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किरण ७ ]
सम्पादकीय
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कसाईके उद्धारकी कथा कहते-सुनते स्वयं पत्थर कैसे किसी एक भी औरतको जबर्दस्ती भगाया या बन गये।
बेइज्जत किया जा सकता है ? जब तक हम यह बुत बनके वोह सना किये बेदादका गिला। मानते रहेगे कि हमारी ऐसी बेइज्जती करत ही रहेगे।" सूझा न कुछ जवाब तो पत्थरके होगये । वास्तवमें हिन्दुओकी इस आत्म-घातक बुनियादी
करोड़ो राजपूत-मेव,राँघड़. मलकाने मुसलमान कमजोरीका जडमूलसे उखाड़नेके लिये बहुत बड़े बन गये. पर इन्होने उनके रोने और घिघयानेपर भी आन्दोलनकी आवश्यकता है। मनुष्य जब आत्मउन्हें गले नहीं लगाया । लाखो महिलायें गत वर्ष ग्लानियोसे भर उठता है और स्वयं अपनी नजरोंसे अपहत होगई परन्तु ये वञहृदय न तो उनकी रक्षा पतित होजाता है, तब उसका उद्धार त्रिलोकीनाथ भी ही करनेको उद्यत हुए और न अब उन्हें वापिस लेने नहीं कर सकते। को ही तैयार हैं।
गिर जाते है हम खुद अपनी नजरोसे सितम यह है । जिन पापियोके कारण १०-१५ करोड हिन्द बदल जाते तो कुछ रहते, मिटे जाते हैं ग़म यह है॥ विधर्मी हुए उनके प्रायश्चित्तका असली उपाय यही है
-अकबर कि उनकी सन्तानको काश्मीर और हैदराबादके मोर्चा जो धर्म पतितोंको उबारने, विधर्मियोंको अपना पर हिन्दु जातिकी रक्षार्थ भेज देना चाहिये। क्योकि बनानेमें सञ्जीवनी शक्ति था। वही आज चौका-चल्हे, अाक्रामक अधिकांश वही लोग है जा इनके कारण तिलक-जनेऊमें फंसकर समाज-भक्षक बन रहा है। विधर्मी बने हैं। और जो अब भी इस तरहके अप- हिन्दु जातिकी यह कितनी आत्म-घातक नीति वित्र मनुष्य हैं, उन्हें भङ्गियाका कार्य सौप देना रही है कि झूठ-मूठ दोष लगा देनेपर, या बलात कोई चाहिए और भडियोको कोई दृमग कार्यताकि अधर्म कार्य कराय जानेपर वह स्वयं अपनेको धर्मउनके मिलानेमे भगी अपना अपमान न मम। भृष्ट ममझ लेती है। और इस अपमानका बदला न समाजके से कोढ़ियांका जिनमे समाज क्षीण होता लेकर स्वयं विधर्मियोमे सम्मिलित हो जाती। हो, चाण्डालोकी मंज्ञा देकर उनसे चाराटाला जैमा और नारी-सतीत्व जो उसके अमरत्वके लिये व्यवहार करना चाहिए।
अमृत था. वही अब विपमे भी अधिक घातक सिद्ध वाहरे पांगापन्थियो। मकुदम्ब धम-परिवर्तनको हो रहा है। जब स्त्री-पुरुष ममान है तब बलात्कारसे तैयार ' लुञ्चे-लफंगाको जवान लड़की देना मन्जूर" केवल स्त्रीका ही धर्मभृष्ट क्यो समझा जाना है ? पुरुप न इसमे बिरादरीकी नाक कटती और न जातीय- का धमभृष्ट क्यो नही होता? नारी ही क्यो तिरस्कृत मर्यादा नष्ट होती। परन्तु आतताइयांको पाठ पढ़ाने और घृणित हाकर रह जाती है ? वह क्या भाग्य वाली मीतासे भी बढ़कर सुशीला लड़कीको भपनाने- बनी हुई है। मे बिरादरीकी इज्जत गोबर हाती
___ नागकी इमी दुर्बलतासे कामुक पुरुष लाभ उठात बेशक ऐसी हिजडी समाज उमे कैसे अपनाती है। नारी इम कृत्यका इतना बुग समझती है कि और कैसे अपना कलुषित मुह दिखलाती:- पुरुपके बलात्कार करनेपर भी उसे गापन रखनेकी
परदेकी और कुछ वजह अहले जहाँ नहीं । म्वयं मिन्नते करती है। और किसीपर प्रकट न कर दे दुनियाको मह दिखानेके काबिल नहीं रहे। इम आशङ्कामे उसके इशारोपर नाचती है। उचितआत्म-घातक नीति
अनुचित सभी बात मानती है। स्वयं अपनेको भृष्ट ____ एक ही रास्ता' शीर्षकमे महात्मा गांधीजीने लिखा समझती है। और भृष्ट करने वाले नर-पशुसे बदला था-"मेरी समझम यह नहीं आता कि कैसे किसी न लेकर उसके हाथोंमे खेलती है। आदमीका दीन-धर्म जबरन बदला जा सकता है। या १-हरिजन सेवक १ दि. १६४६ पृ. ४१२ ।