________________
त्यागका वास्तविक रूप
[परिशिष्ट]
(प्रवक्ता पूज्य भीतुल्लक गणेशप्रसादजी वर्णी न्यायाचार्य)
सना
खाज अकिश्चन्य धर्म है, पर दो द्वादशी होजानेसे बड़ी बात पूछी, उस में क्या है ? वही तो अयोध्या है
आज भी त्याग धर्म माना जायगा । त्याग- जिसमे गमचन्द्रजी पैदा हुए थे। अच्छा, बालकाण्डका स्वरूप कल आप लोगोंने अच्छी तरह सुना था। मे क्या है ? खूब रही, इतने काण्ड हमने बतलाये, आज उमके अनुसार कुछ काम करके दिखलाना है। एक काण्ड तुम्ही बतला दो। सभी काण्ड हम ही से
मृच्छका त्याग करना त्याग कहलाता है। जो पूछना चाहते हो। इमी प्रकार हमारा भी कहना है चीज आपकी नही है उसे आप क्या छोडेगे? बह कि इतने धर्म तो हमने बतला दिये। अब एक त्याग नो छूटी ही है। रुपया, पैमा, धन, दौलत सब आपसे धमें तुम्हीं बतला दो। और हमसे जो कुछ कहो सो जुदे हैं। इनका त्याग तो है ही। आप इनमे मळ हम त्याग करनेको तैयार है-कहो तो चले जाय । छोड दो, लोभ छोड़ दो; क्योंकि मुर्छा और लोभ (हेमी)। आपके त्यागसे हमारा लाभ नहीं-आपका नो आपका है-आपकी आत्माका विभाव है। धनका लाभ है। आपकी ममाजका लाभ है, आपके राष्ट्रका त्याग लोभकषायक अभावमे होता है। लोभका लाभ है। हमारा क्या है ? हमे नो दिनमे दो रोटियाँ अभाव होनम आत्मामे निर्मलता आती है। यदि चाहिएँ, सो श्राप न दोगे, दृमरे गाँववाले दे देगे। कोई लोभका त्यागकर मान करने लग जाय-दान
आप लुटिया न उठाओगे तो (क्षुल्लकजीके हाथसे करके अहङ्कार करने लग जाय तो वह मान, कषायका
पीछी हाथमे लेकर) यह पीछी और कमण्डलु उठाकर दादा हो गया। 'चूल्हें निकले भाडमे गिरे' जैसी स्वय बिना बुलाये आपके यहाँ पहुँच जाऊंगा । पर कहावत होगई। मो र्याद एक कषायस बचते हो तो अपना मांच ली। आज परिग्रहकं कारण मबकी उमसे प्रबल दृमरी कषाय मत करा ।
आत्मा (हाथका इशारा कर) यो कॉप रही है। रात
दिन चिन्तित है--कोई न ले जाय । कँपनेमे क्या देखे, श्राप लोगोंमसे कोई त्याग करता है या नही । मैं तो आठ दिनसे परिचय कर रहा है। श्राज
धग? रक्षा के लिये तैयार रहो । शक्ति सञ्चिन करो। तुम भी कर लो। इतना काम तुम्ही कर ला।
दुमका मुंह क्या ताकते हो? या अटूट श्रद्धान
रक्खा जिम कालमे जो बात जैमी होने वाली है वह ____एक प्रादमीम एकने पृछा श्राप गमायण उम कालम वैमी होकर रहेगी। जानते हो तो बताओ उत्तरकाण्डम क्या है। उसने कहा-अरे, उत्तरकाण्डमे क्या धग? कुछ ज्ञान
'यदभावि न नद्भावि भावि चेन्न तदन्यथा । ध्यानकी बाते है। अच्छा, अरण्यकाण्डम क्या है ?
नग्नत्वं नीलकण्ठम्य महाहिशयन हरेः॥' उममे क्या धरा' अरण्य वनको कहने है, उसीकी यह नोति बछोंको हितोपदेशमे पढ़ाई जाती है। कुछ बाते है। लङ्काकाण्डम क्या है ? अरे, लङ्काको जो काम होने वाला नही वह नहीं होगा और जो कौन नहीं जानता ? वही तो लङ्का है जिसमें रावण होने वाला है वह अन्यथा प्रकार नहीं होगा । रहा करता था। भैया' अयोध्याकाण्टुम क्या है महादेवजी तो दुनिया के स्वामी थे, पर उन्हें एक बन्न