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________________ २८२ अनेकान्त 'साम्प्रदायिक उपद्रवोंके परिणामस्वरूप अन्यत्र की तरह देहरादून में भी हिन्दू मुसलमानोंमें संघर्ष हुआ। उसी श्रवसरपर चार मुसलमान हाथोंमें तलवार लिये एक ब्राह्मणके घर पहुँचे । और ब्राह्मणसे कर बोले कि तुम कुटुम्ब मुसलमान हो जाओ और अपनी जवान लड़कीको हममेसे एकके साथ शादी कर दो. वर्ना हम सबको जानसे मार डालेंगे । [ वर्ष को. शावासी देनेके बजाय उसे अपने साथ रखना भी पाप समझता है " ब्राह्मण यह दृश्य देखकर घबराया और लडकी देने तथा धर्म-परिवर्तन करनेको प्रस्तुत हो होया । किन्तु जब वह अपनी युवती कन्याका हाथ उनमे से एक मुसलमान के हाथमें देने लगा तो लडकीने फुर्ती से उस मुसलमान से तलवार छीनकर पलक मारते ही दोको खुदा भेज दिया; बाकी दो भाग गये । वीर लड़कीके साहसके कारण ब्राह्मण और उसका कुटुम्ब तो धर्म-परिवर्तनसे बच गये, लेकिन उस वीराङ्गनाको खूनके अपराध में पुलिस पकड़ कर गई । भाग्यसे देहरादूनका कलकर महदय और गुणज्ञ अंग्रेज था । उसे जब वास्तविक घटनाका ज्ञान हुआ तो उसने वह मुक़दमा किसी तरह अपनी अदालत में ले लिया और दो-चार पेशियोंके बाद लड़कीको निरपराध घोषित करके उसको लिवा जानेके लिये उस ब्राह्मणके पास इत्तला भेजी तो ब्राह्मणने कहलवा भेजा कि चार-पाँच राजमे बिरादरीसे पूछ कर बतला सकूंगा कि लड़कीको घरपर वापिस ला सकता हूं या नहीं। चार-पाँच रोजके बाद ब्राह्मणने लिख दिया कि - 'लड़कीको घरपर वापिस लानेकी बिरादरी इजाजत नही देती. इसलिये वह मजबूर है।' इस उत्तरको पढ़कर कलकर बहुत हैरान हुआ और arrest इस निष्ठुरताका कारण उसकी समझ मे नही आया | लाचार उसने वहाँके आर्य समाजियोको वह लडकी सौंपते हुए कहा - यदि यह लड़की इङ्गलिस्तानमें उत्पन्न होकर ऐसा वीरतापूर्ण कार्य करती तो अंग्रेज इसकी मूर्ति बनवाकर स्मृतिस्वरूप किसी वाटिकामें स्थापित करते और जो स्त्री-पुरुष वहाँ से पास होते उसको आदर देते । किन्तु यह हिन्दुस्तान है. यहाँका हिन्दु पिता अपनी लड़की मालूम होता है कलकुर साहबको हिन्दुस्तान आये थोड़े ही दिन हुए होगे । अन्यथा देहरादूनके उस ब्राह्मणकी इस करतूत से वे व्यथित नहीं हुए होते। उन्हें क्या मालूम कि यहाँ ऐसे ही सन्तानघातक और समाज-भक्षियोका प्राबल्य है । ऐसे ही पापियोंके कारण भारतके १४-१५ करोड हिन्दू ईसाई और मुसलमान बने हैं। फिर भी इनकी यह लिमा अभी शान्त नहीं हुई है और दिन-रात अपने समाज और वंशका घात करने में लगे हुए हैं । यशोदाने मुस्लिम प्याऊ से पानी पी लिया धनीराम सिंघाईक तांगेके नीचे चूहा मर गया. कनौजियांकी पगंतपर यवनोंकी परछांई पड गई। छुट्ट, पंडेका तिलक रमजानी भटियारेने चाट लिया. गुड़गांवेंके गूजरोने मेवोंके हाथ गाय बेच दी श्रीमालीब्राह्मण मस्जिद के कुए पर स्नान कर आये। अतः ये सब विधर्मी होगये है । हिन्दुजाति से वहिष्कृत. हुक्का-पानी, रोटी-बेटी व्यवहार इनके साथ बन्द' और तारीफ यह कि वे स्वयं भी अपनेको पनित समझकर विधर्मियोमे आंसू बहाते हुए मिल जाते हैं। न तो ये मोने- चॉदी से मढ़ भगवान ही उनकी रक्षा कर पाते है न पतित-पावनी गङ्गा-यमुना न भगवानका गन्धोदक | सब निकम्मे होजाते हैं और वे गायकी तरह डकराने हुए अपनो विछुडनेका बाध्य होते है । इन पांगापन्थियो के कारण भारतको अनेक दुर्दिन देखने पड़े है । भारतपर जब विदेशियोंके आक्रमण होने लगे तो ये तिलक लगाये हाथमें माला लिये निश्चेष्ट गां-मन्दिरोका विध्वंस देखते रहे । सीता-हरणकी कथा पढ़-पढ़कर रोते रहे परन्तु आँखों के सामने हजारो सीताओका अपहरण देखते हुए भी इनका रोम न हिला । काश्मीरके ब्राह्मण बलात मुसलमान बना लिये गये तो काश्मीरमहाराज काशी कर गिडगिडाये और इन धर्मके ठेकेदारोसे उन्हें वापिस धर्ममे ले लेनेकी व्यवस्था चाही पर ये टम-से-मस न हुए। मूर्तिको पतित-पावन और गणिका तथा सदना
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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