SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 208
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कथा-कहानी "माँ ! यह आज इन्सानोंको क्या होगया है"? नाम ही तो जिन्दगी है । जिन्दगीकी ख्वाहिशात "यह बावले होगये हैं बेटा"! क्या हैं? "बावले"? ____ "दूमगेकं मुंहसे छीछड़े और हड़ियाँ छीननेके "हाँ, बावले"। लिये आपसमे लड़ना, एक दुमरको काटना, और "क्या इन्सान भी बावले हुआ करते है माँ"। अपनी जिन्मको औरतमि . " उफ, "अब यह इन्सान कहाँ रहे ? हमारी तरह कुत्ते उफ, उफ ! इन्मानी कुत्ते भी अब हमारी तरह बन गये हैं यह लोग"1 मोचने लगे है। लेकिन यह बुरुजवा किस शै का नाम है ? शायद कुत्ता बननम पहले इन्मानको "हाँ, हाँ, कुत्ते"। बुरजुश्रा कहते थे। "लेकिन, माँ । इनकी मरत तो हमारी तरह नहीं बदली। जल्संस लौट रहा था कि मामनम बेहिजाब "सूरत नहीं बदली तो क्या करतून तो हमारे फैशनबिल औरताका गाल मुम्कराता, कह कह जैसे होगय है बेटा । मूरत भी बदल जायगी। लगाना पा रहा था। नज़दीक आनपर मैन सुना--- "और यह तड-नडकी आवाजे क्या थी माँ"। "अब औग्ने मौका मुहताज नहीं रहेगी, वे "यह इनके बावलेपनकी दवा है । इन्मान हमारं खुद कमाकर ग्वाएंग"। बावलेपनका इलाज जहरकी गालियोंसे करते है और "यूमपम तो औरत हर किम्मकी गलामीसे बन्दुककी गोलियोंमें उनका बावलापन दूर होता है"। आज़ाद हाचुकी है। * मैन इत्मीनानकी मॉम ली, हमारी कोमकी परंडके मैदानम मैने-कुचैले इन्सानोंकी भीड़मे औरते भी तो खुद कमाकर खानी है। वे भी तो लाल झण्डके नीचे बरफकी नरह सफेद कपड़े पहने किमीकी ग़लाम बनकर नहीं रहती । मैं अपने हा एक इन्मान कह रहा था-"रोटी और दुनियावी खयालोंमे डूबा हुआ था कि कानांम सरीली ख्वाहिशान हामिल करनेका नाम ही जिन्दगी है। आवाज़ आइ.बाकी सब बाते बुरजुश्रा लोगोंकी मनघड़न्त है"। " इश्क कही ले चल इस पापकी दुनियास"। जिन्दगी, बम रोटी और ख्वाहिशात हामिल आवाजकी मीधमे निगाह दौडाई, दी नौजवान करनेका नाम है. । उफ उफ ।। उफ !!! मेरी मां न लड़कं ऑव फाड-फाड़कर इन औरतीको देख रह बिल्कुल सच कहा था, आदमक बेट कुत्ते बन गये थे। उनके आठोपर हमी चल रही थी और बांग्या है कुत्ते। लेकिन इनकी मुरत तो अभी तक नही में वही बया चमक थी हम कुनांकी आँखाम बदली। वह भी बदल जायगी। मन और वचन कुत्तियाका देवकर आ जाती है । जब बदल गये है तो कायाको भी बदलत क्या * ागरमे प्रकाशित मार्च माह के उर्दू शाय' में जनाब दर लगेगी? अाजाद शाह पुरीकी कहानीका यह मक्षित अश माभार आग्विर हमारी कौमी लुगत (जानीय कोप) में दिया जारहा है। भी तो खान-पान और ख्वाहिशान हामिल करनेका --- गोयलीय
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy