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________________ मुजफ्फरनगर-परिषद-अधिवेशन (बा. माईदयाल जैन बी० ए०, बी०टी०) परिपदके मुजफ्फरनगर अधिवेशनमे मम्मिलित १२ बजे दिनकी सख्त गर्मीम गाड़ी स्टेशनपर होनेक प्रश्न मेरे मनमे डाँवाडीलपन तथा दुविधा पहुँची । वहाँ स्वयसेवक और सवारियाँ तैयार थी। पैदा करदी। हृदय और मस्तिष्कमे एक द्वन्द्व उत्पन्न सनातनधर्म-कालजक विशाल छात्रावासमे ठहरने होगया । परिषदकी शिथिलताके कारण उसके प्रति और भोजनका प्रबन्ध था । सभाका प्रबन्ध उदासीनता होना स्वाभाविक है । परन्तु स्थापनाकाल स्थानीय जैन हाई स्कूल की बिल्डिङ्ग और टाउन हाल से उससे सम्बन्ध होने के कारण उसके प्रति एक माह के मैदानम था। सा भी है, कुछ उससे श्राशाएँ हैं। समस्त बातें मुजफ्फरनगर की जैन बिरादरीके उत्साह,सुप्रबन्ध सोचकर, मैं १५ मईको प्रात: देहलीसे मुजफ्फरनगर प्रेमपूर्ण श्रातिथ्य तथा सुव्यवस्थित पुर-तकुल्लुफ के लिये रवाना होगया। भोजन और नाश्तेकी जितनी प्रशसा कीजाय कम है। सुबह ठडाई-सहित नाश्ता, फिर कच्चा भोजन और देश जो उत्तम बाल-माहित्य न रखता हो कभी शामको पक्का ग्वाना । प्रबन्ध इतना अच्छा कि किसी प्रगति नही कर सकता । बालकोंके अच्छे-बुरे को किमी बातका जरा भी शिकायत नहीं। भोजनसंस्कारोंपर ही समाजका सारा भविष्य निभर रहना प्रबन्धक बारम मै इतना ही कहूँगा कि हमें कुछ है और उन संस्कारोंका प्रधान प्राधार बाल-साहित्य मादगीम काम लेना चाहिए, जिससे हरएक स्थानकी ही होता है। यदि अपने समाजको उन्नत, जीवित बिरादरी परिपद-अधिवेशनको अासानीसे बुला मके, एवं प्रगतिशील बनाना है, उसमें मच जैनत्वकी या कमसे कम मुनासिब खर्चमे ठीक प्रबन्ध होसके । भावना भरना है और अपनी धर्म-सस्कृतिको, जा विश्व कल्याणमे विशेषरूपस महायक है, अक्षुण्ण मुजफ्फरनगरकी बिरादरीमे श्रीबलवीरसिहजी रखना है तो उत्तम बाल-साहित्यके निर्माण एव पुगने कार्यकर्ताक अतिरिक्त बा. श्रीजयप्रकाशजो प्रसारकी ओर ध्यान देना ही होगा । और उमकं तथा श्रीसुमनप्रसादजी एडवोकेट, एम. एल. ५० लिये यह 'सन्मति-विद्या-निधि' नीवकी एक ईटका काँग्रमी कार्यकर्ता दो एस रत्न है जिनका जैनममाजकाम दे सकती है । यदि समाजन इस निधिको को अधिक उपयोग करना चाहिये । श्रीसुमतिप्रमादअपनाया, उसकी तरफसे अच्छा उत्साहवर्द्धक उत्तर जीको ती प्ररणा करके सामाजिक कार्योंमे भी आगे मिला और फलतः उत्तम बाल-साहित्यके निर्माणादि लाना चाहिए और उन्हें उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य सुपुर्द की अच्छी सुन्दर याजनाएँ सम्पन्न और सफल करना चाहिये । मुझे आश्चर्य यही है कि अब तक होगई तो इस मै अपनी उस इच्छाको बहुत अशी उनकी मेवाओका लाभ क्या नहीं उठाया गया । पर मे पूरी हुई समझगा जिसके अनुसार मै अपनी दोनो जनसमाजमे पुराने कार्यकर्ताओंको उदासीन न होने पुत्रियोंका यथेष्टरूपमे शिक्षित करके उन्हे समाज देने और नय नता तथा कार्यकर्ता खोजनकी लग्न संवाक लिये अर्पित कर दना चाहता था। या गज ही किसे है ? वीरसेवामन्दिर, सरसावा परिषदम दर-दूर स्थानोंसे डेढ़ मौ दो सौ के ३१ मई सन् १EYES -जुगलकिशोर मुख्तार सार उस्तार लगभग नए-पुराने नेता तथा कार्यकर्ता पाए । उनके
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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