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सम्पादकीय
निस्पृही कार्यकर्ता
जिनवाणी-माताको बन्दी बनाकर रखने वालों के
गढ़ोंपर ममीक्षाओं, परीक्षाओं और पालोचनाओंके बीसवीं शताब्दीरूपी वधूका डोला अभी पाया भी नहीं था कि उसके स्वागत-समारोहके लिये समूचे
वे गोले बरसाये कि कुम्भकरणी नीदको मात करने
बाले भी हड़बड़ाकर उठ बैठे। सेठ माणिकचन्द जैन भारतमे इस छोरसे उस छोरतक उत्साहकी लहर दौड़ गई । जनतामे सेवा, तप, त्याग, बलिदानके
होस्टलोंकी दाराबेल डालनेमे जुटे तो पारेके देवकुमार
जैन भरी जवानीमे शास्त्रोद्धारकी कसम खा बैठे। भाव अङ्करित हो उठे, और बड़े ही लाड़-प्यार और चावसे जीवन-मन्देशनी नववधूका स्वागत हुआ।
फिर नाथूगम प्रेमी, दयाचन्द गोयलीय, कुमार वह अपने साथ राजनैतिक, धार्मिक और सामाजिक- देवन्द्रप्रमाद, रिषभदाम वकील, माणिकचन्द खडवा चेतना दहेजस्वरूप लाई । परिणाम यह हुआ कि का युवक-हृदय कब चुप रह सकता था ? ये मुमलमान, ईमाई, मनातनी, भार्य, सिक्ख सम्प्र
कार्यक्षेत्रम युवकोचित ही ढङ्गस आये, जिन्हे देख दायोंसे निस्पृही कार्यकर्ताओंके जत्थे-के-जत्थे कार्य- जनता साधुवाद कह उठी । इन सब अलबेले कर्मक्षेत्रमे आने लगे।
वारोंको नजर न लग जाए, इस आशङ्कासे प्रेरित जैन-समाजमे भी एक होड-सी मच गई। राजा
जैनी जियालालजी भी अपने ज्योतिष-पिटारेके लक्ष्मणदाम और डिप्टो चम्पतराय आदि महासभा
बलपर दुनियाए बदनज़रकी नजरसे बचानेको की स्थापना कर ही चुके थे। प० गोपालदाम वरैया
निकल पडे । भी मोरेनाम आसन मारकर बैठ गये और न्यायाचार्य
इन निस्पृही कार्यकर्ताओंकी लगन और दीवागणेशप्रसादजी व बाबा भागीरथदामजी वणी नगी दग्व कर जुगमन्दग्दाम और चम्पतराय अपनी बनारसमे धूनी रमा बैठे। श्रीअर्जुनलाल सेठी घीम बेरिएंटरी भूलकर यकायक दीवान हागये। ठिकानकी दीवानगिरीका मोह त्याग जयपुरम करा चारों और समाजमें जीवन ज्योति प्रज्वलित हो या मगेका मन्त्र जपने लगे। महात्मा भगवानदीन उठी। गांव-गाँवम पाठशालाएं खुल गई । पचामों हस्तिनागपुर-आश्रमको गुरुकुल-कागड़ो बना देनका विद्यालय और हाइस्कुल स्थापित होगये । सैकड़ों धुनमे स्टेशनमास्टरीको तिलाञ्जलि दे आये । बा० पुस्तकालयोका उद्घाटन हुआ। शहर-शहरमे मभाशानलप्रमादजी लग्ब नवी गृही-जीवनको धता बताकर ममितियों बनी। पत्र निकले, जैन-साहित्य प्रकाशम जोगी बन गये, और मार जैन समाजमे अलम्ब पाया, ट्रक्टोंक ढेर लग गये। इन निस्पृही सेवकांक जगा दी । मगनबहन, ललिताबाई और चन्दा मम्मानम श्रीमन्तान रुपयोंकी थैलियां खोल दी। मकुमारी पति-वियोगमन झुलसकर जैन-बदनांका लनवाल थक गय पर श्रीमन्त आज भी थैलियांक सीता, अञ्जना, राजमती बनानमें लग गई । जैनी मुंह खोल हए अपने निम्गृही कार्यकर्ताओंकी बाटम ज्ञानचन्द और प. पन्नालाल बाकलीवालने साहित्यो- बैठे हुए हैं। क्या श्रेयांसको जैसे ऋषभनाथ और द्धारका बीड़ा उठाया तो देवबन्दके तीन सपूतो- भिलनीको जैसे राम घर बैट मिल गये थे, बा० सूरजभानजी वकील, पं० जुगलकिशोर जी इनको भी अपनी समाजक अमिट, अडोल, निस्पृही मुख्तार, बा. ज्यातिप्रसादजी जैन-ने देवबन्दसही कार्यकत्र्ताकि फिर दशन होग? क्या इन्हें एक बार