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________________ हमारे पूर्वज - पं० गोपालदासजी वरैया [ लेखक अयोध्याप्रसाद गोयलीय ] आर्यसमाज में जो स्थान स्वामी श्रद्धानन्द रायजादा हंसराज और मुस्लिभ कौममे सर मैयद अहमद का है वही स्थान जनसमाजमे पं० गोपालदासजी वग्याको प्राप्त है। जिस समय जैनसमाज अपने धम अनभिज्ञ मिध्यान्धकार में फंसा हुआ था, उसके चांगे और शिक्षा - प्रसारका उज्ज्वल प्रकाश फैल रहा था, और उसकी चकाचौधसे चुन्धियाकर इधर-उधर ठोकरें खा रहा था, तभी उसके हाथमे धमज्ञानका दीपक देकर वयाजीने उसे यथाथ मार्ग देखनेका अवसर दिया । आज जो जैन ममाजमे मटीफिकेट शुदा विद्वद्वर्ग नजर आ रहा है. उसमें अधिकांश उनके शिष्यों और प्रशिष्यांका ही समूह अधिक है। जीका आविभाव होनसे पूर्व भारत में धर्मशिक्षाप्रसार और सम्प्रदाय संरक्षणकी होड़ भी लगी हुई थी । श्रयममाज समूचे भारतमे ही नहीं, अरब, ईगनमे भी वैदिकमका मण्डा फहरानेका मनसूबा की चोट जाहिर कर रहा था; उसके गुरुकुल, महाविद्यालय, हाईस्कूल और कॉलेज पनवाड़ीकी दुकान की तरह नीव्रगति से खुलते जारहे थे। मुसलमानांक भी देवबन्दमे धार्मिक और अलीगढ़ मे राज्यशिक्षा प्रणालीके केन्द्र खुल चुके थे। ईसाइयोकी तो होड़ ही क्या, हर शहर में मिशन शिक्षा केन्द्रो का जालसाथि गया था। लाखोकी संख्यामे धार्मिक ट्रैक्ट वितरित ही नहीं हो रहे थे, अपितु वपित्समा दिया आरहा था। केवल अभागा जनसमाज विमियाना सा अकमण्य बना अलग-अलग खड़ा था। शायद अकलङ्क और समन्तभद्रकी श्रात्मा जेनसमाजकी इस दयनीय स्थितिसे द्रवीभूत हो गई और उन्होने अपना कज्ञान और शास्त्रार्थकी प्रतिभा देकर फिर एकबार जैनधर्मको दुन्दुभि बजानेको इस कृशकाय सलौने व्यकिको उत्साहित किया । याजीने जो अभूतपूर्व कार्य किया, भले ही हम काहिल शिष्यांद्वारा वह लिखा नहीं गया है. परन्तु उनके महत्वपूण काय माची आज आचार्य, तीथे, शास्त्री और पडित रूपमे समाज मे सर्वत्र देखने को मिलते हैं । हमारे यहां का प्रामाणिक जीवन-चरित्र नहीं, आचार्योंके कार्य-कलापकी तालिका नहीं, जैनसंघके लोकोपयोगी कार्योंकी कोई सूची नहीं, जंनगजाओ, मन्त्रियों, सेनानायकोंके बल पराक्रम और शासन प्रणालीका कोई लेखा नहीं माहित्यिक्ा कोई परिचय नहीं. और तो और हमारी कि सामने कल- परमो गुजरने वाले - दयाचन्द्र गोयलीय, बाश्रृ देवकुमार, जुगमन्दरदास जज्र, वैरिस्टर चम्पतराय, शीतलप्रसाद, बा० सूरजभान, अर्जुनलाल सेठी आदि विभूतियोंका जिक्र नहीं, और ये जो हमारे २-४ बड़े बड़े मौनकी चौखटपर बड़े है, इनसे भी हमने इनकी विपदाओं और अनुभवको नहीं सुना है । और शायद भविष्य मे एक पीढ़ीमें जन्म लेकर मर जाने वालों तक के लिये उल्लेख करने का हमारे समाजकी उत्साह नहीं होगा । मेरे होश सम्हालने - कार्य क्षेत्र मे आने से पूर्व ही बयाजो स्वर्गस्थ हो गये, न में उनके दानोका ही पुण्य प्राप्त कर सका, न उनके सम्बन्धमे ही विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सका। केवल एक लेख उनकी मृत्युउपरान्त शायद पं०भक्म्वनलाल जी न्यायालङ्कारका
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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