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किरण ५]
सन्मति-विद्या-विनोद
गई बल्कि वे सब मेरे पास रह गये है और जिन्हें निधि समझकर इसके मदुपयोगका सनत प्रयत्न करे मैंने बिना अधिकारके अपने ही कामम ले लिया है- और अपने बालक-बालिकाओंको सन्तान-दर-मन्नान तुम्हारे निमित्त उनका कुछ भी खर्च नहीं किया है। इस निधिमे लाभ उठानेका अवसर प्रदान करें । जहाँ तक मुझे याद है सन्मतीके पाम पैरोंमे चाँदीके विद्वान बन्धु अपने सुलेखों, मलाह-मशवगं और लन्छे व झांवर, हाथोंम चाँटीके कड़े व पछेली, सुरुचिपूर्ण चित्रादि के आयोजनों-द्वाग इम ग्रन्थमाला कानोंमे मानकी बाली-भमक, सिम्पर सोनका चक को उमक निर्माण कार्यमे अपना खुला महयाग
और नाकमे एक मानकी लोङ्ग थी, जिन मबका प्रदान करे और धनवान बन्धु अपने धन तथा मूल्य उम समय १२५) म०के लगभग था । और साधन-सामग्रीकी सुलभ योजनाओं द्वारा नमक विद्याकं पाम हाथोंमे दी ताले मानकी कडूलियाँ प्रकाशन-कार्यमें अपना पूरा हाथ बटाएँ। और इम. चाँदीकी मरीदार, जिम्हे दादीजीन बनवाकर दिया तरह दोनों ही वर्ग इमके मंरक्षक और मवद्धक बने । था, तथा पैगमे नोखे थे, जिन मबकी मालियत मै स्वय भी अपने शेष जीवनमे कुछ बाल-माहित्यक ७५) १०के करीब थी। दोनों के पास ५०) रु०के निर्माणका विचार कर रहा हूँ । मेरी रायमं यह करीब नकद होंगे। इस तरह जेवर और नकदीका ग्रन्थमाला तीन विभागोंमें विभाजित की जायतखमीना २५०) रुक करीबका होता है, जिसकी प्रथम विभागमे ५से १० वर्ष तक बच्चोंके लिय, मालियत आज ७००) रुके लगभग बैठती है। और दूसरेमे ११से १५ वर्ष तककी श्रायु बाले बालकइम लिये मुझ ७००) २० देने चाहिये, न कि २५०) बालिकाओंके लिये और तीसरेमे १६से २० वर्षकी रु०। परन्तु मेरा अन्तरात्मा इतनसे भी सन्तुष्ट नहीं उम्रके सभी विद्यार्थियों के लिये उत्तम बाल-साहित्यका होता है, वह भूलचूक आदिकं रूपमे ३००) रुपये प्रायोजन रहे और वह साहित्य अनेक उपयोगी उसमे और भी मिलाकर पूरे एक हजार कर देना विषयोंमे विभक्त हो; जैसे बाल-शिक्षा, बाल-विकास, चाहता है। अतः पुत्रियो ! आज मै तुम्हारा ऋण बालकथा, बालपूजा, बालस्तुति-प्रार्थना, बालनीति, चुकानके लिये १०००) क. 'मन्मति-विद्या-निधि'के बालधर्म, बालसेवा, बाल-व्यायाम, बाल-जिज्ञासा, रूपमे वीरसंवामन्दिरको इमलिये प्रदान कर रहा हूं बालतत्त्व-चर्चा, बालविनोद, बाल-विज्ञान, बालकि इस निधिसे उत्तम बाल - साहित्यका प्रकाशन कविता, बालरक्षा और बाल-न्याय आदि । इस किया जाय-'सन्मति-विद्या' अथवा 'सन्मति-विद्या- बालमाहित्यके आयोजन, चुनाव, और प्रकाशनादिविनोद' नामकी एक ऐसी आकर्षक बाल-प्रन्थमाला का कार्य एक ऐसी समितिकं सुपुर्द रहे, जिसमे प्रकृत निकाली जाय जिसके द्वारा विनोदरूपम अथवा विषयक साथ रुचि रखने वाले अनुभवी विद्वानों बाल-सुलभ सरल और सुबोध-पद्धतिसे सन्मति- और कार्यकुशल श्रीमानोंका मक्रिय महयोग हो। जिनेन्द्र (भगवान महावीर)की विद्या-शिक्षाका समाज कार्यके कुछ प्रगति करते ही इसकी अलगसे रजिस्टरी
और देशके बालक-बालिकाओम यथेष्टरूपसे मवार और ट्रस्ट की कारवाई भी कराई जा सकती है। किया जाय-उसकी उनके हृदयोंमे ऐसी जड़ जमा इसमे मन्देह नहीं कि जैनममाजमे बाल-माहित्य दी जाय जो कभी हिल न सकं अथवा ऐसी छाप का एकदम अभाव है-जा कुछ थोड़ा बहुत उपलगा दी जाय जो कभी मिट न सक।
लब्ध है वह नहींके बराबर है, उसका कोई विशेष
मूल्य भी नहीं है । और इसलिये जैनदृष्टिकोण मेरी इच्छा--
उत्तम बाल-माहित्य के निर्माण एवं मारकी बहुत बड़ी मैं चाहता हैं ममाज इस छोटीसी निधिको जरूरत है। स्वतन्त्र भारतम उमकी भावश्यकता अपनाए, इमे अपनी ही अथवा अपने ही बच्चों की पवित्र और भी अधिक बढ़ गई है। काई भी ममाज अथवा