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________________ २०६ अनेकान्त [ वर्ष ९ हमारे अनुकूल बन सकें। यदि हमने जरा-मी भूल जी एक मिपाही ढगकं कार्यकर्ता हैं । आशा है कि की तो उसकी हानि जैन ममाजको सैकड़ों वर्षों तक वे परिषद्के मगठन-कार्यको ठीकरूपसे करेगे और उठानी पड़ेगी। यदि यह कार्य जैनममाजके तीनों आपकी समाजका पूरा महयोग मिलेगा। मम्प्रदाय मिलकर करे, तो और भी अच्छा है। परिषद के मभापनि श्रीरतनलालजी है। आपकी प्रबन्धक कमेटीके चुनावके ममय जो आलोचना योग्यता, कार्यकुशलता, त्याग, देशभक्ति आदि की हुई, उमसे हम काफी मीग्वना चाहिये। नामालूम जितनी प्रशमा की जाय कम है। ममाज आपमे यही हम नुमायशी, निकम्मी कमेटियोंके चक्करम कब चाहती है कि समाजका नतृत्व ठीक-ठीक करके निकलेंगे और ठोम काम करने वाली कमेटियाँ ममाजमे काम ले। बनाना कब माग्वेगे ? गाजियाबादक एक भाईने नवयुवकोंको कई बार महामन्त्री-पदसे श्रीराजेन्द्रकुमारजीने त्यागपत्र इकट्ठा किया, किन्तु उसके परिणामस्वरूप किसी दिया। वह म्वीकृत होगया। आपकी मेवाएँ जैन- ग्वाम बात या कामका ज़िकर नहीं सुना । समाज और परिषदके लिए महान हैं। परिषदकं ममम्त बानों को देखते हुए परिषद्का यह अधिस्थापनाकालसे ही आपका परिषदसे मम्बन्ध रहा वंशन न विशेष उत्साहवर्धक ही था और न निराशाहै। तन-मन-धनसे उमका कार्य आप २०, २५ वर्षसे पूर्ण । मब आलोचक काम देखते है, काम चाहते है, कर रहे है। इतने वर्ष कार्य करने पर अवकाश किन्तु काम करना कोई नही चाहता । और इमी चाहना मर्वथा उचित ही था। आपके स्थानपर श्री- लिए काम नहीं होता। काश, हम सब स्वय कुछ तनसुखरायजी महामंत्री चुने गये। लाला तनसुखराय काम करना सीखे बर्नार्ड शाके पत्रका एक अंश सुप्रसिद्ध अंग्रेज विद्वान विचारक जार्ज बर्नार्डशा अपने २१ अप्रैल सन् १९४८के एक पत्रमे, जो उन्होंने बाबू अजितप्रसादजी जैन एम० ए०, लखनऊको उनके पत्रके उत्तरमे भेजा है, लिखते है कि 'बहुत वर्ष हुए जब उनसे पूछा गया था कि प्रचलन धर्मोंमसे कौनमा धर्म ऐसा है जो उनके अपने धार्मिक विश्वासके सर्वाधिक निकट पहुँचता है, तो उन्होंने उत्तर दिया था कि क्वेकर मित्रमण्डलका पन्थ और जैनधर्म । किन्तु जब वे भारत आये और यहाँ एक जैन-मन्दिरको देखा तो उन्होंने इम मन्दिरको अत्यन्त भद्दी घोड़ेके मूंडवाली मूर्तियोंसे भरा पाया। तीर्थङ्कर-प्रतिमाएं अवश्य ही जादू-असर, सुन्दर और शान्तिदायक थीं, किन्तु वे भी भोले मूर्तिपूजको-द्वारा मामान्य देवी-देवताओं की भाँति पूजी जा रही थीं। प्रज्ञ जनमाधारणको प्रभावित करनेके लिये मब ही धोको उन अनुयायियोंकी योग्यताके अनुसार मत्तियों एवं अतिशय-चमत्कारादि-द्वाग निचले म्नरपर लाना पडता ही है। ज्यातिप्रसाद जैन, . लखनऊ, ना० १८-५-१९४८
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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