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________________ FACROBORASA9-BOARDENARD-COMIERREE युगके चरण अलख चिर चंचल ! [ 'तन्मय' बुखारिया ] रविकी गतिसे, शशिकी गतिसे, भूत, भविष्यतसे, सम्प्रतिसे, कभी यहाँ, फिर कभी वहाँ जो, उस मतवाले मनकी मतिसे; सम्भव कभी सभी ऊँध जाएँ, किन्तु न युगकी आँखोंमें जल! युगके चरण अलख चिर-चञ्चल !! आज परस्पर अविश्वास, सच , निर्गति-सा नरका विकास, सच , रक्त रक्तको भूल रहा-सा, चेतन जड़का क्रीत दास, सच , परिवर्तनके पग बढ़ते जब , तब होता ही है कोलाहल ! युगके चरण अलख चिर-चश्चल !! BRE-RESERROREGISROGRSIRRORSad पर, न सदा यह अन्धकार ही, प्राणोंपर विजयी विकार ही; मेरे जीवन ! उठो, न असमय , सचमुच, बनकर रहो भार ही ! क्योंकि कभी तो कविकी वाणी, बिखराएगी ही निज प्रतिफल !! (जब तव पद - नखकी कोरोंपर , लोट-लोट जाएँगे जल-थल !!!) युगके चरण अलख चिर- चश्वल ! ललितपुर, १७-६-४८ WRONGERRORIGHSANGASRAEBASHIRAISINGS वीरसेवामन्दिरको प्राप्ति अनेकान्तको सहायता गत किरणमे प्रकाशित सहायताके बाद प्राप्त हुई रकमे गत चौथी किरण प्रकाशित सहायताके बाद अनकान्तको निम्न महायता और प्राप्त हुई है जिसके १८००) 'ममनि-विद्या-निधि के रूपमे बाल-माहित्यके लिये दातार महानुभाव धन्यवादकं पात्र हैंप्रकाशनार्थ जुगलकिशोर मुख्तारने अपनी ५) ला० प्रतापसिंह प्रमादीलालजी बांदीकुई चि. दोनों दिवगत पुत्रियों मन्मति और विद्यावती चित्रारानी पुत्रीक निधनपर निकाले गये की ओरसे प्रदान किये। दानम मे। २५) श्रीमती पतलीदेवी धर्मपत्नी लारोढामलजी सेठ झथालालजी बडजात्याकं सुपौत्र और सेट जैन चिलकाना जि० महारनपुरस मधन्यवाद गेदोलालजी कामलीवाल की सुपौत्री के विवाहोपप्राप्त मार्फत भाई महाराजप्रमाद जैन बजाज लक्ष्यमे (मार्फत प. भंवरलालजी शास्त्री जयपुर) सरसावाक (बीमारीके अवमरपर निकाले दुए दानमेसे)। अधिष्ठाता 'वीरसेवामन्दिर व्यवस्थापक 'भनेकान्त'
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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