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________________ २७२ अनेकान्त [वर्ष ६ - १-बुभुक्षित प्राणीको भोजन देना। *६-सभीका कल्याण हो, सभी प्राणी सन्मार्ग२-तृषितको पानी पिलाना। गामी हो, सभी सुखी समृद्ध और शान्तिके ३-वस्त्रहीनको वस्त्र देना। अधिकारी हो। ४-जो जातियाँ अनुचित पराधीनताके बन्धनमें ७-जोधर्ममें शिथिल होगये हों उनको शुद्ध उपपड़कर गुलाम बन रही है उनको उस दुःखसे देश देकर दृढ़ करना। मुक्त करना। E-जो धर्ममे दृढ़ हो उन्हें दृढ़तम करना। ५-जो पापकर्मके तीव्र वेगसे अनुचित मार्गपर ह-किसीके उपर मिथ्या कलङ्कका आरोप न जारहे हैं उन्हें सन्मार्गपर लानेकी चेष्टा करना। करना। ६-रोगीकी परिचर्या और चिकित्सा करना, १०-अशुभ क्रमके प्रबल प्रकोपसे यदि किसी प्रकारका अपराध किसीसे बन गया हो तो उसे प्रकट कराना । न करना अपितु दोपी व्यक्तिको सन्मार्गपर लानेकी ७–अतिथिकी सेवा करना। चेष्टा करना। ८-मार्ग भूले हुए प्राणीको मार्गपर लाना। ११-मनुष्यको निर्भय बनाना । ह-निर्धन व्यापारहीनको व्यापारमें लगाना। संक्षेपमे यह कहा जासकता है कि जितनी मनुष्य १०-जो कुटुम्ब-भारसे पीडित होकर ऋण देने की आवश्यकता है उतने ही प्रकारके दान होसकते में असमर्थ हैं उन्हे ऋणसे मुक्त करना। है। अतः जिस ममय जिस प्राणीको जिस बातकी . ११-अन्यायी मनुष्योंके द्वारा सताये जाने वाले आवश्यकता हो उसे धर्मशास्त्र विदित मार्गसे यथा मारे जाने वाले दीन, हीन, मूक प्राणियोकी रक्षा शक्तिपूर्ण करना दान है। करना। दुःख अपहरण उच्चतम भावना प्राप्त करनेका सुलभ माग यदि है ता वह दान ही है अतः जहाँ तक आध्यात्मिक दान ___ बने दुखियांका दुख दूर करनेके लिये सतत प्रयत्नशील . जिस तरह लौकिक दान महत्वपूर्ण है उसी तरह रहो. हित मित प्रिय वचनोंके साथ यथाशक्ति मुक्त एक आध्यात्मिक दान भी महत्वपूर्ण और श्रेयस्कर हस्तसे दान दो। है। क्योकि आध्यात्मिक दान स्वपर-कल्याण-महल दानके अपात्र की नीव है। वर्तमानमे जिन आध्यात्मिक दानाकी दान देते समय पात्र अपात्रका ध्यान अवश्य आवश्यकता है वे यह हैं रखना चाहिये अन्यथा दान लेने वालेकी प्रवृत्तिपर ५-अज्ञानी मनुप्योको ज्ञान दान देना। दृष्टिपात न करनेमे दिया हुआ दान ऊमर भूमिमें बोये २-धर्ममें उत्पन्न शङ्काओका तत्वज्ञान द्वारा गये बीजकी तरह व्यर्थ ही जाता है। जो विषयी है, समाधान करना। लम्पटी है. नशेबाज है, ज्वारी है, पर वञ्चक है. उन्हें ३-दुराचरणमें पतित मनुष्योंको हित-मित द्रव्य देनेसे एक तो उनके कुकर्मकी पुष्टि होती है. दूसरे वचनों द्वारा सान्त्वना देकर सुमार्गपर लाना । * क्षेम सर्वप्रजानां; प्रभवतु बलवान् , धार्मिको भूमिपालः , ४-मानसिक पीडामे दुखी जीवोंको कमेसिद्धांत- काले काले च सम्यग्वर्षतु मघवा, व्याधयो यान्तु नाशं । की प्रक्रियाका अवबोध कराकर शान्त करना। दुर्भिक्ष चौर मारी, क्षणमपि जगतां, मास्माभूजीव लोके , ५-अपराधियोंको उनके अज्ञानका दोष मानकर जैनेन्द्र धर्मचक्र, प्रभवतु सततं, सर्वसौख्यपदायि ॥ उन्हें क्षमा करना। (शान्तिपाठ)
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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