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अनेकान्त
[ वर्ष
तब वहां आवश्यकताके योग्य आदमियोंकी कमी नहीं रहेगी। यह हमारा काम करनेसे पहले का भयमात्र है। अतः ऐसे भयोंको हृदय में स्थान न देकर और भगवान महावीरका नाम लेकर काम प्रारम्भ कर दीजिये । आपको जरूर सफलता मिलेगी और यह कार्य श्रापके जीवनका एक अमर कार्य होगा । मैं अपनी शक्ति के अनुसार हर तरहसे इस कार्य में आपका हाथ बटानेके लिये तय्यार हूं । वृद्ध हो जानेपर भी आप मुझमें इसके लिये कम उत्साह नहीं पाएँगे । जैनजीवन और जैनसमाजके उत्थानके लिये मै इसे उपयोगी समझता हूं ।
सफाई का न होना है। अच्छी कालोनी बसने और सफाईका समुचित प्रबन्ध रहनेपर यह शिकायत भी सह जही दूर हो सकती है। मालूम हुआ यहां दरियागञ्ज में पहले मच्छरों का बड़ा उपद्रव था गवर्नमेंटने ऊपरसे गैस वगैरह - छुड़वाकर उसको शांत कर दिया और star बड़ी रौनकपर है और वहां बड़े बड़े कोठी बंगले तथा मकाना और बाजार बन गए हैं। ऐसी हालत में यदि जरूरत पड़ी तो राजगृह में भी वैसे उपायोंसे काम लिया जा सकेगा; परन्तु मुझे तो जरूरत पड़ती हुई ही मालूम नहीं होती । साधारण सफाई के नियमोंका सख्तीके साथ पालन करने और कराने से ही सब कुछ ठीक-ठाक हो जायगा ।
अतः इसी पवित्र स्थानको फिर से उज्जीवित Relive करनेका श्रेय लीजिये, इसीके पुनरुत्थानमें अपनी शक्तिको लगाइये और इसीको जैन कालोनी बनाइये। अन्यस्थानोंकी अपेक्षा यहां शीघ्र सफलता को प्राप्ति होगी। यहां जमीनका मिलना सुलभ हैं और कालोनो बसाने की सूचनाके निकलते ही आपके नक्शे आदि के अनुसार मकानात बनानेवाले भी आसानी से मिल सकेंगे और उसके लिये आपको विशेष चिन्ता नहीं करनी पड़ेगी। कितने ही लोग अपना रिटायर्ड जीवन वहीं व्यतीत करेंगे और अपने लिये वहां मकानात स्थिर करेंगे । जिस संस्थाकी बुनियाद अभी कलकत्ते में डाली गई वह भी वहां अच्छी तरहसे चल सकेगी। कलकत्ते जैसे बड़े शहरोंका मोह छोड़िये और इसे भी भुला दीजिये कि वहां अच्छे विद्वान नहीं मिलेंगे। जब आप कालोनी जैसा आयोजन करेंगे
लाला जुगल किशोर जी ( काराजी) आदि कुछ सज्जनो से जो इस विषय में बातचीत हुई तो वे भी इस विचारको पसन्द करते हैं और राजगृहको ही इसके लिये सर्वोत्तम स्थान समझते हैं । इस सुन्दर स्थान को छोड़कर हमें दूसरे स्थानकी तलाश में इधर उ भटकनेकी जरूरत नहीं । यह अच्छा मध्यस्थान है-पटना, आरा आदि कितने ही बड़े बड़े नगर भी इसके आस पास हैं और पावापुर आदि कई तोथक्षेत्र भी निकटमें हैं । अतः इस विषय में विशेष विचार करके अपना मत स्थिर कीजिये और फिर लिखिये । यदि राजगृह के लिये आपका मत स्थिर हो जाय तो पहले साहू शान्तिप्रसादजीको प्रेरणा करके उन्हें वह जमीदारी खरीदवाइये, जिसे वे खरीदकर तीर्थक्षेत्रको देना चाहते हैं, तब वह जमीदारी कालोनी के काम में आ सकेगी।
- जुगलकिशोर मुख्तार