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किरण ६]
सम्पादकीय
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भड़का रहे थे । परिणाम सबके सामने है। गत ३-४ वर्षों में इस निर्जीव बुतको विवाहमादि
इसी तरह जैनोंमें एकताकी बात उठती रही है। अवसरोंपर मिट्रीके गणेशकी जगह पुजवाकर देवत्व तीनों सम्प्रदायोंकी प्रतिनिधि सभाओंने अनेक बार लानेका प्रयत्न किया है। परिणाम स्वरूप व्याघरमे जैन-एकताके प्रस्ताव पास किये हैं। परन्तु इनके इसका स्वतन्त्र अधिवेशन भी हमने अपनी होशमे कार्य ऐसे रहे हैं कि इतर पक्षको विश्वास बढ़नेके पहलीबार होते सुना है। बजाय आशङ्का ही हुई है।
अभिनन्दनीय हैं वे लोग जो सचमुच जैनएकता जैन महामण्डल जिसका निर्माण तीनों सम्प्रदाय के लिये प्रयत्नशील है। हम भी २३ वर्षांसे इस साध की एकताक लिय किया गया था। वह पुदल शरीर को अपने सीनेम छिपाये बैठे है। परन्तु प्रभ तो यह है बनकर रह गया । इंजेक्शनोंके जोरसे भी उसमे कि बिल्लीकं गलेमें घण्टी कौन बाँधे । व्यक्तिगत प्राण प्रतिष्ठा न हो पाई। हम हैरान हैं कि इस निर्जीव प्रभावसं अधिवेशन करा भी लिया १०-५ को किसी शरीरको अबतक कैसे ढोते रहे, जब कि उसके कार्य- तरह एकत्र भी कर लिया, या जैन-एकता कार्यालय कर्ता स्वयं जैन-एकतासे दूर भागते रहे । जीवनभर भी बना लिया। २-४ अच्छे खासे वेतन-भोजी क्लर्क अपना-अपना सम्प्रदाय उनका कार्यक्षेत्र बना रहा, भी मिल गये, पर इन सब कार्योस एकता कैसे तीर्थक्षेत्रोंके मुकदमोंमे एक मम्प्रदायक विरुद्ध दूमरे होसकेगी ? की पैरवी करते रहे । और एकताका निजीव पुनला आय दिन जो यह तीर्थोपर उपद्रव होते रहते भी उठाते रहे।
है। यह क्यों होते है और क्योंकर रोके जा सकते महामण्डलकी ओरसे जैन-एकताका आन्दोलन है? एक दसरंक विरुद्ध पत्रों और ट्रक्टी द्वारा विषलगभग आर्यसमाजकी तरह रहा है । आयसमाजके वमन होता रहता है । वह कैसे राका जाय ? दिगम्बर उत्सवोंम दिनको तो हिन्दु-सङ्गठन पर प्रभावशाली कार्यकर्ता श्वेताम्बरोंमे और श्वेताम्बर कार्यकर्ता व्याख्यान-भजन होते और रात्रिको जैन, सनातनी, दिगम्बरोंम नि:स्वार्थ भावनासे किस प्रकार कार्य सिक्ख आदिको शास्त्रार्थ के लिये ललकारा जाता। करें और कौन-कौन करे ? जब तक यह अमली कार्यउनकं उनकं धार्मिक विश्वासोंका मखौल उड़ाया जाता क्रम नहीं बनता है। और लोग जिनकी अपने
और महापुरुषांको असभ्य शब्द कहे जाते । दिनमें यहाँ भी आवाजका कोई मूल्य नहीं है उनकं प्रयत्न व कभी हिन्दु सङ्गठनपर व्याख्यान देनसे न चूके जेन-एकता तो नहीं हो सकेगी । हाँ वह भी हमारे
और रातको शास्त्रार्थ करनेसे कभी बाज न आये। अनगिनत नेताओंकी श्रेणी में खड़े होकर भोली परिणाम इसका यह हुआ कि आर्यसमाजका हिन्दुः जनताको लानतमलामत देनेका अधिकार पा सकेंगे। सङ्गठन आन्दोलन बाजीगरके तमाशेसे भी कम डालमियानगर पाकर्षक होगया है।
१४ ५-१९४८
-गोयलीय