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अनेकान्त
[वर्ष ९
भी तो दिखाई नहीं देता, कि इस मुसीबतसे निजात पड़ें और जो ये लाये हैं, उसे छीनकर अपना काम मिले । और दिखाई दिया भी तो माँगनेकी हिम्मत चलाएँ । मगर कुछ नहीं बनता और एक निरीह न हुई, ओठ काँपकर रह गये । घरमे बच्चा बीमार खुदग़रज, अहङ्कारी, रूक्षस्वभावी न जाने क्या-क्या पड़ा है, उसी रोज वेतन मिलने वाला है, मगर घरमें लोगोंकी नजरोंमे बनकर रहजाते हैं। कुछ आप डाक्टरको बुलाने के लिये रुपये फीसको तो कुजा, बीनी अर्ज करता हूं:
आफिम जाने के लिये इक्केके लिये दो पैसे भी नहीं है। और मनमे यह सोच ही रहे हैं कि चलो बञ्चको
सन ३२की दिवाली आई और चली गई, न ही हम्पताल गोदमे लेचला जाये, ऐसे ही नाजुक हमारे घर में चराग़ न मिठाई आई । इस बातसे मौकेपर कोई साहब आते है । शक्लोशबाहत- हमारे चेहरेपर शिकन आई न दिलमे कोई से अच्छे खासे जीविकार और भले मालूम देते है।
जिसकी
पनी हाथमें ४-५ रुपयकी रेजगारी भी लिये हुए है। इस बेवसीपर नाज़ था । क्योंकि यह मुसीबत कुम्भ-स्नानको जाना है, एक-दो रुपयेकी जो कमी देवकी तरफसे नही हमने खुद ही बुलाई थी। रह गई है, उसे पूरी करने चले आये हैं और इनकी धज देविय-नाज मुहतमे छोड़ रक्या है, सिर्फ
मुझे तुझसे कहना याद नही रहा, एक आदमी फल-दधपर गुजर फर्माते है, ऐसे मयमीकी महायता १०-१२ चक्कर लगा चुका है, न नाम बताता है न करना आवश्यक है। भांजीके भातमें २०००) रु० की काम, न तेरे मिलनक वक्तपर आता है, य कई चकर कसर रह गई है, ऐसे कारे मवाबमे मदद करना काट चुका।" माँ अपनी बात पूरी भी न कर पाई अखलाकी फर्ज है। अफीम खानेको पैसे नहीं रहे है, थी कि बोली-"देख, वही शायद फिर आवाज अफीम न मिली नो विचाग जम्हायाँ लेते-लेते मर दे रहा है।" जायगा, इन्मानी जान बचाना निहायन जरूरी है। बाहर आकर उनका परिचय पूयूँ कि वे
से दुम्बद प्रमङ्गोंपर बड़ी विचित्र परिस्थिति होती स्वयं ही बोलेहै । वासकर उम अवसरपर जबकि अप खुद "आप ही गोयलीयजी है।" मही मायनोंमें इम्दादक मुस्तहक़ है, मगर अपनी "जी, मुझ खाकमारको गोयलीय काते हैं।" वजहदारीकी वजहसे आप किमीपर भी यह राज़
"वाह, माहब श्राप भी खूब है। पचामों चक्कर जाहिर नहीं करना चाहते और तभी कोई श्राप लगा डाले तब श्राप मिले है।" जाने पहचाने माहब-किमी जल्सेके लिय, चौबेको मै हैरान कि खामाखाँ भाड पिलाने वाले यह भरपेट लाडू खिलाने के लिये, किमी साधुके मन्दिर माहब अाखिर है कौन? पुलिस वाले यह हो नहीं का कुआ बनवाने की हठ करने के लिये, चिड़ीमारके मकते. उनकी इतनी हिम्मत भी नहीं कि इस तरह चगुलम तोते छुड़ानेके लिये, मुहल्लेम माँग करनेके पेश श्राप, कोई कर्ज मांगने वाला भी नहीं हासकता लिये, कलकत्ते बम्बईमे चलने वाली मजदर हडतालके क्योंकि यहाँ यह आलम रहा है किलिये, देवीका परमाद बाँटनके लिये, कसाईके साथसे घरमे भका पड रहे दस फाके होजाए । लाड़ी गाय छुड़ानेके लिय-चन्दा मांगने जाते तुलसी भेया अन्धुके कभी न माँगन जाए । है। तब कैमी दयनीय परिस्थिति होजाती है, ना जब बाबा तुलमीभैया बन्धुसे मांगना वजित कर करने की हिम्मत नहीं; देनेको कानी कौड़ी नहीं । गये है तब गैगसे उधार मांगनेकी तो मै बेवकूकी कभी दिल चाहता है दोवारसे टकराकर अपना सर करता ही क्यों ? फिर भी मैने बड़ी आजिजीमे न फोडले, कभी जी चाहता है इन माँगनेवालोंपर टूट मिलने का अफमोस जाहिर करते हुए उनसे गरीब