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मनेकान्त [महात्मा भगवानदीनजी ]
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उर्शन, न्याय, व्याकरण, छन्द, अलङ्कार आदि विद्याश्रके सिद्धान्त गढ़े नहीं जाते—खोजे जाते हैं, इकट्ठे किये जाते है । इकट्ठे होनेपर विद्वान उन्हें अलग-अलग करते है और उनके नाम रख देते है । नाम प्रायः अटपटे होते हैं । विद्वानों तकको उनके समने मुश्किल होती है औरोंका तो कहना ही क्या ?
इस सवाल का जवाब कि अनेकान्त कबसे है ? यही हो सकता है कि जबसे जगत तबसे अनेकान्त । अगर जगतको किसीने बनाया है तो वह अनेकान्ती रहा होगा । और अगर जगत अनादि है तो अनेकान्त भी अनादि है । इस द्वन्द्वयुक्त जगतम और इस उपजने विनशनेवाली दुनियामे अनेकान्त के बिना एक क्षण भी काम नही चल सकता । तरहतरहकी दुनियामे मेल बनाये रखने के लिये अनेकान्त अत्यन्त आवश्यक है ।
अनेकान्त तर्कका एक सिद्धान्त है । तर्क इकट्टी की हुई विद्या है । अनेकान्तको बोलचाल मे 'तरह-तरह से कहना' कह सकते हैं। हम जब मिल-जुलकर प्रेम प्यार रहते है तब अनेकान्त मे ही बातचीत करते हैं । हैंसी-मजाक मे कभी-कभी एकान्त भी चल पड़ता है । पर टिक नहीं पाता । लड़ाई-झगड़ोंमे एकान्तसे ही काम लिया जाता है फिर भी वे लड़ाई-झगड़े चाहे घरेलू हों, दशकं या धर्मके । अनेकान्तको काममे तो सब सब धर्मवाले लाते है पर अलग विद्याका रूप इसे हिन्दुस्तान के एक धर्म विशेषने ही दे रखा है और वही इसकी दुहाई जगह बजगह देता रहता है ।
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दो अनेकान्ती लड़-झगड़ नहीं सकते । पर लड़ना-झगड़ना मनुष्यका स्वभाव बना हुआ है और अनेकान्तका हथियार लेकर ही लड़ते हैं तो अमल में
उनके हाथोंमें एकान्त ही के हथियार होते हैं। पर वे हथियार अनेकान्तके खोलमे होते हैं इसलिये जब भरी सभा में वे खोलसे बाहर आते है तो समझदार तमाशा देखने वाले हँस पड़ते है । अनेकान्तका और भी सीधा नाम 'झगड़ा- फैसल' हो सकता है। अब जहाँ 'झगड़ा- फैसल' मौजूद हो वहाँ झगड़ा कैसा ? अनेकान्ती (यानी तरह-तरह से कहने समझाने वाला) लड़े-झगड़ेगा क्यों ? वह तो दूसरेकी बातको समझने की कोशिश करेगा, शङ्का करेगा, कम बोलेगा, सामने वालेको ज्यादा बोलने देगा और जब समझ जावेगा तो मुसका देगा, शायद हँस भी दे और शायद सामनेवाले को गले लगाकर यह भी बोल उठे 'आहा, आपका यह मतलब है, ठीक ! ठीक !" कोई हकीम नुमने अगर "वर्गे रहाँ" लिख दे तो आप जरूर कुछ पैसे अत्तार के यहाँ ठगा आयेगे । यों आप वगैरेहा (तुलसी के पत्ते) घरकी तुलसी से तोड़कर रोज ही चबा लेते है । अनेकान्तसे रोज काम लेनेवाले आपसे कुछ अनेकान्तको न समझते होंगे इसलिये उसे थोड़ासा साफ कर देना जरूरी है।
सेठ हीरालाल जब यह कह रहे है कि आज दो अक्टूबर दोपहरके ठीक बारह बजे मेरा लड़का रामृ बड़ा भी है और छोटा भी तब वे अनेकान्तकी भाषा बोल रहे है । पर कोई एकदम यह कह बैठे 'बिल्कुल गलत' तो ऐसा कहनेवाला या तो मूर्ख हैं, जल्दबाज है नहीं तो एकान्ती तो हैं ही। और कोई यह पूछ बैठे 'कैसे ?' तो वह भला आदमी है, समझदार भी है पर बुद्धिपर जोर नहीं देना चाहता, अनेकान्त से उसे प्यार भी है। बात बिल्कुल सीधी है रामू असल में उस दिन दस बरसका हुआ वह अपने सात बरसके छोटे भाई श्यामू बड़ा और तेरह बरसके बड़े भाई धर्मूसे छोटा है। सेठ हीरालाल यह