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________________ किरण ६ ] जैनपुरातन अवशेष २३९ हमारी कलाकी हिंसा हम ही कर रहे है । लोग तो पूर्णतः इनपर उपेक्षित भावसे काम लेते दक्षिण-भारतमे दिगम्बर कथाओंपर ऐतिहासिक आये हैं । मेरे परम मित्र डा० हंसमुखलाल सांकप्रकाश डालनेवाले भाव उत्कीर्णित मिले हैं सबसे लिया, श्रीशान्तिलाल छगनलाल उपाध्याय, उमाकान्त अधिक आवश्यक कार्य इन अवशेषोंका है जो सर्वथा प्रेमानन्दशाह, मि० रामचन्द्रम आदि कुछ अजैन ही उपेक्षित हैं। विद्वानोंने जैनमृति-विधान, कला-कौशलके विभिन्न ३ (ऊ) अष्टमङ्गल, स्वस्तिक, नद्यावत और अङ्ग-प्रत्यङ्गोंपर बड़ा गम्भीर अन्वेषण कर जो कार्य स्तूपाकतिम जो प्रतिमाएँ पाई जाती हैं उनका समावेश किया है और श्राज भी वे इसी विपयमे पूर्णत: मै इस विभाग करता हैं क्योंकि ये भी हमारी संस्कृति संलग्न है, वह हमारी समाजकं विद्वानोंके लिये के विशिष्ट अङ्ग है, ये अवशेष जङ्गालोमे पडे रहते है। अनुकरणीय आदर्श है । कलकत्तामे प्रोफेसर इनकी मुधि कौन ले ? नालन्दामे मैन एक स्वस्तिक अशोककुमार भट्टाचार्य है, जो जैनमूति शास्त्रपर -जो ईटोंमे उठा हुआ है-देखा, वह इतना सुन्दर वृहत्तर अन्य बृहत्तर प्रन्थ प्रस्तुत करने जारहे है । मैंने उनके था कि देखते ही बनता है। उसकी रेखाग एव मोड़ कामको देखा, स्तब्ध रह गया । अजैन होते हुए मन्दर थे । जैन-मन्दिगम जो म्तम्भ लगाये जाते है भी उनने जैनकलाके बहुसंख्यक सुन्दर और उपेक्षित उनमम किसी-किमीम वीतरागकी प्रतिमाएँ अति तत्त्वा तत्त्वोको खोज निकाला है। परन्तु मुझ अत्यन्त रहती है। बौद्धोंक स्नूपोंकी जैसी आकृति बनती है पार परितापके साथ मूचित करना पड रहा है कि इन वैमी ही आकतिवाली जैन-प्रतिमा तपमे मैंने अजैन विद्वानोंकी रुचि तो बहुत है पर उनको अपने महादेव' मिर्माग्या (मुंगेर जिला) रोहणम्बेडम देखी विषयमे महाय करने वाले साधन प्राप्त नहीं होते, हैं । इन प्रतिमाओंम अधिकांश नग्न ही रहा यही कारण है कि अजैन विद्वानोंस भूले होजाती करती थीं। है । तब हमारा समाज चिल्ला उठता है कि उसने ___ उपर्युक्त पंक्तियोंसे विदित होगया है कि जैनोंकी। बड़ी गलती की । जब हम म्वय न तो अध्ययन करते है और न करनेवालोंको सहायता ही पहुँचाते हैं। प्रतिमाकला-विषयक सम्पत्ति कितनी महान और जैनममाजको अब करना तो यह चाहिये कि म्पर्धा उत्पन्न करनेवाली है । इन सभी प्रकागेपर उपयुक्त प्रतिमाओमसे जो सुन्दर, कलापूर्ण है उनका आजतक किमी भी विद्वानके द्वारा सार्वभौमिक एक या अधिक भागोंमे अल्बम तैयार कराया जाय, प्रकाश डाला जाना तो दूर रहा, किसी एक प्रधान अङ्ग जिसमें अजैन विद्वानों तक वह वस्तु पहुँच मके। पर भी नहींके बराबर काम हुआ है । जैन-समाजकं आज हम देखते हैं भारत और बाहरकी जनताको १ यह स्थान गिद्धौर राज्यके अन्तर्गत है। यहाँ पर बड़ा जितना ज्ञान बौद्धपुरातत्त्वका है उसका शतांश भी प्रसिद्ध विशाल शैव-मन्दिर है, इसकी निर्माणकला शुद्ध जैनांका नहीं, जो है वह भी भ्रमपूर्ण है। जैन है और वहाँ के जमींदारसे भी मालूम हुआ कि ४ स्तम्भपूर्वमें यह जेन-मन्दिर ही था, पर प्रतापी नरेशने ५०- मध्यकालीन भारतम जैनमन्दिरक मम्मम्व ६० वर्ष पूर्व हर्म परिवर्तित कर शिव-मन्दिरका रूप दे १ लाहोरसे प्रकाशित “जैन इकोनोग्राफी" मेरे अवलोकनमें दिया। यहॉपर किसी कालग जैनी अवश्य ही रहे होंगे, आई है। यह जेन दृष्टिम बहुत टिपूर्ण है। उदाहरण के क्योंकि लछवाड़ भी समीप है तथा काकन्दाके पाम ही तौरपर प्रथम ही जो चित्र दिया है वह स्पष्टरूपसे है । यहाँ के मन्दिरमें बौद्ध-मूर्तिए अच्छी-अच्छी ऋषभदेवजीकी प्रतिमा है जब कि उसके निम्न भागम सुरक्षित हैं, जिनपर लेख भी हैं । विचित्रता यहाँपर यह महावीर लिखा है । एमी भलं अक्षम्य हैं । है कि कुम्भार पंडे हैं। देखें "जंन प्रतिमाप", शीर्षक मेरा निबन्ध । . --
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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