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________________ गौरव-गाथा LIVE-11 A unia पथिक ! इस बाटिकाकी बर्बादीका कारण इन और थे, हम एरियन (आर्य) यहाँ दूसरी जगहसे उल्लुओं और कौआंमे न पूछकर हमसे सुन । ये आकर बसे', वे सचमुच दूसरी जगहसे आये होंगे। तुझे भ्रममे डाल देगे। हमारे ही बड़ोंने इसे अपने मगर हम यहाँके कदीमी बाशिन्दे हैं । कदीमी रक्तसे सीचा था। उन्हींकी हड़ियोंकी खातसे यह बाशिन्दे क्या, हम यहाँ मालिक हैं। यहाँके कणमर-सब्ज हुआ था। वे चल बसे, हम चलने वाले कणपर हमारे आधिपत्यकी मुहर लगी हुई है। है, पर इसके एक-एक अगापर हमाग अमिट बलि भारतवर्ष हमारे प्रथम नीर्थङ्कर भगवान ऋषभदान अङ्कित है। देवके पुत्र भरत चक्रवर्तीके नामसे प्रसिद्ध है। उनकी जो लोग कहते है-'भारतकं आदि निवासी अमर कीर्तिका सजीव स्मारक है। उससे पहले मैदानमै उसकी पौद लगनी चाहिये, सार्व-प्रेमकी हमाग भारत जम्बूद्वीप आदि किन नामांस प्रसिद्ध था, इस गहगईम उतरनेकी यहाँ आवश्यकता नहीं। हवा उसको पिलाई जानी चाहिये, विचार स्वातन्त्र्य हमाग देश जबमे 'भारत' हुश्रा, उममें भी बहुत की धुप उमे बिलानेकी जरूरत है, वह वट-वृक्षकी पहलेसे आजतक भारतकी आन और मानपर मिटन तरह अमर है, बढ़ेगा, फैलेगा, फुलेगा, फलेगा। की जो शानदार कुर्बानियों जैन-वीगेन की है, वे अगर कोई धर्म प्रान-शील है, उसके ग्रन्थीम यपि मबकी मव चिथड़ाक बने कागज पर लिखी नित्य कुछ घटाया-बढाया जाता है नो ममझना चाहिये हई नहीं है, फिर भी इतिहामक अधूरे पृष्ठोम और कि अनकान्तका सिद्धान्त उम धर्मम जीता जागता है। पृश्वीक गभम जो छपी पडी है. श्रग्वि वाल उन्हें यदि ऐमा नहीं है तो समझना चाहिये कि उम धर्मक देख मकते है। पण्डिनों और अनुयायियोंकी जिह्वापर है काममे नही है । विज्ञानम, कानूनम, साहित्यम, कलाम, मङ्गीत जिस पौगणिक युग कहा जाता है, जो जैनोंका इत्यादिम वह जीवित है। देशम, राजम, धर्मम वह सबसे उज्ज्वल पृष्ठ है, उसे न भी खोला जाय तो भी मर चुका है। अनकान्त व्यावहारिक धर्मका प्राण है ऐतिहामिक युगक अवतरगा जैनोंकी गौरव-गरिमाकं और समुदायकी शान्तिका ईश्वर है। अनेकता अने चारण बने हुए है। कान्तक बिना टकरायेगी, दृष्टे-फटंगी मरंगी नहीं। । तीनही ३.५ ई० पूर्व यूनानसे तृफानकी तरह उठकर और अनेकता अनकान्तकं माथ, मिलगी-जुलेगी, सिकन्दर महान पवताका गंदना, नदियोका फलांगता मीठ म्वर निकालेगी, आनन्दके बाजे बजायगी, देशक-दंश कुचलता हश्रा भूग्वे शेरकी भाँति जब सुख देगी। भारतपर टूटा, तबका चित्र काश लिया गया होता अनेकान्तका फल है म्वममय, श्रात्माकी निलेप ता आजक युवक उस बकर दहशनसे चीख उठते। अवस्थाका ज्ञान, बखुदीका इल्म, कर्मयोग, अना- बाज जम चिडियांपर, मिह जेस हरिण मम मक्तियोग, जीवन मुक्त होजाना और परमात्मा और नाग जैसे चूहोंपर झपटता है, उससे भी अधिक बन जाना । [वीरम] उसका भयानक अक्रमगा था । करारी बदांकी मार 3 और मृयकी प्रचण्ड धूपको पर्वत जिम अनमने भाव ल्म, कर्मयोग निलेप नारा दटातब
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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