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किरण ३]
शङ्का-समाधान
ग्रन्थ आज उपलब्ध नहीं है और इससे यह १०५ के प्रख्यात विद्वान् आचार्य वादिराजसरिने नहीं कहा जासकता कि इसके रचयिता कौन आचार्य अपने न्यायविनिश्चयविवरण (लिए प० २४५) में हैं। हो सकता है कि अकलङ्कदेवने भो इसी स्याद्वाद- एक असन्दिग्ध और स्पष्ट उल्लेख किया है और जो महार्णवपरसे उक्त पद्य उदाहरणके बतौर न्यायवि- निम्न प्रकार हैनिश्चयकी स्वोपज्ञवृत्तिमे, जो आज अनुपलब्ध है,
"उक्त स्वामिसमन्तभद्रस्तदुपजीविना भनापिउल्लेखित किया हो और इससे प्रकट है कि यह पद्य
घटमालिसुवर्णार्थी नाशोत्यादस्थितिष्वयम् । काफी प्रसिद्ध और पुराना है।
शोक पमोट-माध्यस्थ्य जनो याति सहेतुकम् ।। १२ शङ्का-श्राधुनिक कितने ही विद्वान यह
वर्द्धमानकभगेन रुचकः क्रियत यदा । कहते हुए पाये जाते हैं कि प्रसिद्ध मीमांमक कुमारिल
तदा पूर्वार्थिनः शोकः प्रीतिश्चाप्युत्तरार्थिनः ।। भट्टने अपने मीमांमा-श्लोकवार्तिककी निम्न
हेमार्थिनस्तु माध्यस्थ्य तस्माद्वस्तु त्रयात्मकमाइति च ॥" कारिकाओंको समन्तभद्रस्वामीकी श्राप्तमीमांसागत 'घटमौलिसुवर्णार्थी' आदि कारिकाके आधारपर रचा
इम उल्लेखमे वादिराजने जो 'तदुपजीविना' है और इसलिये समन्तभद्रस्वामी कुमारिलभट्टसे
पदका प्रयोग किया है उससे स्पष्ट है कि आजसे नौ बहुत पूर्ववर्ती विद्वान है। क्या उनके इस कथनको
मौ वर्ष पूर्व भी कुमारिलको ममन्तभद्रम्वामीका उक्त पुष्ट करने वाला कोई प्राचीन पुष्ट प्रमाण भी है ?
विषयमे अनुगामी अथवा अनुमा माना जाता था। कुमारिलकी कारिकाएँ ये है
जो विद्वान ममन्तभद्रस्वामीको कुमारिल और उसके वद्ध मानकभगेन रुचकः क्रियते यदा ।
समालोचक धर्मकीर्तिकं उत्तरवर्ती बतलाते हैं उन्हें तदा पूर्वार्थिनः शोकः प्रीतिश्चा'युत्तगर्थिनः ।।
वादिराजका यह उल्लेख अभूतपूर्व पर प्रामाणिक हेमाधिनस्तु माध्यस्थ्यं तस्माद्वस्तु त्रयात्मकम् ।
समाधान उपस्थित करता है। १२ समाधान-उक्त विद्वानोंक कथनका पुष्ट बीरसेवामन्दिर ) करने वाला प्राचीन प्रमाण भी मिलता है। ई० सन् २७ फरवरी १६४८ ) --- दरबारीलाल कोठिया
स्मृतिकी रेखाएं
भिक्षुक मनोवृत्ति
(ले० अयोध्या प्रमाद गोयलीय)
बहुधा लोगोंके जीवनमे ऐसे अवमर आते है होती, आकस्मिक घटनाएँ भी होती है। कभी जेब कि दिनभर भूखे-प्यासे रहनेसे पट अन्तड़ियोंसे लग कट जाती है, कभी घरम लेकर न चले और साथियों जाता है, जीभ तालूसे जालगी है, ओठांपर पपड़ियाँ ने गम्तेमे ही पकड़ लिया और समझा कि अभी जम गई है और चलते-चलते पाँव मृमल होगये हैं। वापिस पाये जाते हैं, मगर रास्तेमे कार फेल होगई न पाममे एक धेला है जो चने चाबकर ही ठण्डा या ताँगा पलट गया पैदल चलनेके मिवा कोई चारा पानी पिया जाय, न मजिले मकसूद ही नजर आनी नहीं। कभी रेल्वे टिकिट के लिये १-० पैसेकी कमी है। पामम पैसे न होनकी वजह मुफलिमी ही नहीं गई है। परदेशमे किससे माँगे, कांद जान पहचानका