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________________ किरण १ ] आचार्यकल्प पं० टोडरमल्लजी [ २४ - जिनका समय डा० ए० एन० उपाध्येने ईसाकी १६ वीं सम्यग्ज्ञान-चन्द्रिका धरयो है याका नाम । शताब्दी का प्रथम चरण निश्चित किया है । इससे सो ही होत है सफल ज्ञानानंद उपजाय कैं। भी इस टीका और टीकाकारका उक्त समय अर्थात् कलिकाल रजनीमें अर्थको प्रकाश करे । ईसाकी १६ वीं शताब्दीका प्रथमचरण व विक्रमकी यात निज काज कीने इष्टभावभायक ॥३०॥ १६ वीं शताब्दी का उत्तरार्ध सिद्ध है। इस टीकामें उन्होंने आगमानुसार ही अर्थ प्रतिपादन भ० नेमिचन्दकी इस संस्कृत टोकाके आधारसे लिया जी भोरसे कषाय कळभी नहीं ही पंडित टोडरमल्ल जीने अपनी भाषाटीका लिखी लिवा यशाहै। और उस टीकासे उन्होंने भ्रमवश केशववर्णाको टीका समझ लिया है। जैसा कि जीवकाण्ड टीका आज्ञा अनुसारी भये अर्थ लिखे या मांहि । प्रशस्तिके निम्न पद्यसे प्रकट है : धरि कपाय करि कल्पना हम कछु कीनों नाहि॥३३॥ केशववर्णी भव्य विचार,कर्णाटक टीका अनुसार । टीकाप्रेरक श्रीरायमल्ल और उनकी पत्रिकासंस्कृत टीका कीनी एह, जो अशुद्ध सो शुद्ध करेहु ॥ इस टीकाकी रचना अपने समकालीन रायमल्ल पंडित जीको इस भाषाटीकाका नाम 'सम्यग्ज्ञान- नामके एक साधर्मी श्रावकोत्तमकी प्रेरणासे की गई चन्द्रिका' है जो उक्त संस्कृत टीकाका अनुवाद होते हुए है जो विवेकपूर्वक धर्मका साधन करते थे१ । रायमल्ल भी उसके प्रमेयका विशद विवेचन करती है पंडित जी बाल ब्रह्मचारी थे एक देश संयमके धारक थे। टोडरमल्ल जीने गोम्मटसार जीवकाण्ड, कर्मकाण्ड जैन धर्म के महान श्रद्धानी थे और उसके प्रचारमें लब्धिसार-क्षपणासार-त्रिलोकसार इन चारों प्रथों संलग्न रहते थे साथ ही बड़े ही उदार और सरल थे। की टोकाएं यद्यपि भिन्न भिन्न रूप से की हैं किन्तु उन उनके प्राचारमें विवेक और विनयकी पुट थी। वे में परस्पर सम्बन्ध देखकर उक्त चारों प्रथोंको अध्यात्म शास्त्रोंके विशेष प्रेमी थे और विद्वानोंसे टीकाको एक करके उनका नाम 'सम्यग्ज्ञान तत्त्व-चर्चा करने में बड़ा रस लेते थे पं० टोडरमल्लचन्द्रिका' रकखा है। जैसाकि पं० जी लब्धिसार भाषा- जीकी तत्त्व-चर्चासे वे बहुत ही प्रभावित थे। इनकी टीका प्रशस्तिके निम्न पद्यसे स्पष्ट है : इस समय दो कृतियां उपलब्ध हैं-एक ज्ञानानंद "या विधि गोम्मटसार लब्धिसार ग्रंथनि की, निर्भर निजरस-श्रावकाचार और दूसरी कृति चर्चाभिन्न भिन्न भाषाटीका कोनो अर्थ गाय के। संग्रह है जो महत्वपूर्ण सैद्धान्तिक चर्चाओंको लिये हये इनिकै परस्पर सहार पनौ देख्यौ। है। इनके सिवाय दो पत्रिकायें भी प्राप्त हुई हैं जो तात एक करिडम तिनिको मिलायक ॥ 'वीरवाणी' में प्रकाशित हो चुकी हैं। उनमें से प्रथम पत्रिकामें अपने जीवनकी प्रारम्भिक घटनाओंका (पिछले २८ पृष्ठकी यह टिप्पणी है भूलसे वहा न छप मकी) नेशा पति मोटामल जीमे गोमा* अभयचन्द्रकी यह टीका अपूर्ण है, और जीवकाइको सारकी टीका बनाने की प्रेरणाकी गई है और वह ३८३ गाथा तक ही पाई जाती है, इममे ८३ नं. की सिघाणा नगर में कब और कैसे बनी इसका पूरा गाथाकी टीका करते हा एक 'गोम्मटमार पञ्चिका' टीकाका विवरण दिया गया है। वह पत्रिका इस प्रकार हैउल्लेव निम्न शब्दोमे किया है। "अथवा मम्मूर्छनग - पात्तान्नाश्रित्य जन्म भवतीति गोम्मटमारपश्चिकाकागदीनाम- १ रायमल्ल माधर्मी एक, धर्ममधैया सहित विवक । + देखो, अनेकान्त वर्ष ४ किरण १ भिप्रायः" सो नानाविध प्ररक भयो, नव यह उत्तम कारज थयो * देग्यो, अनेकान्त वर्ष ४ किरण १ २ देखो, वीरवागी वर्ष १ अङ्क २, ३ ।
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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