________________
१८४
अनेकान्त
[वर्ष ९
भी नहीं मिला। और हरि (कृष्ण) मंसारके रक्षक मैं श्रद्धाकी बात कहता हूँ। वरुआसागरम मूलचन्द्र थे उन्हें सोनेके लिये मखमल आदि कुछ नहीं मिला। था। बड़ा श्रद्धानी था। उसके पांच विवाह हुए थे। क्या मिला ? मर्प।
पाँचवीं स्वीके पेट गर्भ था। कुछ लोग बैठे थे, जो जो देवी वीनगगने मो मो होसी वीरा रे ।।
मूलचन्द्र था, मैं भी था । किमीने कहा कि मूलचन्द्र
के बच्चा होगा, किसीने कहा बच्ची होगी, इस प्रकार अनहोनी होमी नहि कबहूँ काहं होत अधीरा रे॥
सभीने कुछ न कुछ कहा । मूलचन्द्र मुझसे बोलाहोगा तो वही जो वीतरागने देखा है, जो बात
। आप भी कुछ कह दो। मैंने कहा भैया । मै निमित्तअनहोनी है वह कभी नहीं होगी।
ज्ञानी तो हूँ नहीं जो कह दूँ कि यह होगा। वह दिल्लीकी बात है। वहाँ हरजमराय(?) रहते थे। बोला-जैसी एक-एक गप्प इन लोगोंने छोड़ी वैसी करोड़पति आदमी थे । बड़े धर्मान्मा थे। जिन- आप भी छोड़ दीजिए। मुझे कह पाया कि बच्चा पूजनका उनके नियम था । जब मवत् १४ (?) की होगा और उसका श्रेयासकुमार नाम होगा । समय गदर पड़ी तब मब लोग इधर-उधर भाग गये। आनेपर उसके बच्चा हुश्रा। उसने तार देकर बाईजीइनके लड़कोंने कहा-पिता जी ! ममय खराब है को' तथा मुझे बुलाया। हम लोग पहुँच गये। बडा इस लिये स्थान छोड देना चाहिये । हरजसरायने खुश हुआ। उसने खुशीमे बहुत सारा गल्ला गरीबोंको कहा-तुम लाग जापा, मै वृद्ध आदमी हैं। मुझे बॉटा और बहुतोंका कर्ज छोड़ दिया । नाम-संस्करण धनकी आवश्यकता नहीं। हमारे जिनेन्द्रकी पूजा के दिन एक थालीमे मौ-दो-सौ नाम लिकर रकम्व कौन करेगा ? यदि आदमी रखा जायगा तो वह भी और एक पाँच वर्षकी लड़कीसे उनमेसे एक कागज इम विपत्तिके ममग यहाँ स्थिर रह सकेगा, यह निकलवाया । मो उसमे श्रेयांमकुमार नाम निकल सम्भव नहीं। पिताक आग्रहसे लड़के चले गये । एक आया। मैंने तो गप्प ही छोडी थी। पर वह मच घण्टे बाद चोर आये । हरजमरायन म्बय अपने निकल आई। एक बार श्रेयासकुमार बीमार पड़ा नी हाथों मब तिजोगियों खोल दीं । चोगेन मब सामान गाँवके कुछ लोगोंन मूलचन्द्रसे कहा कि एक मोनका इकट्रा किया। लेजानेको तैयार हुए, इतनेमे एकाएक गक्षम बनाकर कुएको चढ़ा दो। मृलचन्द्रन बड़ी उनक मनम विचार आया कि कितना भला आदमी बढताके माथ उत्तर दिया कि यह लड़का मर जाय, है? इसने एक शब्द भी नहीं कहा । लूटने के लिये मृलचन्द्र मर जाय, उमकी स्त्री मर जाय, मब मर मारी दिल्ली पड़ी है, कौन यही एक है, इम धर्मात्मा- जाय; पर मै राक्षम बनाकर नहीं चढा मकता । को मताना अच्छा नहीं। हरजसगयन बहत कहा, श्रेयामकुमार उमक पाँच विवाह बाद उत्पन्न एक ही चार एक कारणका भी नहीं ले गये और दूसरे चार लड़का था फिर भी वह अपने श्रद्धानपर डटा रहा। श्राकर इसे तक न करे, इस खयालसं उमके दरवाजे मो श्रद्धान तो यही कहता है। जो मौका श्रानेपर पर ५ डाकुओंका पहरा बैठा गये। मेग तो अब भी विचलित होजाते है उनके श्रद्धानम क्या धरा ? विश्वास है कि जो इनना बढ़ श्रद्धानी होगा उसका यह पञ्चाध्यायी प्रन्थ है। इसमें लिम्वा है कि कोई बाल बांका नहीं कर सकता। 'बाल न बाँका कर मम्यग्दृष्टि नि.शङ्क होता है--निमय होता है। मैं मके जो जग ही रिपु हाय ।' जिमका धर्मपर अटल आपसे पूछता हूँ कि उसे भय है ही किम बातका? विश्वास है माग समार उमक विद्ध होजाय तो भी वह अपने आपको जब अजर, अमर, अविनाशी परउमका बाल बांका नहीं हो सकता। तुम एमा विश्वास पदार्थसे भिन्न श्रद्धन करता है, उसे जब इम बानका फरो, तुम्हाग कोई कुछ भी बिगाड़ ले तो मै विश्वास है कि पर पदार्थ मेरा नहीं है, मै अनाद्यनन्त जिम्मेदार हैं। लिग्वा लो मुझम ।
१ वीजीको माता श्री चिरोजाबाई जी।-म०।