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________________ अनेकान्त [ वर्ष : प्रारम्भ करदी है) कुछ अवशेष भी अभी कारग्वानेमे होजानेके बाद स्थान निश्चित होजाये तब) अपने प्रांत बन्द हैं। इन मभीकी महायनामे काम प्रारम्भ कर जिले और तहसीलमें पाये जाने वाले जैन अवशेषो देना चाहिये । परन्तु एक बातको ध्यानमे रखना की सूचना, यदि संभव होसके तो वर्णनात्मक परिचय आवश्यक है कि जहाँ तक होमके अपनी मौलिक ग्वोज और चित्र भी. भेजकर सहायता प्रदान करे । क्योकि को ही महत्व देना चाहिए अपनी दृष्टिसे जितना बिना इस प्रकारके सहयोगके काम सुचारू रूपसे अच्छा हम अपने शिल्पांको देव मकेगे उतना दूसरी चल न सकेगा. यदि प्रान्तीय संस्था प्रान्तवार इस इटिसे संभव नहीं। कामको प्रारम्भ करदे तो अधिक अच्छा होगा, कमसे इन कामोंको कैसे किया जाय यह एक समस्या है कम उनकी सूची तो अवश्य ही अनेकान्त' कार्यालय मुझे तो दो रास्त अभी मूझ रहे हैं: मे भेजें, वैसे निबन्ध भी भेजें. उनको सादर सप्रेम १ पुगतत्त्वाचार्य मुनि जिनविजयजी. बाब छोटे आमन्त्रण है। लालजी जैन डा. हीगलाल जैन. डा. एन. ____अब रही आर्थिक बात. जैनांके लिये यह प्रश्न तो उपाध्ये, मुनि पुण्यविजयजी, विजयन्द्रसरि. बाबू मेरी विनम्र सम्मतिक अनुमार उठना ही नहीं चाहिये जुगलकिशोर मुग्न्तार, पं० नाथूगमजी प्रेमी. डा. कमांकि देव द्रव्यकी सर्वाधिक सम्पत्ति जैनोंके पासमे बलचन्द, डा. बनारसीदासजी जैन. श्री कामताप्रमाद है. इसमे मेरा तो निश्चित मत है कि समस्त भारतीय जी जैन. डा० हॅममुग्ब मांकलिया, मि० उपाध्याय, श्री सम्प्रदायांकी अपेक्षा जैनी चाहे तो अपने स्मारकोको उमाकान्त प्रे. शाह, डा. जितेन्द्र बनग्जी. प्रो० अच्छी तरह रख सकत है। इससे बढ़कर और क्या अशाक भट्टाचार्य, श्रीयुत अद्धन्दुकुमार गांगुली. डा० सदुपयाग उम सम्पत्तिका समयका देखते हुए हासकता कालीदाम नाग, अंजुली मजूमदार. डा. स्टला है। अपरिग्रह पूर्ण जीवन यापन करने वाले वीतराग श्रीरणछोड़लाल ज्ञानी, डा० मातीचन्द, डा० अग्रवाल, परमात्माके नामपर अट सम्पत्ति एकत्र करना उनके डा. पी. के. श्राचार्य, डा० विद्याधर भट्टाचार्य, सिद्धान्तकी एक प्रकारस नैतिक हत्या करना है। यदि अगरचन्द नाहटा मागभाई नबाब आदि जैन एवं इस सम्पत्तिक रक्षक (?) इस कार्य के लिये कुछ रकम जैन पुरातत्त्व विद्वान एवं अनुशालक व्यक्तियोका देदे तो उत्तम बात, न दे तो भी मारा भारतवर्ष पडा एक जन पुरातत्त्व संरक्षक संघ" स्थापित करना हुआ है मॉगके काम करना है तब चिन्ता ही किम चाहिय । इनमेमे जो जिम विषयके योग्य विद्वान हो बातकी है। मेरी सम्यत्यनुसार यदि "भारतीय ज्ञानउनको वह कार्य सौपा जाय । उपर मैने जा नाम दिय पीठ" काशी इस कार्यको अपने नेतृत्वम करावे तो हैं उनमेसे ११ व्यक्तियों को मैंने अपनी यह योजना क्या कहना. क्योकि उन्हें श्रीमान पं० महेन्द्रकुमार मौग्विक कह सुनाई थी, जो महर्प योगदान देनेको न्यायाचार्य, बा० लक्ष्मीचन्दजी एम. ए. और श्रीतैयार है। हाँ कुछेक पारिश्रमिक चाहेगे। इसकी कार्य अयोध्याप्रसादजी गोयलीय जैसे उत्कृष्ट संस्कृति प्रेमी पद्धतिपर विद्वान जैसे सुझाव दे वैसे ढङ्गसे विचार और परिश्रम करने वाले बुद्धि जीवी विद्वान प्राप्त हैं। किया जासकता है। उनका सादर आमन्त्रण है। मान पूर्वमे ग्राहक बनाना प्रारम्भ करदं तो भी कमी नहीं लीजिये संघ स्थापित होगया। परन्तु इमकी संकलना रह मकती। ये बाते केवल यो ही लिख रहा हूँ मो तभी संभव है जब प्रत्येक प्रान्त और जिलेके व्यक्तियां बात नहीं है आज यदि कार्य प्रारम्भ होता है तो ५८० का हार्दिक और शारीरिक सहयोग प्राप्त हो, क्योंकि ग्राहक आमानीसे तैयार किये जामकते है ऐसा मेरा जिन-जिन प्रान्तोमे जैन संस्था है उनके पुरातत्व दृढ़ अभिमत है। प्रेमी कार्यकर्ताओं और प्रत्येक जिलके शिक्षित जैनो दसरा उपाय यह है कि जितने भी भारतम का परम कर्तव्य होना चाहिए कि वे (यदि स्थापित जैन विद्यालय या कॉलेज है उनमें अनिवार्यरूपसे जैन
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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