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________________ किरण ३] पराक्रमी जैन १४७ जैनधर्मका यह प्रचार, शान्तिका यह साम्राज्य की बागडोर छीन ली । खारवेलने अपने शासनकालजैनधर्मद्वेषी मौर्य सेनापति पुष्यमित्रसे न देखा गया में जो जो लोकोत्तर और वीरना-धीरताक कार्य किये, उसने विश्वासघात करके धोखेसे मौर्य सम्राट् इसकी साक्षी हाथी गुफामे अङ्कित शिलालेख आज वृहद्रथको मार डाला और स्वयं सम्राट् बन बैठा'। भी दे रहा है। अपने शासनकालमे बौद्धों और इस प्रकार दोबार भारतको विदेशियोंकी अधी जैनोंपर वह-वह कहर ढाये, अत्याचार किये, जो नतासे जैनसम्राटोंने बचाया । जब जैन साम्राज्य नष्ट महमद गजनवी. अलाउद्दीन, तैमर, औरङ्गजेब, कर दिये गये और यहाँ अनेक दूषित वातावरण नादिरशाहने भी न किये होंगे? उत्पन्न होगये, तब भारत मुसलमानों द्वारा विजित कर लिया गया । इस मुस्लिम कालीन भारतमे भी इमी समय (ई० स०१८४) यवनराज दिमंत्रने राजपूतानेमे, कर्माशाह, भामाशाह, दयालशाह, श्राशाभारतपर आक्रमण कर दिया, वह चाहता था कि शाह, वस्तुपाल, तेजपाल, विमलशाह, भीममी भारतपर वह स्वयं शामन करे । भारतको पराधीनता ता कोठारी आदिने जो जो वीरता-धीरताके काय किये र के पाशमे बाँधनका यह दूसरा प्रयन्न था। किन्तु हैं, वे राजपूतानेके कण-कणपर अङ्कित है'। इन्हीं दिनों कलिङ्गका राजा खारवेल जो कि जैन था, द्वितीयाके चन्द्रमा समान बढ़ रहा था। उसने १ इस वीर पराक्रमी सम्राट का जीवन लेग्यककी "श्रार्यदिमंत्र और पुष्यमित्र दोनोंके हाथसे भारतके शासन __ कालीन भारत” पुस्तकम देखिये। - - - -- --- - -- -- - २ भारत परतन्त्र क्या हुआ ? इसका विस्तार पूर्वक वर्णन १ मार्य राजाओंका विशेष परिचय प्राप्त करनेके लिये लेखक लेग्वककी "अार्यकालीन भारत” पुस्तकम मिलेगा। की “मौर्यसाम्राज्यके जैनवीर" १७३ पृष्ठकी पुस्तक ३ इन सब शूरवीगेका परिचय राजपूतान के "जन वीर" देग्वनी चाहिये। पुस्तकम देग्विये ।
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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