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अनेकान्त
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श्रोताओंको अच्छी उपस्थिति रहती थी और जिनकी है। इसमें आध्यात्मिक प्रभोंका उत्तर कितने सरल संख्या सातसौ-श्राठसौसे अधिक हो जाया करती एवं स्पष्ट शब्दोंमें विनयके साथ दिया गया है, यह थी। उस समय जयपुर में कई विद्वान् थे और देखते ही बनता है । चिट्ठीगत शिष्टाचार-सूचक निम्न पठन-पाठनकी सब व्यवस्था सुयोग्यरीतिसे चल रही वाक्य तो पण्डितजीकी श्रान्तरिक-भद्रता तथा वात्सल्य थी। आज भी जयपुर में जैनियोंकी संख्या कई सहन का ग्यासतौरसे द्योतक हैहै और उनमें कितने ही राज्यके पदोंपर भी प्रतिष्ठित "तम्हारे चिदानन्दघनके अनुभवसे सहजानंदकी
वृद्धि चाहिये।" ___ सं० १८२१ मे जयपुरमें इन्द्रध्वज पूजाका महान् गोम्मटमारादि की सम्यग्ज्ञानचन्द्रिकाटीकाउत्सव हुआ था। उम समयको ब्रह्मचारी रामलाल
गोम्मटसारजीवकांड, कर्मकाण्ड, लब्धिमार क्षपजी की लिखी हुई पत्रिकासे ज्ञात होता है कि उसमें राज्यकी ओरसे सब प्रकारको सुविधा प्राप्त थी, और
रणामार और त्रिलोकसार इन मूल-चन्के रचयिता दरबारसे यह हुक्म आया था कि "थां की पूजाजी
प्राचार्य नेमिचन्द्र सिद्धांतचक्रवर्ती हैं। जो वीरनन्दि
इन्द्रनदिके वत्म तथा अभयनन्दिके पत्र थे। और के अर्थि जो वस्तु चाहिजे मो ही दरबारसे ले जावो"
जिनका समय विक्रमकी ११वीं शताब्दी है। इसी तरहको सुविधा वि० की १५वीं १६वीं शताब्दीमें ग्वालियर में राजा डूङ्गरसिंह और उनके पुत्र कीर्तिसिह
गोम्मटसार ग्रन्थपर अनेक टीकाएँ रची गई हैं के राज्य-कालमें जैनियोंको प्राप्त थी, और उनके
किन्तु वतमानमें उपलब्ध टीकाओं में मन्दप्रबोधिका राज्य में होने वाले प्रति महोत्सवों में राज्यकी ओरसे सबसे प्राचीन टीका है। जिसके कर्ता अभय चन्द्र सब व्यवस्था की जाती थी।
सैद्धांतिक हैं। इस टीकाके आधारसे ही केशव
वर्णीने, जो अभयमूरिके शिष्य थे, कर्नाटक भाषामें रचनाएं और रचनाकाल
'जीवतत्त्वप्रबोधिका' नामकी टीका भट्रारक धर्मभूषणके पं०टोडरमल्लजीकी कुल नौ रचनाएं हैं। उनके आदेश से शक सं० १२८१ ( वि० सं०१४१६) में नाम इस प्रकार हैं
बनाई है। यह टीका कोल्हापुरके शास्त्रभण्डारमे १-गोम्मटसारजीवकांडटीका, २-गोम्मटसार- सरक्षित है और अभी तक अप्रकाशित है। मन्दकमकाण्डटीका, ३-लब्धिसार-क्षपणामारटीका, प्रबोधिका और केशववर्गीकी उक्त कनड़ी टीकाका ४-त्रिलोकसारटीका, ५-आत्मानुशासनटीका, ६-पुरु- आश्रय लेकर भट्टारक नेमिचन्द्रने अपनी संस्कृत टीका षार्थसिद्ध्युपायटोका, ७-अर्थसंहणिअधिकार, बनाई है और उसका नाम भी कनड़ी टोकाकी तरह -रहस्यपूर्ण चिट्ठी, - और मोक्षमागे प्रकाशक । 'जीवतत्त्वप्रबोधिका' रखा गया है। यह टीकाकार
इनमें आपको सबसे पुरानी रचना रहस्यपूण नमिचन्द्र मूलसंघ शारदागच्छ बलात्कारगणके विद्वान् चिट्टी है जो कि विक्रम सम्बत् १८११ को फाल्गुणवदि थे, और भद्रारक ज्ञानभूपणके शिष्य थे। भट्टारक पञ्चमीको मुलतानके अध्यात्मरसके रोचक खानचंदजी ज्ञानभूपणका समय विक्रमकी १६वीं शताब्दी है। गङ्गाधरजी, श्रीपालजी, सिद्धारथजी आदि अन्य क्यांकि इन्होंने वि० सं०१५६० में 'तत्त्वज्ञानतरङ्गिनी' साधर्मी भाइयों को उनके प्रश्नांके उत्तररूपमे लिखी गई नामक ग्रन्थकी रचना की है । अत: टीकाकार नेमिचंद्र थी। यह चिट्ठी अध्यात्मरसक अनुभवसे श्रोत-प्रोत का भी ममय वि० की १६ वी शताब्दी है। इनकी जीव
तत्वप्रबोधिका' टोका ममिभूपाल अथवा मा नुवदेखो, नीरवाणी ३
मनिगा नामक गजाक समय में लिखी गई है और