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________________ किरण ३] शङ्का-समाधान ११३ आधुनिक हिन्दीमे विद्याकुमार सेठी व राजमल है। इस सूचीके निर्माणमें निम्नोक्त प्रन्थोंकी सहायता लोढा लिखित जैनसाहित्यसीरीज नम्बर १५ के लीगई है:-- रूपमें अजमेरसे प्रकाशित है।। १ जैनरत्न कोष H D. वेलणकर ___उपर्यक्त सूचीमें ज्ञात यशोधरचरित्रोंका नाम २ जैन साहित्यनो सक्षिप्त इतिहास एवं जैनगुर्जर निर्देश किया गया है। उनमेसे कई संदिग्ध प्रतीत कविश्रो भाग २, ३ होते हैं पर उनके निर्णयके लिये सब ग्रन्थोंकी जाँच ३ अनेकान्तमे प्रकाशित दि. भण्डारोंकी सूचियाँ। होना आवश्यक है और वह सम्भव कम है । अतः २ जितनी भी जानकारी थी यहाँ उपस्थित करदी गई ४ प्रेमीजी सम्पादित “दि० जैनग्रंथ और ग्रंथकार" तत्व चर्चा शंका-समाधान [इम स्तम्भके नीचे ऐसे सभी शङ्काकार और समाधानकार महानुभावोंको निमत्रित किया जाता है, जो अपनी शङ्काये भेजकर ममाधान चाहते हैं अथवा शङ्कात्रों सहित समाधानोंको भी भेजनेके लिये प्रस्तुत हैं या किसी सैद्धान्तिक विषयपर ऊहापोह पूर्वक विचार करने के लिये तैयार है । अनेकान्त इन सबका स्वागत करेगा। –सम्पादक कि जमा ८ शङ्का-अरिहत और अरहत इन दोनों पदों अरहंत या अर्हन्त ऐसी भी पदवी प्राप्त होती है, क्यों में कौन पद शुद्ध है और कौन अशुद्ध ? कि जन्मकल्याणादि अवसरोपर इन्द्रादिको द्वारा वे ८ समाधान-दोनों पद शुद्ध है । आर्ष-ग्रथोंमे पूजे जाते है । अत: अरिहंत और अरहत दोनों शुद्ध दोनों पदोंका व्युत्पत्तिपूर्वक अयं दिया गया है और है। फिर भी णमोकारमन्त्रक स्मरणमे 'अरिहत' शब्द दोनोंको शुद्ध स्वीकार किया गया है। श्रीपट्खण्ड.. का उच्चारण ही अधिक उपयुक्त है, क्योकि षट् खण्डागमकी धवला टीकाकी पहली पुस्तकमे आचार्य गममे मूल पाठ यही उपलब्ध होता है और सवप्रथम वीरसेनस्वामीने देवतानमस्कारसूत्र (णामोकारमत्र) व्याख्या भी इसी पाठकी पाई जाती है । इसके सिवाय का अर्थ देते हुए अरिहत और श्ररहत दानाका जिन, जिनेन्द्र, वीतराग जैसे शब्दोंका भी यही पाठ व्युत्पत्ति-अर्थ दिया है और लिखा है कि अरिका सीधा बाधक है। भद्रबाहकृत आवश्यक निर्यक्तिमे श्रथ माहशत्र है उसको जो हनन (नाश) करते है भी दाना शब्दाका व्युत्पत्ति अथ देन हुए प्रथमतः उन्हे 'अरिहन' कहते है । अथवा अरि नाम ज्ञाना- 'अरिहन' शब्दकी ही व्याख्या की गई है। यथावरण, दशनावरगा, मोहनीय और अन्तगय इन अविह पिय कम्म अरिभय हाइ सव्व जीवाण। चार घातिकोका है उनको जो हनन (नाश) करते न कम्भरि हता अरिहता तेग बुच्चति ॥२०॥ है उन्हें अरिहंत कहते है। उक्त कर्मोके नाश होजाने- अरिहति वदण णममगाइ अरिहति पृयमक्कार । पर शेष अघाति कर्म भी भ्रष्ट्र (मडे) बीजके ममान मिद्धिगमण च अरिहा अरहता ने वुचति ॥६२१|| निःशक्तिक होजाने है और इस तरह समम्त कर्मरूप ५ शङ्का-कहा जाता है कि भगवान आदिनाथ अरिको नाश करनसे 'अरिहत' ऐमी मज्ञा प्राप्त होती से मरीचि (भरतपुत्र)ने जब यह सुना कि उम अन्तिम है। और अतिशय पूजाक अहयोग्य हनिमें उन्हें तीर्थकर होना है नो उमको अभिमान आगया, जिस
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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