमे अपना बहुमूल्य समय दे रहे है. अभ्यास करनेमे रुचि रखता हो, साम्प्रदायिक व्याउनको आवश्यक साहित्यिक साधनो की भी पूति न माहसे दर हो। यदि यह व्यवस्था जैनसमाज कर दें करना और सांस्कृतिक प्रचारकी बड़ी बड़ी बातें करना तो रहने-करनेकी सुविधा वे देनेको तैयार हैं। अधिक इसका क्या अर्थ हो सकता है ? खुशीकी बात है कि खर्च भी नहीं है केवल प्रतिवर्ष ५००० हजारका खर्च कलकत्ता-निवासी प्रसन्नचन्द बाथराने उपाध्याय होगा, परन्तु वहाँ के सांस्कृतिक वायुमण्डलमें जो तुलसुखसागरजी महाराजके सदुपदेशसे ५०० रुपयोका नात्मक अध्ययन जैन-अजैन व्यक्ति करेंगे वे आगे जैनसाहित्य यहॉके लिये मॅगवाना ते किया है। पर चलकर हमारी समाजके लिये बहुत ही उपयोगी इससे होगा क्या ? सम्पूर्ण जैनमाहित्यिक संस्थाओ- प्रमाणित होंगे । मैं तो चाहूँगा कि जैनी लोग इस का-जा प्रचार कर रही है-चाहिय कि प्रकाशित बातका अतिशीघ्र विचार कर “जैनशिक्षापीठ" स्थाग्रन्धाकी एक-एक प्रति तो अवश्य ही यहॉ भिजवावे। पित कर दे । जहाँ जैन संस्कृतिके विविध अङ्गोका दसरी अखरनेकी बात है वहॉपर जैन विद्यापीठका तलस्पर्शी अध्ययन, मनन और अन्वेपण हो। न होना, जब अधिक प्रसिद्ध धर्मो. साहित्योंकी पटना सिटी, ता. २३-७-४८ -मुनिकान्तिसागर वीरसेवामन्दिरको प्राप्त सहायता गत किरणमें प्रकाशित सहायताके बाद वीरसेवामन्दिरको निम्र सहायताकी प्राप्ति हुई है, जिसके लिये दातार सहानुभाव धन्यवादके पात्र हैं:६००) बावू नन्दलालजी सरावगी कलकत्ता (तैयार ग्रन्थोंके प्रकाशनार्थ स्वीकृत दस हजारकी सहायताके मध्ये)। १००) निर्मलकुमारजी सुपुत्र उक्त बाबू नन्दलालजी कलकत्ता। १००) बाबू शान्तिनाथजी सुपुत्र उक्त बाबू नन्दलालजी कलकत्ता। १०) श्रीदिगम्बर जैनसमाज बाराबडी. मार्फत ला० कन्हैयालजी जैन बाराबकी। -अधिष्ठाता
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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