SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त [वर्ष ९ से महन करता है । आँधीके वेगका वृक्ष जैसे सर दलित होते देखता ? जबकि उमकी धर्मानयोंमे रक्त झुकाकर बर्बस स्वागत करता है। उसी तरह भारतने और बाहुओंमे बल था। सिकन्दरके आक्रमणपर यह सब किया । उसने आगे बढ़कर सैल्युकसको रोका, तनिक जानपर खेल जानका जिनका स्वभाव था, वह भारतके पानीका जौहर दिखलाया। जो सैल्युकस सिकन्दरकी युद्धाग्निम पतङ्गेकी भांति मर मिटे, कुछ भारत विजय करने और सम्राट बनने आया था, वह गायकी तरह डकराये, कुछ नीची गर्दन किये भेड़ोंकी मेदानसे भाग खड़ा हुआ। भारत-विजयका स्वप्न तो मौन मरे, कुछ हाय कर के रह गये, कुछ विधाताकी भङ्ग हुआ ही ब्याजमे अपनी कन्या चन्द्रगुप्तसं लीला समझ चुप होगये । पर जिनके रक्तमे उबाल ब्याहनी पड़ी और काबुल, कान्धार, बिलोचिस्तान था, वे कीड़े-मकोड, भंड़, बकरियोंकी तरह कैसे जैसे प्रदेश भी पराजय स्वरूप देने पड़े। भारतको अपमानित जीवन व्यतीत करते ? दामताकं पाशसे पहले-पहल मुक्तकर जैन-कुलोत्पन्न उन्हीम चन्द्रगुप्त था, पर निरा अबोध बालक । चन्द्रगुप्मन जैनोंकी गौरव-गाथाकी अमिट छाप मर्यादा पुरुषोत्तम राम जैम मामर्थ्यवान सेना-मग्रह लगादी, जिसे आज भी पराधीन भारतीय बंड गौरव किये बगैर रावणसे भिड़नको प्रस्तुत नहीं हुए, तब के साथ सुनते और कहते है। बालक चन्द्रगुप्त उस सिकन्दरसं कैम टकगता जो - २ - पहाड़की तरह कठोर और दैत्यकी तरह रक्त- मौर्य-सम्राट चन्द्रगुप्त जैनने भारतको दासताके लोलुप था पापसे मुक्त करके एकच्छत्र माम्राज्य स्थापित करके चन्द्रगुप्तम साहम था, उमम धय था आर और अभूतपूर्व शामन-व्यवस्थाकी नींव डालकर जा चट्टानकी तरह स्थिर निश्चय था । 'भरत'का 'भारत' शानदार उदाहरण उपस्थित किया है, उमपर हजारो वह पददलित होते कैसे देख सकता था? उसने ग्रन्थ लिखे जानपर भी लेखकोंको अभी सन्ताप लाहम लोहा काटनका निश्चय किया। सिकन्दरके नही है। पटम घसकर उसने उसकी अन्तरङ्ग शक्ति और चन्द्रगप्पके बाद बिन्दुसार, अशोक, मम्प्रति कमजोरीको भांपा और चाणक्यको लेकर नवीन आदि मौर्य सम्राटोन उत्तरोत्तर भारतम शासनका पद्धतिसे सैन्य-मग्रह प्रारम्भ कर दिया। मुव्यवस्थाकी । यह मौर्यवश जैनधर्मानुयायी थ । भाग्यकी बात; महान् सिकन्दरकी किस्मतम केवल अशोकन और उमकं पुत्रन व्यक्तिगत बौद्ध पराजयका कलङ्क नहीं बदा था। वह मैनिकांके धर्म ग्रहण कर लिया था वैस मौर्य राज्य घराना जैन विद्रोह करनेपर पञ्जाबसे लौट गया और मार्गमे मर धर्मानुयायी था। अशोक पौत्र सम्प्रनिने अपने गया । उसके सेनापति सेल्युकसके हृदयमे भारत शासनकालमे जैनधर्मक प्रचारका बहुन अधिक विजय करनकी लालसा थी । सिकन्दरके आँख बन्द उद्योग किया । यहाँ तक कि काबुल, कान्धार और करते ही उसने वह विश्व-विजयी सेना फिर भारतकी बिलोचिस्तान जैसे बर्बर प्रदेशोंमे भी धर्मकी ओर फरी और कामदेवकी तरह दुन्दुभि बजाता प्रभावना बढ़ाने के लिये जैनसाधुओंके संघ भिजवाए। हुआ भारतपर छागया। मौर्य राजाओंके निरन्तर प्रयत्न करने पर भारत चन्द्रगुप्तके क्रोधकी मीमा न रही । भारतकं जब सुखमय जीवन व्यतीत कर रहा था। घर-घरमे सुखी जीवन में वह कैसे अशान्ति देख ले, वह कैसे मङ्गलाचार होरहे थे। उपद्रवों और सैनिक-प्रदर्शनों के अपने नेत्रोंसे धार्मिक क्षेत्रोंपर होते उत्पात देखे और बजाए धामिक महोत्सव होते थे, रथ-यात्राएँ कैसे कानोंसे अबलाओंका करुण-क्रन्दन सुने ? वह निकलती थीं। भारतीय स्वच्छन्द श्वास लेते थे तभी अपने पूर्वजोंके भारतको क्योंकर विदेशियोंसे पद- एक दुर्घटना हुई ।
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy