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अपने ही लोगों द्वारा बलि किये गये महापुरुष
किरण ४ ]
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मिला ? मत्य और अहिसाम ही तो ? यों तो भार तीय संस्कृति ही असा प्रधान हैं, किन्तु यह भी स्पष्ट है कि इसका मूल स्रोन जैन मार्ग ही रहा है तथा हमारे युगमे भगवान महावीर | भगवान बीरने ही तो स्पष्ट कहा था कि 'यदि हिमककी हिंसा न्याय्य मानोगे तो कोई भी इस समागमे श्रवध्य नही रहेगा मंत्री, प्रमोद, शान्ति और विकास असम्भव हो जायेगे । यदि मूलको ही नीतिमत्ता मानोगे तो ऐसी नीतिमत्ता किमी की भी विपत्ति न टलेगी और समार विश्वास नामकी वस्तु दुर्लभ हो जायगी । यदि धर्म भेद या व्यक्ति भेदके कारण दूसरेकी बहिन बेटी कुचेष्टा या बलात्कार करनेमे पुरुषार्थ मानोगे तो वह पुरुषार्थ तुम्हारी बहिन-बेटी की मर्यादा और जान कर देगा | आवश्यकता से अधिक पैसा सचय करनेमे यदि पाप न समझोगे तो कोई ऐस पाप नही, जिसे करनेमे तुम हिचकोगे ।'
सम्भव है, सी-पचास वर्ष पहिले यह सब धर्मोपदेशसा लगता किन्तु आज ना यह अनिवार्य आवश्यकता है । अन्यथा आक्रांत जमनी तथा अन्य योरुपीय राष्ट्र, चीन, फिलिस्तीन, काश्मीर, हैदराबाद
अपने ही लोगों द्वारा बलि किये गये महापुरुष
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सुकरात - यूनानी दार्शनिक तत्ववेत्ता, इमाम २६६ वर्ष पूर्व जहर द्वारा ।
२. ईसामसीह - श्राजमे १६४८ वर्ष पूर्व, यहूदियों द्वारा दी गई शूली ।
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अब्राहमलिकन अमेरिकाके प्रथम राष्ट्रपति, १४ अप्रैल १८६५ में गोली द्वारा ।
४ माइकेल कोलिंस - श्राजाः श्रायल के प्रथम राष्ट्रपति, १६२ म गोली द्वारा ।
५ स्वामी दयानन्द - श्रार्यममाज के मम्थापक, ३० अक्टुबर १८२३मे जहर द्वारा ।
६ स्वामीश्रद्धानन्द श्रार्यसमाज और कॉममके नेता, गोली द्वारा ।
और पाकिस्तानमं सहज जीवनकी कल्पना भी संभव न रहेगी। किन्तु दूसरे के प्राण, वचन, धन, शील और आवश्यकताकी रक्षा हम तब ही कर सकते है जब हमारी दृष्टि व्यापक हो। जिसे मृढमाह होगा उससे यह आशा तब तक नही की जासकती जब तक उसे अपनी हठमे मुक्ति न मिले तथा उसकी हा परमहिष्णु न हो जाय । यह तब ही सम्भव है जब मनुष्य प्रत्यक्ष ही विकृत और पतित वर्तमानमे बच तथा ऐसा कोई काम न करें जो प्रत्यक्ष ही बुग है अथवा भीषण भविष्यका अनुमापक है। यह म्याद्वाद द्वारा ही सम्भव है क्योंकि इस प्रणालीमे प्रत्येक कल्पनाका विवध और व्यापक दृष्टि विचार करना आवश्यक है। तथा हर पहलूमे विचार करते ही बैर और विरोध स्वयं काफूर होजाते है । अतः आजके राष्ट्र तथा सम्प्रदायगत विरोधों को दूर करने की सामर्थ्य भगवान वीरके स्याद्वादमे ही है हम बौद्धिक हिमाकं श्रतं वाचनिक और कायिक अहिसा स्वय सिद्ध हो जायगी । अतः प्रत्यक्ष तथा अनुमानमे अवाधित स्याद्वाद ही ज्ञेय तथा आचरणीय है । जैन मन्दशमं ।
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आगमान -- स्वतन्त्र वर्माके प्रथम प्रधानमन्त्री, १६ जुलाई १६४०म, पार्लियामेण्ट भवनमं, गोली द्वारा | अमर माहित्यकार टोडरमल - जनसमाजके महा. विद्वान श्रार साहित्यकार, विक्रम संवत् १८२४ ( ई० १७६१ ) म धर्मान्धतापूर्ण साम्प्रदायिकता में श्रभिभूत एक नरंशकी अविचारित श्राशा हाथी द्वारा । ९. ट्राटस्की- रुमका लेखक और महान नेता, मेक्सिको में धरपर हथाड द्वारा ।
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१० महात्मा गाँधी-आमा र मानवताकेषु जारी, भारत तथा विश्वके महानतम मानव, मन्त श्ररि नेता, ३० जनवरी १६४८में, दिल्लीके लाभवनमें, नाथूराम गोडमेकी पिस्तौल की तीन गोलिमि ।