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________________ किरण १ ] जैनकालोनी और मेरा विचार पत्र १५ सच्चे जैनियों अथवा वीरके सच्चे अनुयायियोंको आदर्शवादोन बनकर आदर्शको अपनाना चाहिये तैयार करनेके लिए ऐसा होना ही चाहिए। परन्तु ये और उत्साह तथा साहसको वह अग्नि प्रज्वलित करनी काम साधारण बातें बनानेसे नहीं हो सकते, इनके चाहिये जिसमें सारी निर्बलता और सारी कायरता लिये अपनेको होम देना होगा, दृढसङ्कल्पके साथ भस्म हो जाय। आप युवा हैं, धनाढ्य हैं, धनसे कदम उठाना होगा, 'कार्य साधयिष्यामि शरीरं अलिप्त हैं, प्रभावशाली हैं, गृहस्थके बन्धनसे मुक्त है पातयिष्यामि वा' को नोतिको अपनाना होगा, किसी और साथ ही शुद्धहदय तथा विवेको हैं, फिर आपके के कहने-सुमने अथवा मानापमानकी कोई पर्वाह लिये दुष्करकाये क्या होसकता है ? थोड़ोसी स्वास्थ्य नहीं करनी होगी और अपना दुख-सुम्ब आदि की खराबीसे निराश होने जैसी बातें करना आपको सब कुछ भूल जाना होगा। एक ही ध्येय और शोभा नहीं देता। आप फलकी आतुरताको पहलेसे एक ही लक्ष्यको लेकर बराबर आगे बढ़ना होगा। हो हृदयमें स्थान न देकर दृढ़ सङ्कल्प और Full तभी रूढ़ियोंका गढ़ टूटेगा, धर्मके आसनपर जो will power के साथ खड़े हो जाइये, सुखी पाराम रूढ़ियां आमीन हैं उन्हें आसन छोड़ना पड़ेगा और तलब जैसे-जीवनका त्याग कीजिये और कष्ट सहिष्णु हृदयों पर अन्यथा संस्कारोंका जा खोल चढ़ा हुआ बनिये, फिर आप देखेंगे अस्वस्थता अपने आप ही है वह सब चूरचूर होगा। और तभी समाजको खिसक रही है और आप अपने शरीरमें नये तेज नये वह दृष्टि प्राप्त होगी जिससे वह धमक वास्तविक- बल और नई स्फूर्तिका अनुभव कर रहे हैं। दूसरोक स्वरूपको देख सकेगी। अपने उपास्य देवताको उत्थान और दसरोंके जीवनदानकी सच्ची सक्रिय ठीक रूप में पहचान सकेगी, उसकी शिक्षाके भमको भावनाएं कभी निष्फल नहीं जाती-उनका विद्य तका समझ सकेगी और उसके आदेशानुसार चलकर सा पासर हए बिना नहीं रहता। यह हमारी अश्रद्धा अपना विकास सिद्ध कर सकेगी। इस तरह समाजका है अथवा आत्मविश्वासको कमी है जो हम अन्यथा रुख ही पलट जायेगा और वह सच्चे अर्थीमें एक कल्पना किया करते हैं। धार्मिक समाज और एक विकासोन्मुख आदर्शसमाज मेरे खयालम तो जो विचार परिस्थितयोंको देख बन जायगा। और फिर उसके द्वारा कितनोंका उ- कर आपके हृदयमें उत्पन्न हुआ है वह बहुत ही शुभ स्थान होगा, कितनांका भला होगा, और कितनांका है, श्रेयस्कार है और उसे शीघ्र ही कायमे परिणत कल्याण होगा, यह कल्पनाके बाहरकी बात है। इनना करना चाहिये। जहां तकमै समझता हूं जैन कालोनी बड़ा काम कर जाना कुछ कम श्रेय, कम पुण्य अथवा के लिये राजगृह तथा उसके आस पासका स्थान कम धमेकी बात नही है। यह तो समाजभरके बहत उत्तम है। वह किसी समय एक बहुत बड़ा स. जीवनको उठानका एक महान आयोजन होगा। इसके द्धिशाली स्थान रहा है, उसके प्रकृत्ति प्रदत्त चश्मेलिये अपनको बीजरूपमं प्रस्तुत कीजिये। मत सोचिये गर्म जलक कुण्ट-अपूर्व हैं। स्वास्थ्यकर हैं, और कि मैं एक छोटासा बीज हूं। बीज जब एक लक्ष्य जनताको अपनी ओर श्रावपित किये हुए हैं। होकर अपनेको मिट्टीमें मिला देता है, गला देता और उसके पहाड़ी दृश्य भी बड़े मनोहर हैं और अनेक खपा देता है, तभी चहु औरसे अनुकुलना उसका प्राचीन स्मृतियों नथा पृवे गौरवकी गाथाओंको अपनी अभिनन्दन करती है और उसमे वह लह लहाता पौधा गोद में लिये हा है। स्वास्थ्यकी दृष्टिस यह स्थान तथा वृक्ष पैदा होता है जिसे देखकर दुनियां प्रमन्न बुग नही है। स्वास्थ्य सुधार के लिये यहां लोग होती है, लाभ उठाती है आशीर्वाद देती है। और फिर महीनी श्राकर ठहरते हैं। वर्षाऋतुम मच्छर साधा. उसस स्वत: ही हजारों बीजांकी नई सृष्टि हो जाती रणत. सभी स्थानांपर होते हैं-यहां वे कोई विशेषहै। हमें वावपट न होकर कायपटु होना चाहिये, रूपस नहीं होते और जो होते हैं उसका भी कारण
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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