SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन पुरातन अवशेष [विहाऽवलोकन (लेखक-मुनि कान्तिसागर) [गत किरणसे आगे] दक्षिणभाग्चमे श्रवणबेलगोलामे अनेको महत्वपूर्ण लोग ना उन्हें पढ़नेमे ही वञ्चित रह जाते है । बहुन लेखोकी उपलब्धि हुई है. जो दिगम्बर जैन ममाजसे कम लोगांको पता है कि हमारे लेग्वापर कौन कौन मम्बद्ध है। इन लेम्बोका देवनागरी लिप्यंतर एवं काम कर चुके है। तदुपरि मुविस्तृत निहामिक प्रस्तावना-महित बम्बई- एक बातका उन्लेग्व मे प्रमअवशान करदूं कि मे प्रकाशन भी होचुका है। काम अवश्य ही उम प्राचीन और मध्यकालीन लेग्वनिर्माण और बुवाईमे ममयकी प्राप्त मामग्रीके आधारोकी अपेक्षा मन्तीपप्रद अतर था इम विषयपर फिर कभी प्रकाश डाला ही कहा जामकता है। दशम शता पूर्वक बहुमंन्यक जायगा । अजैन विद्वानोका बहुत बड़ा भाग यह लेख और भी मिल सकते है यदि गवेपणा मानता आया है कि य जैन लेख केवल जैन इतिहास कीजाय तो। कलिय ही उपयोगी है सार्वजनिक इतिहामसे इनका ___ मध्यकालीन जैन लेग्वांकी संख्या अवश्य ही कोई मम्बन्ध नहीं है । परन्तु मा उनका मानना मत्य प्राचीनकालकी अपेक्षा कुछ अधिक है। क्योंकि मध्य- से दूर है. कारण-कि जैन लम्बांका महत्व तोगजनैतिक कालम जैनाकी उन्नति भी खूब रही। राजवंशाम जैन दृष्टिमे किमी भी रूपमे कम नहीं। राजस्थान और गृहस्थ मभी उच्च स्थानपर प्रतिष्ठित थे। जैनाचार्य गुजगतके जो लेख छपे हैं उनसे यही प्रमाणित हो उनकी मभाके बुधजनोमे आदर ही प्राप्त न करने थे. चुका है कि उस समयकी बहुतसी महत्वपूर्ण गजकहीं-कही ता विद्वानांके अग्रज भी थे. मी स्थितिम नैतिक घटनाका पना इन्हींसे चलता है। कामराका माधनोकी बाहुल्यताका होना सर्वथा स्वाभाविक है। जो बाकानेर स्टेटपर आक्रमण हुआ था वह घटना जैमलमर. राजगृह (महठियाण-प्रशम्ति). पावापुरी नत्रन्थ लग्यमे है। गोमटेश्वग्के लग्यांसे तो उस ममय सम्पूर्ण गुजरात और राजपूताना आदि प्रान्तामे के धके भावों तकका पता चल जाता है। ये मैंने जो कुछ प्राचीन लेख प्राप्त किये गये हैं उनका बहुत उदाहरण मात्र दिये हैं। ममस्त लेखाकी एक विस्तृत ही कम भाग एपिप्राफिका इंडिया' या 'इंडियन सूर्चा (कौन लेग्य कहाँ है ? विषय क्या है ? मुख्य एण्टीकगं' में छपा है। स्वर्गीय बाबू पुग्नचन्दजी नाहर घटना क्या-क्या है ? संवन किसका है 'लिपि पंक्ति मुनि श्रीजिनविजयजी. विजयधर्ममूरिजी. मुनिगज आदि बातांका व्यांग रहने से सरलता रहेगी) ता बन पुण्यविजयजी. नन्दलालजी लोढा डा० डी० आर० ही जानी चाहिये । मैं ना यह चाहूंगा कि सम्पूर्ण भांडारकर डा० मांकलिया आदि कुछ विद्वानाने समय लेम्वाकी एक मालाही प्रकट होजाय तो बहन बहा ममयपर मामयिकांम प्रकाश डाला है। पर आज काम होजाय. प्रत्यक पत्र वाले इम कामको उठा लंउनको कितना ममय होगया. बहुतमे मामयिक भी दा चार लेख प्रकाशनकी व्यवस्था करलें नोएक नया मर्वत्र प्राप्त नहीं सी स्थितिम माधारण अंगणीक क्षेत्र तैयार होजायगा। शर्त यह कि माम्प्रदायिक
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy