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________________ किरण ७ ] जैन पुरातन अवशेष पड़ेगा-१ प्राचीन प्रस्तर लेग्य. • सम्पूर्ण प्रतिमा जाय कि कहॉपर क्या है । इसमें अजायबघरोकी लेख जो प्रस्तरपर है'. ३ मध्यकालीन प्रनर लेग्य, मामी भी श्राजानी चाहिये। ४ धातु प्रतिमाओंके लेख। जबतक उपर्युक्त कार्य नहीं होजाते है तबतक जैन ५-भिन्न भिन्न विविध भावदर्शक जो शिल्प पुरातत्वका विस्तृत या संक्षिप्त इतिहास लिखा ही मिलते हैं. उनको सचित्ररूपमे जनताके सम्मुग्व रग्या नहीं जा मकता। कई बार मैने अपने परम श्रद्धेय जाय. यह कार्य कुछ कठिन अवश्य है पर है महत्व- और पुरातत्त्व विषयक मेरी प्रवृत्तिके प्रोत्साहक पुरापूर्ण। तत्वाचार्य श्रीमान् जिनविजयजी श्रादि कई मित्रोसे -जैनकलाम सम्बद्ध मन्दिर, प्रतिमा मान- कहा कि श्राप पुरातत्त्वपर जैन धिमे बोन कुछ म्तम्भ. लेख. गुफाएं आदि प्रम्नरोत्कीरण शिल्पाकी लिखे. मर्व स्थानाम एक उत्तर मिलता है "माधना मी सूची तैयार की जानी चाहिये जिसमे पता चल कहाँ है ?" बात यथार्थ है। मामग्री है पर उपयुक्त १ इस विभागपर यद्यपि कार्य होचका है पर जो अवशिष्ट है प्रयाताके अभावमे या ही दिन प्रतिदिन नष्ट हो रही उमे पूर्ण किया जाय। है। मंग विश्वाम है कि हमारी इस पीढीका काम है २ इस प्रकार के विविध भावोंक परिपूर्ण शिल्पोंकी समस्या साधनाका एकत्रित करना विस्तृत अध्ययन, मनन तब ही सुलझाई जासकती है जब प्राचीन माहित्यका और लेखन ता अगली परम्पराक विद्वान करेंग । नलस्पशी अध्ययन हो, एक दिन मैं रॉयल एशियाटिक Tum निगल लिया साधनाको टोलनम भी बहुत ममय लग जायगा। मोमाइटीके रीडिंगरूममे अपने टंबलपर बैटा था इतनेमे जैन मन्दिर, गुफाओं और प्रतिमाश्रा आदिक प्राचीन मित्रवर्य श्रद्धेन्दुकुमार गागुलीने-जो भारतीय कलाके चित्र कुछ ता प्रकाशित हुए है फिर भी अप्रकट भी महान् ममीक्षक अोर 'रूपम' के भतपूर्व सम्पादक थे- कम नहीं; जा प्रकट हुए है व केवल प्राचीनताका मुझे एक नवीन शिल्पकृतिका फोट दिया. उनके पास प्रमाणित कग्नक लिय ही उनपर कलाके विभिन्न बड़ोदा पुरातत्त्व विभागकी श्रोरसे पाया था कि वे इस अङ्गापर समीक्षात्मक प्रकाश डालनेका प्रयास नहीं पर प्रकाश डालें, मैंने उसे बड़े ध्यानमे देवा, बात ममझ किया गया है। गयल शयाटिक मामाइटी लन्दन में आई कि यह नेमिनाथजीकी बगत है पर यह तो तीन और बङ्गाल, 'प्राकिलोजिकलसवे आफ इण्डिया' के चार भागोम विभक्त था, प्रथम एक तृतियांशम नेमिनाथ रिपाट रुपम 'इण्डियन पाट गड हरटी'. 'सासाजी विवाहके लिये रथपर श्रारूढ होकर जारहे है, पथपर इटी ऑफ दी इण्डियन प्रागिएन्टल आर्ट बम्बई मानव समूह उमड़ा हुआ है, विशेषता तो यह थी सभीक यूनिवमिटी'. 'जनरल ऑफ दी अमेरिकन सोसाइटी मुखपर हर्षोल्लासके भाव झलक रहे थे, रथके पास पशु आफ दी श्राट'. 'भांडारकर पारिएन्टल रिमर्च इन्मिरुध था, आश्चर्यान्वितभावोंका व्यकिकरण पशमखोपर टिल्यट' इण्डियन कलचर' आदि जनरल्स एवं बहुत अच्छे ढगसे व्यक्त किया गया था. ऊपरके भागमें भारतीय अभारतीय पाश्चयं गृहोंकी मूचियोंमे जैन रथ पर्वतकी श्रोर प्रस्थित बताया है। इस प्रकार के भावो पुगतत्व और कलाक मुखका उज्वल करने वाली की शिल्पोंकी स्थिति अन्यत्र भी मैंने देखी है पर इसम मामग्री पर्याप्तमात्रामें भरी पड़ी है (जैन पुरातत्त्व तो और भी भाव थे जो अन्यत्र शायद आज तक उप. विस्तृत ग्रंथ सूचा भार विस्तृत ग्रंथ सूची और अवशेषांकी एक सूची मैंने लब्ध नहीं हुऐ । यही इसकी विशेषता है। ऊपरके भाग रखता है । मेरे इसका उदाहरण देनेका एक ही प्रयोजन मे भगवानका लोग बताया है, देगना भी है और है कि ऐसे मान जहाँ कहीं प्राप्त हो तुरन्त फोटु तो निर्वाण महोत्सव भी है, दक्षिण कोनेपर गजिमतीकी उतरवा ही लेना चाहिये । दीक्षा और गुफामे कपड़े सुखानेका दृश्य मुन्दर है इतने १६न छहों विभागोंपर किस पढतिमे काम करना होगा भावोंका व्यक्तिकरण जैन कलाकी दृष्टिसे बहुत महत्व इसकी विस्तृत रूपरेखामै अलग निबन्धमें व्यक्त करू गा।
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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