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किरण ३]
यशोधरचरित्र सम्बन्धी जैन-साहित्य
धार्मिक कथाओंमें मुख्यत: तीन प्रकारकी (प्रभंजनका उल्लेख दि० श्वे दोनों विद्वानों भावना काम कर रही प्रतीत होती है। कई ने किया है। अत: ये किस सम्प्रदाय के थे? कथायें वास्तविक चरित्रको उपस्थित करनेको, ठीक नहीं कहा जासकता)। कई धार्मिक अनुष्ठानोंको अपनानेसे अनेक
२ यशस्तिलक चम्पू'-सोमदेवसूरि (शक मं०८८१ प्रकार के सुख प्राप्र करने के प्रलोभन एव रोचक ढङ्गसे
चै० शु०१३ गङ्गधार में) रचित उपस्थित करनेको, कई बुरे कामोंसे नरकादिके दुःख ३ यशोधरचरित--श्लो०२९६ (४ सर्ग) वादिराज पानेको बताने वाली भयानक कथाओंको रचना हुई
(म० १.८२) कृत।। है। यशोधरचरित तीसरे प्रकारकी कथा है। वर्तमान शिक्षास वैज्ञानिक विचारधाराका विकास अधिक हो
४ यशोधरचरित्र-पद्मनाभ कायस्थ (सं० १४६१ चुका है। अतः बहुतसे नवशिक्षितांको इन कथाओंमे
के लगभग) निर्मित। [इसकी एक प्रति बीकानेर अतिरञ्जितपना एव अस्वाभाविकता नजर आयेगी,
में कुं. मोतीचन्दजी खजाँचीके मंग्रहमें है ग्रन्थपर कथाकारोंका उद्देश्य पवित्र था। उन्होंने अपने
प्रशस्ति महत्वकी है, उसको प्रतिलिपि हमारे अनुकूल वातावरण उपस्थित करने व लोकरुचिको
मग्रहमे है पर वह अभी पास नहीं होनेसे प्रभावित करनेके लिये ही मूलकथामे इधर-उधरकी
विशेष प्रकाश नहीं डाला जा सका] । बाते जोड़ भी दी हों तो वे क्षम्य ही समझी जानी ५ यशोधरचरित-वादिचन्द्रकृत मं० १६५७ चाहिए। ऐमी कई कथाओंको पढ़ते हुए जिस रूपमे अङ्कलेश्वर वे वर्णित है, कर्म-सिद्धान्तसे, उनका कई बाते मेल ६ यशोधरचरित्र-वासबसेन कृत नही खाती भी प्रतीत होती है; पर इस विषयपर ७ यशोधरचरित्र-पद्यनन्दिकृत विशेष विचार अधिकारी विद्वान ही कर सकते है। - यशोधरारत-सकलकीतिकृन
९ यशोधरचरित-(८ सग) सोमकीर्ति (मं० १५३६ मै स्वयं इस बातका अनुभव करता है कि प्रस्तुत
पो०व०५ मेवाड़ के गोढल्याम) रचित ।[इमकी लेखमे यशोधरके कथानकको लेकर विभिन्न ग्रन्थ
प्रति बीकानेरके अनूपमस्कृतलाइब्रेरीम ३३ कारोंने उममे क्या-क्या परिवर्तन एवं परिवर्तन किया
पत्रोंकी है। है, उसपर तुलनात्मक दृष्ट्रिसे विवेचन किया जाना आवश्यक था। इमी प्रकार इसी ढङ्गकी अन्य भी जो १० यशोधरचरित-जानकी (मृडबिद्री भ० पत्र १६ कथाये प्राप्त है उनका पारस्परिक प्रभाव भी स्पष्ट
श्लोक ३८०) कृन ।। किया जाता तो लेख बहुत उपयोगी होजाता. पर ११ यशाधरचरित-कल्याणकीति म०१४८८ (श्लोक अभी उसके लिये मुझे समय एव माधन प्राप्त नहीं .
१८५०) रचिन । [अनेकान्त वर्ष १ में उल्लेख है] है। अत: इस कार्यको किमी योग्य व्यक्तिकं लिये
१२ यशोधरचरित-ज्ञानकीर्ति म. १६५९ (ग्र० छोडकर यशोधर चरित्रों की सूची देकर ही लेख को
१४००) । वादिभूपण शि. समाप्त किया जारहा है । आशा है मेरं अधूरे कार्यको
१३ यशोधरचरित-ब्र नामदत्त (मं० १५७५) कोई विद्वान शीघ्र ही पूर्ण करनेका प्रयन करेंगे।
१४ यशोधर चरित-पूर्णदेव
१५ यशोधरचरित-मल्लिसन यशोधरचरित्र सम्बन्धी दिगम्बर साहित्य- १६ यशोधरचरित-श्रुतमागर (मभवत' टीका हो) मस्कृत
१७ यशाधरचरित-सवसेन १ यशोधरचरित्र-प्रभंजन (वि०८३५ पूर्व) मड- १८ यशोधरचरित-चारूकीति बिद्री भण्डार पत्र ४ श्लोक ३६ ।
इसपर श्रीदेवरचित पजिका एव अतसागरकी टीका प्राप्त हैं।