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अनेकान्त
भी मट्टा दे रहे हैं। फिर भी जबतक हम सभी भारत- जारहे हैं। दिल्लीके जिस चांदनीचौकमें मुसलमानी पुत्र अपने कर्तव्यको न सममें और उस ओर मल्सनतमें भी कभी मांस नहीं बिका, वहां अब हर प्रयत्नशील न हों तबतक कैसे हमारे देशकी उन्नति १० गजकी दूरीपर कबाब और गोश्त-रोटी बिकने हो सकेगी?
लगे हैं। अण्डोंका प्रचार होता जारहा है। हमारी जैनसमाजका कर्तव्य
नई दिल्ली भी इस दूषित खान-पानसे प्रभावित हो अतः अब जैनसमाजका कर्तव्य हो जाता हैं कि रही है । क्लबोंमें सभ्य सोसायटीके नामपर शराव यह स्वार्थसाधन करने वाली देशभक्तिसे बचे, राज- और जूश्रा जरूरी होगया है । मिनेमाओंके हस्नोनैतिक दल-दलसे दूर रहे और सही अर्थोंमे भारतीय इश्कके नामोंसे अश्लीलता-निलज्जताका जो पाठ सपूत बने ।
हमारे बालक-बालिकाएँ जवानीकी चौखटपर पाँव (१) किसी भी जैनको म्यूनिस्पलकमेटियों, रखनेसे पहले पढ़ लेते है, उससे हमारी नस्लोंमे डिस्ट्रिक्ट बोडों, कोन्सिलों और व्यवस्थापक सभाके घुन लगने लगा है । अब समय आगया है कि लिये स्वतंत्र उम्मीदवारक नाते कभी भी खडानहीं होना श्वेताम्बरजैन-साधु श्राश्रमोसे निकल आएँ । गलीचाहिये। म्वतन्त्र बडे होनेमे साम्प्रदायिक उत्पातकी गली, कूचे-कूचेमे मभाएँ करके मांस-मदिराका श्राम हर समय सम्भावना है। अत: किसी भी व्यक्तिको
जनतास त्याग करायें । मद्य-माँस-निपेधिनी सभा यह अधिकार नहीं है कि वह व्यक्तिगत महत्वा- स्थापित करके-सिनेमा और समाचारपत्रोंक विज्ञाकाँक्षाओं के लिये समची समाजको खतरेमे डाल दे। पनों-द्वाग, पोस्टरों-द्वारा, छोट-छोटे ट्रेक्टों और यदि कोई स्वार्थी ऐसा करनेका दःसाहस करे भी तो व्याख्यानों-द्वारा इस बढ़ती प्रथाको रोके । हमारे ममाज का उसका साथ हर्गिज़ नहीं देना चाहिये। जिन पूर्वजोंने यज्ञ-याज्ञादि और उच्च वर्गों में हिंसा चुनाव-निर्वाचनकी उम्मीदवारी के लिये उसी व्यक्ति- सवेथा त्याज्य करादी थी, निम्न श्रेणीक भी बहत कम का खड़ा होना चाहिये और उसीका हमे समर्थन उसका प्रयोग करते थे। आज उनके हम वंशज उनके किये करना चाहिये जिसको उमके त्याग, बलिदान या
हुए अनथक कार्यपर पानी फिरते देख रहे हैं और हाथयोग्यताके बलपर देशके अधिकारी वर्गने खडा किया पर-हाथ बांधे चुपचाप बैठे हैं। कहीं-कहीं वेश्यानत्य हो । जिस कार्यमे देशकी भलाई हो, बहुसंख्यक भी चालू होगये है
भी चालू होगये हैं। हम चाहिए तो यह था कि हम जनता जिम वगके कार्यको सराहे, उसे विश्वस्त
* पूर्वजोंके कार्यको आगे बढ़ाते । इनका ममृचे भारतमे समझे हमे उसी वर्गकी लोक-हितैषी योजनाओम विरोध करके हम यूरुप और इम्लामी देशोंमे पहुँचते भाग लेना चाहिये । व्यर्थके राजनैतिक दलदल में नहीं और कहाँ हम अपनी आँखोंक समक्ष इस धर्मघाती फँसना चाहिये । यह वह दलदल है कि एक बार भी भावनाका उत्तरी
भावनाको उत्तरोत्तर बढ़ती हुई देख रहे हैं। भूलसे फेंस जानेपर फिर कभी उद्धार नहीं।
भारतीय पूर्ण शक्तिशाली और बलवान हों, । अतः हमारी समाजका कर्तव्य है कि अब वह अहिंसक हों, उनके हृदयमे दूसरोंके प्रति दया-ममता अपनी सस्कृति और धार्मिक आचार-विचारका हो । वह महावीरकी तरह पशु-पक्षियोंके पीड़ित बडी योग्यतासे प्रसार करे । और यह प्रसार तभी होनेपर दयाई हो उठे, पतित-से-पतितको भी ईसाकी हो सकता है जब हम जैनधमेके मल सिद्धान्तोको तरह उवार सकें। अपने जीवन में उतारे।
(३) हमारी वाणीमे जादू हो, हमारी पाणीसे (२) हमारे देशमे अब मांस-मदिराका प्रमार जो भी वाक्य निकले उसका कुछ क़ीमती अर्थ हो। उत्तरोत्तर बड़े बेगसे बढ़ता जारहा है। दिन-पर-दिन लोग हमारी बातको निरर्थक न समझकर मूल्यवान इस तरह के रेस्टोरेण्ट और होटल बड़ी संख्यासे खुलते समझ । जनताको यह विश्वास हो कि प्रत्येक जैन