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भनेकान्त
[वर्ष ९
मजन तथा उदार प्रकृति के थे, और ममाजक कार्यों में हुई महाजनांकी गृहीजीवनकी त्याग और ममुदार मदा भाग लिया करते थे। इनका ४० वर्षकी अल्प भावनाको प्रकट करती है। लेखकने इममें पर्याप्त वयमें ही मवन १९५६म म्वर्गवाम हुया है इम परिश्रम किया है और वह अपने कार्यमे मफल भी ग्रन्धकी प्रस्तावनाकं लग्बक प० ममेरचन्दजी न्याय- हुआ है। इस पुस्तककी प्रस्तावनाके लेखक भागव तीर्थ उन्ननी है। प्रस्तावनाम ऐतिहामिक दृष्टिसे विट्ठल वरेरकर है, जो मामा वरेरकरके नामसे मिद्ध भगवान ऋषभदेवके जीवनपर विचार किया होता है और मराठी वाङमयके मफल लेखक हैं। छपाई तथा ग्रन्थकी कविता और भाषा आदिके सम्बन्धमे मफाई अच्छी है, परन्तु मूल्य कुछ अधिक जान आलोचनात्मक दृष्टिसे विचार किया जाता तो प्रन्थ की पड़ता है। उपयोगिता और भी अधिक बढ़ जाती। श्रन्तु
३ टोडरमलाङ्क [विशेषाङ्क] इम प्रन्थक प्रकाशक मृलचन्द किमनदामजी कापड़िया है जिन्होंने ब्रह्मचारी शीतलप्रमाद जीके
___ मम्पादक, प. चैनसुग्वदाम न्यायतीर्थ और ५० म्मारक फण्डम प्रकाशित किया है। और इस तरह
भंवरलाल न्यायतीथ, मनिहागेका रास्ता, जयपुर। ब्रह्मचारीजीकी कीर्तिको अक्षुण्ण बनाने का प्रयत्न
वार्षिक मूल्य ३) २० । इस अङ्कका मूल्य २) रुपया। किया है, परन्तु इम प्रन्थके प्रकाशमे लानेका मबसे प्रस्तुत अङ्क वीरवाणीका विशेषाङ्क है जो प्राचार्यप्रथम श्रेय बाय पन्नालालजी अग्रवाल दहलीको है कल्प प० टोडरमलजीकी स्मृतिम निकाला गया है। जिन्होंने इसका प्रेम कापी स्वय करके भेजी है। आप इसमे पं० जीके जीवन-परिचयके साथ उनके कार्योंका बहुत ही प्रेमी सज्जन है, आपको अप्रकाशित साहित्य मंक्षिप्त परिचय भी कराया गया है। यद्यपि पण्डित के प्रकाशम लानका बड़ा उत्साह है। अतएव दोनों जीक व्यक्तित्व एवं पाण्डित्यके सम्बन्धमे खामा ही महानुभाव धन्यवादकं पात्र है। पस्तकमे प्रम मोटा पन्थ लिया जा सकता है, इमसे पाठक महज मम्बन्धी कुछ अशुद्धियाँ रह गई है फिर भी प्रन्थ ही में जान सकते है कि वे कितने महान थे समाजपठनीय है।
म उनके ग्रन्थोंक पठन-पाटनका अच्छा प्रचार है।
अतएव उनके नामसं जनता पर्गिचत ती थी; किन्तु २ महाजन ऐतिहासिक उपन्याम]
उनके जीवन-चरितसे प्राय अपर्गिचत थी। अतएव लेखक. कृष्णलाल वर्मा । प्रकाशक, बलवन्तसिंह इस दिशाम पं० चैनसुखदामजीक प्रयत्नस्वरूप वीरमहना, माहित्य कुटीर मानाशेरी, उदयपुर । पृष्ट वाणीका यह विशेषाङ्क अपना ग्वामा महत्व रखता मच्या १४६। मृल्य जिल्द प्रति २।।) रुपया। है। परन्तु अङ्ककी माधारण छपाई-मफाई तथा प्रफ
प्रस्तुत पुस्तक एक तिहामिक उपन्याम है सम्बन्धी कुछ अशुद्धियोको देग्यकर दुःख भी होता जिममे गुजगनके बादशाह मुहम्मद बेगड़ाके ममय है, कि क्या जनममाज अपने पूर्वजोंके उपकारको वि०म० १५०- ५५६८क मध्य घटने वाली घटना- भूल गई है? जो सुवर्णाक्षरोंमें अङ्कित करने योग्य का चित्रण है, जो गुजरातकं समय खेमा संठ द्वारा है। सचमुच वीरवाणीने अपने थोड़े ही समयमे एक वर्ष तक दिय हुए अन्नदान और उसके उपलक्षम अच्छी प्रगति की है। प्राशा है भविष्यमे अपनेको मुहम्मद बेगड़ाद्वारा प्रदान की हुई 'शाह' पदवी वद्द और भी समुन्नत बनानेका प्रयत्न करेगी।
आदिको उपन्यासका रूप दिया गया है। पुस्तक अकालकी समस्याको सुलझानका मार्ग प्रदशन करती
परमानन्द जैन सांधेलीय