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किरण ५ ]
हृदयों में बड़ा जोश तथा अरमान था, किन्तु वह समाज के किसी काम भी नहीं आया। कुछ इने-गिने महानुभावन ही इतना समय ले लिया कि औरों को अपने हृदयकी बात कहनेका अवसर ही नहीं मिला । पास-पास ठहरे हुए होते हुए भी किसीका किसीसे कोई परिचय नहीं कराया गया, न पारस्परिक सम्पर्क ही स्थापित हुआ । महिला कार्यकर्ताओं तथा नेताओं मे सिर्फ श्रीमती लेखवती जैन थी । यह दूसरी कमी है कि जैनसमाज स्त्री-शिक्षा प्रचार के इस युगमें अभी तक दो-चार भी महिला लीडर पैदा नही कर सका। मै यह मानने को तैयार नहीं कि जैन समाज मे उच्च शिक्षा प्राप्त योग्य महिलाओं का अभाव है । दर्जनों नाम मै गिनवा सकता हू जिनमें श्रीमती रमारानी जन धर्मपन्ना साहु शान्तिप्रसादजी, धर्मपत्नी ला राजेन्द्रकुमार जा, पंडिता जयवन्तीदेवी, धर्मपत्नी श्री ऋषभसेन महारनपुर, श्रीमती रामचन्द्र मिगल सोनीपत आदि कुछ हस्तियाँ है जिनपर किसी भी समाजको गर्व हो सकता है। पर बात वास्तवमे यह है कि जैनममाजमे योग्यमे योग्य व्यक्ति, कार्यकतो, विद्वान होते हुए भी, एक प्रेरक, संयोजक, मग्राहक तथा संचालक शक्तिका अभाव है। और परिपदम वह शक्ति पूज्य ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी तथा बैरिस्टर श्रीचम्पतरायजीकं स्वगवासके पश्चात् समाप्त हाई। अब दरी काम है, पारस्परिक सम्पर्कका सर्वथा अभाव ह । और सब शिथिलताका यही कारण है ।
मुजफ्फर नगर परिषद् अधिवेशन
अधिवेशनकी समस्त कायवाही देखनेके बाद यह कहा जा सकता है कि परिपद वैधानिक तथा प्रतिनिधित्व की दृष्टि (Constitutional and Representative points of es से बहुत कमजोर है। ऐसा मालूम होना था कि जैसे परिषद किसी विधान के नीचे काम ही नहीं कर रही। विधान के किसी भी प्रश्नपर चैलेंज करने पर परिषद के मुख्य संचालकीक पास कोई उत्तर नहीं होता था। प्रति-निधि की हम तो यह कहा जासकता है कि हर एक उपस्थित महानुभाव अपना ही प्रतिनिधि था। जहाँ
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परिषदका केन्द्रीय ऑफिस अत्यन्त कमजोर तथा अव्यवस्थित है, वहाँ शाखा सभाएँ तो न होने के बराबर है। यदि इस वर्ष मे सभापति श्रीरतनलालजी और मन्त्री श्रीतनसुखरायजी इन त्रुटियों को दूर कर सके तो बड़ा काम होगा ।
विषय-निर्धारिणी सभामे चन्दा करते समय बनाया गया कि पिछले पाँच बर्षोमं श्रीसाहू शान्तिप्रसादजीन ९० हजार रुपया परिषदकी महायताक लिए दिया । यह बहुत बड़ी रकम है और उसके लिये समाज तथा परिषद साहूजीका जितना उपकार माने कम है। इस बड़ी रकमके अतिरिक्त ममाजसे भी पाँच वर्षमे चन्दे, सहायता आदिके रूपमे २०, २५ हजार रुपये आये होंगे। किन्तु क्या यह कहा जा सकता है कि इतने रुपये खर्च करके भी परिषद इन वर्षोंमें कुछ काम कर सकी है, सिवाय इसके कि परिषद को इतने वर्ष सिर्फ जिन्दा रख दिया गया है, मरन नही दिया गया ।
परिषद के अधिवेशन मे जो प्रस्ताव पास हुए है, उनमे सबसे महत्वपूर्ण प्रस्ताव वह है जिसमे हरिजनमन्दिर प्रवेश बिलों और दानके ट्रस्टोंके कानून बनाने मे सरकार से जैनोंको अपना दृष्टिकोण पेश करने का अवसर देनेकी माँग है। यह अत्यन्त दूरदर्शिता. पूर्ण, नीतिपूर्ण और व्यवहार कुशलता परिचायक प्रस्ताव है। इस प्रस्तावका अनुमादन करते हुए श्री साहू शान्तिप्रसादजीने जिस योग्यता तथा सभा चातुर्यका परिचय दिया वह अत्यन्त सराहनीय था । श्री मतिप्रसादजीका समर्थक भाषण तो ऐसा था जैसा किसी धाराममामे बहुत ही सुलभे हुए स्टेटम्मैनका धारा प्रवाही भाषण हो । प्रस्तावका विराध इतना युक्तिहीन, श्रमयत भाषापर्ण तथा जिद भग था कि जनतापर उसका जग भी असर नहीं हुआ । प्रस्ताव अत्यन्त बहुमतमं पास होगया । आन वाले वर्षोमं जैन समाजका मराठित होकर अत्यन्त जागरुक तथा चौकन्ना रहकर निहायत हाशियारी तथा प्रभावश्रृंगा ढङ्गसे कार्य करना चाहिए ताकि भविष्य में बनने वाले कानून अधिक अधिक