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किरण ]
सम्पादकीय
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हालेण्ड, जर्मन आदिकी तरह छोटे-छोटे क्षेत्रोंमें था। अब तो यह अपनी मनोभिलषित इच्छाओंकी विभाजित हो जायगा।
पूर्तिका अमोघ उपाय बन गया है। स्वतन्त्रताके बाद जानि-मदका अब यह हाल है कि अब यह तप-त्यागकी भावश्यकता नहीं रही, अत: बड़े बड़े चतुवोंमे मीमित न रहकर हजारों शाखा-उप देश-द्रोही भी अब अपनेको देशभक्त बेझिझक कहते शाखाओंमे फट निकला है। ये चतर्वर्ण एक दसरेसे हैं । जो अधिकारी गान्धी कैपको देखकर भड़क लड़ते ही थे अब परस्परमे भी ताल ठोकने लगे है। उठते थे, वे अब गान्धीजीके चित्रकी पूजा करते हैं। म्यूनिस्पलकमेटियों, डिस्टिक्टबोडोंकेचनावोंमे संघर्ष- जिन अधिकारियोंने देश-भक्तोंको फांमीपर लटका ममाचार हमारे सामने है। अब केवल चार वर्णोंमे दिया, गालियोंसे भून दिया, जेलोम मड़ा-मड़ाकर ही मंघर्ष नहीं रहा, अपित चौबे-पाण्डे, मिश्र-द्विवेदी, मार डाला, वे भी आज देशभक्तिका जामा पहन कर गहलोत-राठौड़, चौहान-कछवाहे, जाट-अहीर, गजर. बड़ी शानसे निकलते हैं। माली, अप्रवाल-श्रोसवाल, माहेश्वरी-खण्डेलवाल, देश-सेवक जूझते रहे, भूखे मरते रहे, उनके श्रीवाम्नव-सक्सेना, मुनार-लुहार, धोबी-तेली, चमार बच्चे बिलखते रहे, औरते सिसकती रही और जो भङ्गी आदि हजारों उपजातियोंको लेकर संघर्ष होने ठाटमें नौकरी करते रहे, क्लबोंमे पीते-नाचते रहे. लगे हैं। भील-कोल, द्राविड-आदिवासी और अछूत- खजान भरते रहे, वे ही आज हमको कर्तव्य का बोध ममस्या अभी हल हो नहीं पा रही है कि यह जाति- करानेमे गर्वका अनुभव कर रहे हैं। मालूम होता है मदका विषधर और फन फैलाकर खड़ा होगया है। मारी भूग्वी बिल्लियाँ भगतन बन गई है। हम उन मोहन (गान्धी) की अनस्थितिमे इम कालीदहमे सब मजनों को भी जानते है जो युद्धमे अंग्रेजोंको कूदकर कोन कालिनागको विष रहित करे, यह मुझ महायता करते रहे। जर्मन-विजयकी खुशी भी बड नहीं पड़ रहा है। यदि शीघ्र इसका विषहरण नहीं ठाटसे मनानेमे पेशपेश रहे। वे ही हवाका रुख किया गया तो सारे भारतमे यह विष फैलते बदलते ही आजाद हिन्द फौजकी सहायताको भोली देर नहीं लगेगी।
लेकर निकल पड़े और अपने दूधमुंहे बच्चोंको माम्प्रदायिक और धार्मिक उन्माद महात्माजीक इंकलाब भगतसिह जिन्दाबाद और पूजीवाद मुर्दाबाद. बलिदान खमारीलेते नजर आरहे है, पर बरसाती के नारे लगाते देख फूल उठते हैं। क्योंकि वे जानते हैं हवा पाते ही यह उन्माद यदि फिर उठ खड़ा हश्रा ती कि अब इसमे जानको जोखिममें डालनेका प्रभाव न फिर यह राक्षस रामके मारे भी नहीं मरेगा। रहकर जानको मुटियानका अमर पागया है।
इसके अतिरिक्त भारतमें पाकिस्तानी अडूर अब देशभक्ति राजनैतिक अधिकारियोंकी स्थली धीरे-धीरे बढ़ ही रहा है। काश्मीर और हैदराबादका बन गई है। चर्खा-दाली, काँग्रेमी, सोसलिष्ट, समस्या भयावह बनी हुई है । कम्युनिष्ट घुनके कीड़ॉ. कम्यूनिष्ट आदि इस अखाड़ेमें लगर बांधकर उतरे की तरह भारतको जर्जरित कर ही रहे हैं। भ्रष्टाचार हुए हैं। भारतका हित किसम है, इतना सोचनेका और घूमखोरीका यह हाल है कि मालूम होता है हम इन्हें अवकाश कहाँ ? अपनी पार्टीका हित किसमें है भारतमे न रहकर ठगों-चोरोंके मुल्कमे बम गये हैं। और विरोधी पक्ष किस दावपर पछाड़ा जाय, यही
अब देश-सेवा आत्मशुद्धिका साधन न रहकर चिन्ता इन्हे हरवत बनी रहती है। गनीमत है कि स्वार्थ और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओंकी साधक बन १००-५० बरे देशरम अभी जीवित हैं और उनके गई है। वे दिन हवा हप जब देशके लिये त्याग हाथमें शासनकी बागडोर है, वे मन-वचन-कायम करना और कष्ट महना नैतिक कर्तव्य समझा जाता भारतकी स्थिति सुधारनेमें अहर्निश प्रयत्न कर गंह था और देशभक्त कहलाना श्रात्म-प्रतिष्ठाका द्योतक हैं और प्रान्तीयता, साम्प्रदायिकता आदिकी जड़ोम