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________________ Regd. No. A-731 कीरसेकामन्दिरके नये प्रकाशन __ अनित्यभावना - मुरनार श्रीतुगलकिशानी ६ न्याय-दापिका (महत्वका नया संस्करण) के हिन्दी पद्यानुवाद र भावार्थ महित । एवियोगादिके न्यायाचार्य प० दरबारीलालजी कोठिया द्वारा सम्पादित कारगण केमा ही शाकमन्नस हृदय क्यों न हो, इसको एक बार अनुवादित न्यायदीपिकाका यह विशिष्ट संस्करण बार पढ लेनेसे बड़ी ही शान्तताको प्राप्त हो जाता है। अपनी स्वाम विशेषता रखना है। अबतक प्रकाशित हमके पाठमे उदासीनता तथा खेद दूर होकर चित्तम संस्करणोंमे जो अशुद्धियां चली श्रारही थीं उनके प्राचीन पमनता और सरसता प्राजाती है। सर्वत्र प्रचारके प्रतियोपरसे सशोधनको लिये हुए यह सस्करण मूल ग्रन्थ योग्य है। मूल्य ।) और उसके हिन्दी अनुवादके साथ पाक्कथन, सम्पादकीय, : बाचाय प्रभाचन्द्रका तत्वार्थसूत्र-जया १.१ पृष्ठकी विस्तृत प्रस्तावना, विषयमची और कोई ८ प्राम संचिम सूत्रगन्ध, मुख्नार भीजगनकिशोरजीकी पाराशसि संकलित है, साथम सम्पादक-द्वारा नवनि मानुवाद व्याख्या सहित । मूल्य।) 'काशाख्य' नामका एक सस्कृत टिप्पण भी लगा हुआ है, मत्माधु-स्मरण-मङ्गलपाठ-मुख्तार श्री जो ग्रन्थगत कठिन शब्दो तथा विषयोंको खुलामा करता जुगलकिशोरजीकी अनेक प्राचीन पद्योंका लेकर नई योजना, हुना विद्यार्थियों तथा कितने ही विद्वानोंके काम की चीज सुन्दर हृदयग्राही अनुवादादि-सहित । इममे भीवीर है। लगभग ४.. पृष्ठों के इम सजिल्द बृहत्संस्करणका पमान बार उनके बादके, जिनसेनाचार्य पर्यन्त,१ लागत मूल्य ५).है। कागबकी कमीकै कारण थोड़ी महान् प्राचार्योके अनेकों प्राचार्यों तथा विद्वानों द्वाग ही पतियाँ छपी हैं और थोड़ी ही अवशिष्ट रह गई । किये गये महलके १३६ पुण्य स्मरयाका संग्रह है और अनः इन्दुकको शीम ही मंगा लेना चाहिये। शलमे, लोकमंगल कामना. २ निस्पकी प्रात्म-प्रार्थना ७ विवाह-समुरेश्य-लेखक पं. जुगलकिशोर माधुवंपनिदर्शन जिनस्तुति, ४ परमसाधुमुखमुद्रा भोर मुस्तार, बालमं पूकाशित चतुर्थ सस्करण । ५ सत्साधुवन्दन नामके पांच प्रकरण। पुस्तक पढते यह पुस्तक हिन्दी-साहित्यमें अपने दगकी एक ही समय बड़े ही सुन्दर पवित्र विचार उत्पन्न होते हैं और चीज है। इसमें विवाद में महत्वपूर्ण विषयका बड़ा ही साथ ही प्राचार्योंका कितना ही इतिहास सामने प्राजाता मार्मिक और तास्तिक विवेचन किया गया है। अनेक । नित्य पाठ करने योग्य है। मू.11) विरोधी विधि-विधानों एवं विचार-पवृत्तियों से उत्पन हुई ४ अध्यात्म-कमल-मासण्ड-या पक्षाध्यायी विवाहकी कठिन और जटिल समस्याश्रीको बर्ग युक्तिक तथा लाटी सहिता आदि अन्धोंके कर्ता कविवर राजमल्ल साथ दृष्टिके स्पष्टीकरण द्वारा सुलझाया गया है और इस की अपूर्व रचना है। इसमें अभ्यात्मसमुद्रका कूजेमे बन्द तरह उनमें दृष्टिविराधका परिहार किया गया। वि किया गया है। मायमें न्यायाचार्य ५० दरबारीलालजी स्यों किया जाता है? धर्मसे, समाजसे और गास्थाश्रमकोठिया और पवित परमानन्द जी शाम्बीका सुन्दर से उसका क्या सम्बन्ध? यह कब किया जाना चाहिये। अनुवाद, विस्तृत विषयसूची तथा मुख्लारपीजगल किशोर उसके लिये पणे मार जातिका क्या नियम होसकता है। नीकी लगभग ८० पेजकी महत्वपूर्ण प्रस्तावना है। विवाह न करनेसे क्या कुछ हानि-लाभ होता है! बदा ही उपयोगी अन्यो । मू. ११) इत्यादि बातोंका इस पुस्तकम बड़ा ही युक्ति पुरस्सर ५ उमास्वामि-भावकाचार-परीक्षा- मुख्तार एब हृदयमाही वर्णन है। बढिया पार्ट पेपरपर छपी है। भीजुगलकिशोरजीकी ग्रन्थपरीक्षाओका प्रथम अश, विवाहोंके अवसरपर वितरण करने योग्य है। मू०॥) अन्य परीक्षाअकि इतिहासको लिये हुये १४ पेजकी नई प्रकाशन विभागप्रस्तावना सहित । भू.) वीरसेवामन्दिर, सरसावा (सहारनपुर) प्रकाशक-पं. परमानन्द जैन शास्त्री भारतीय ज्ञानपीठ काशीके लिये प्राशाराम खत्री द्वारा रॉयल प्रेस सहारनपुरमें मुद्रित
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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