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________________ माहित्य-परिचय और ममालोचन ठीक-ठीक प्रयत्न नहीं किया । न हमने जैनधर्म होगे। उनके मोन-चाँदीके चंवर-छतर-उपकरण तथा सम्बन्धी कोई ऐमा ग्रन्थ निर्माण किया जिसमे वर्तमान पूजा-पद्धति ही जैनधर्मके व्यापक प्रचारका जनता जैनधर्मके व्यापकरूपको समझ सके न हमने रोकती है। जैनधर्मके मन्दिर एसे होने चाहि कि जैनधर्मानुयायी प्राचार्यों, कवियों, राजाश्रो, सेना- जहाँ न चौकीदारकी आवश्यकता रहे, न पुजारीकी नायकों, शूरवीरों और कर्मवीराका प्रामाणिक इति- और न ताले-कुञ्जीकी । एक ऐसी प्रामफहम (सबकी हाम ही प्रकाशित किया है; न हमन जैन-चित्रकलाका ममझम पाने योग्य) दर्शन-पूजा-पद्धति हम चालू परिचय दिया है और न हमने अपने लोकसवी कार्य- करनी होगी जो मानवमात्रके लिये उपयोगी हो मक। काओंका ही उल्लेख किया है। फिर किम आधार हर मनुष्य भगवानकी शरणम जा सक, हमे इम पर और किम विशंपनापर लोग जैनधर्मकी ओर ओर अविलम्ब प्रयत्न करना होगा। प्राकर्षित हो और क्योंकर मार्वजनिकम्पमे जनताक दियो पर्व श्रवणबेलगोलमे भगवान बाहालकी मामने उल्लेख हो। मृतिका निर्माण करके हमारे पगक्रमा पूर्वजान हमा इस विज्ञापनक युगमे विज्ञापन के बलपर जापानी मामन एक आदश रख दिया था और बना दिया था मोटशन घर-घर पहुँच सकते है और विज्ञापनका किजिम नीति माधन न मिलनस हीरे-मोती बक्मामे रखे धृल जो न मानेन फॉकत रहते है। मूर्तिक आगे वे भी नतमस्तक हांगे जो हीरे-जवाहअन' आवश्यकता इस बात की है कि जैनममाज रानकी मृतियाम भी प्रभावित नहीं होन है। हम इस अपने मंकुचिन सम्प्रदायकं गडढसे निकलकर जन व्यापक और महान आदशको न समझ पा और धर्मक मत्य-अहिमा-अपरिग्रह वादका सार्वजनिकरूप हमने वीतराग भगवान और जिनवाणी मानाका में विशंपण करं। हमारे माधु, मुनिगजाका अब तालोग बन्द करके रख दिया। उपाश्रय और मन्दिरकी मचित चारदीवारीम निकलकर आम जनताके मामन अपने दिव्य उपदेश टानाम पानगर (1) दने चाहि । हम अपन मन्दिगक पगने ढङ्ग बदलन अपंत ४८ साहित्य परिचय और समालोचन १ आदिपुराण [बन्दोबद्ध] प्रमङ्गवश अन्य कथाओंको भी दिया गया है। प्रन्थ म २० मग है जिनकी नोक सख्या चार हजार लेखक, कवि श्रीतुलसीरामजी देहली। प्रकाशक, छहमा अट्राईम बतलाई गई है। प्रस्तुत ग्रन्थ विक्रम मूलचन्द किसनदासजा कापड़िया, चन्दावाड़ा, की १५वीं शताब्दीक विद्वान् भट्रारक मकलकीतिक मृरत । पृष्ठ संख्या ३८४ मूल्य ४) रुपया। मंस्कृन आदिपुगगाका हिन्दी पद्यानुवाद है। प्रन्धम इम ग्रन्थका विषय इमकं नामसे प्रसिद्ध है। चौपई, पद्धडी, घत्ता, दोहा, भुजङ्गप्रयान, मन्दाइसमे जैनियोंके प्रथम तीर्थङ्कर भगवान आदिनाथका, क्रान्ता, अडिल्ल, मानियादाम आदि विविध छन्दोंका जिन्हे भागवतके पश्चम म्कन्धम ऋपावतारकं नाममे उपयोग किया गया है । कविता माधारमा हात हा भी उल्लेखित किया गया है, जीवन-परिचय दिया हुआ वह भावपूर्ण है। इस पद्यानुवादक का ५० तुलमीहै। साथ ही उनके पूर्वभवांका चित्रण करते हुए गमजी है जा दिल्ली के निवासी थे, जो धर्मामा,
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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