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किरण ३]
गांधीजीका पुण्य-स्तम्भ
राष्ट्रीय झण्डेके माथ सम्बन्धित होगए हैं। इसके को ही चुना। उममें कहा गया है कि मानो पृथ्वीन द्वारा नवीन भारतने एक प्रकारमे अपने आपको खम्भेके रूपमे श्राकाशकी और अपना ही एक हाथ अशोककी आत्माके माथ मिला दिया है।
ऊँचा उठा दिया। इन खम्भोंक बनाने और कई मौ मील दूर एक यनानी राजदतका गरुडध्वज लेजानेका कार्य भी एक बड़ी कठिन समस्या रही
बाहरसे आने वाले विदेशियोंने भी खम्भोंकी होगी। ये मब चुनारके गुलाबी पत्थरके बने हुआ है।
परम्पराको अपनाया। पहली शताब्दी ईसवी पूर्व पचाम-माठ फुट लम्बे पत्थरोंके बड़े टुकडोंको
हिलियोडोरम नामका एक यूनानी राजदूत मध्यभारत काटकर उन्हे तराशना, डौलियाना और मठिना
के राजाके पास आया था। यहाँ वह भागवत धर्ममे बहुत ही कठिन कार्य रहा होगा। उम ममय के
दीक्षित होगया और उमने विष्णुका बहुन सुन्दर इञ्जीनियर किनन परिश्रमसे चुनार या पाटलीपुत्रकी
गाडध्वज-स्तम्भ भेलमामे स्थापित किया। यह स्तम्भ केन्द्रीय शिल्पशालास सुदूर स्थानों तक इन्हें लेगये
नीचे अठकोना ऊपर सोलहकोना और फिर अन्तम इमका कुछ अनुमान हम सुलतान फिरोजशाह
गोल होगया है। इसका मम्तक पद्माकृति है। खम्भक तुग़लकके वर्णनमं लगा सकते है। उमने दिल्लीकी
निचले भागके एक पहलूपर लेख उत्कीर्ण है जिसमें अपनी राजधानीका मजाने के लिए अम्बाला जिले के
सत्य, दम और दान रूपी धर्मकी प्रशमा की गई है। टापग गाँवमे अशोकका ग्यम्भा उखाडकर यहाँ खड़ा किया। उसके लिये बयालीम पहियों की एक महरोलीका लोह-स्तम्भ गाडी बनाई गई, एक पहियेमे बंध हए रम्सको दोमो प्राचीन कीर्ति-स्तम्भीम एक बहुत अच्छा उदा. श्रादमी खींचते थे और खम्भक महित सारी गाडीके हरण महरोलीका लोह-स्तम्भ है । इमका लोहा बोभको १० श्रादमी ग्वीच रहे थे । खम्भको नीचं १५०० वर्षांसे धूप श्रीर मेहका मामना करते हा भी लानके लिये एक मईका पहाड बनाया गया और जगसे बिल्कुल अछूता रहा । हम स्मिथन 'धात. धीरे-धीरे नीचा करके गाडीके बराबर लाकर खम्भको निर्मागाकी कलाका करिश्मा' कहा है। आज भी उमपर लादा गया। वहाँम जब उमं जमुनाक किनारे ममारमे से कारखानोंकी मन्या थोड़ी ही है जो लाय तो कई बड़ी नावापर उसे लादा गया और फिर इतना बडा लोहका लट्रा ढाल मक। इम म्नम्भपर दिल्लीम उमका स्वागत किया गया। वहाँम फिर वह खुदा हुश्रा संस्कृतका लम्ब चन्द्र नामक गजाका है. ग्वम्भा फिरोजशाह कोटल तक लाकर एक ऊँच जिसने ४०० ई० क लगभग गह्राम बन्न नक ठिकानपर बड़ा किया गया। एमा करने लिए. उम
ममम्त देशको एकनाक मृत्रम बांध दिया था। ममयक बन्धानियोंने देशी ढङ्गम तैयार होनेवाले मम्भवतः यह मम्राट चन्द्रगत विक्रमादित्य थे. रम्म बाँस बल्लियोंका ठाठ और बालाकुपीका प्रयोग जिनका नाम भारतीय माहित्यक क्षेत्रम अमर है। किया। इसका वर्णन करने वाली न.कालीन पुस्तक गप्तकालीन विजय-स्तम्भ प्राप्त हुई है जा पुरातत्व विभागमे मानवाट प्रकाशिन
गुप्तकालम पत्थरके बने विजयम्नम्भकी परम्परा हो चुकी है।
और भी फैली। गाजीपुर के भीनग गांवमं स्कन्दगतसमुद्रगुप्तका स्तम्भ
का एक बम्भा मिला है जिसके लेम्बम लिया है कि अशोककं म्वम्भोंको बादमे भी लोगोन म्वृद्ध उन्होंने अपने भुज-दण्डोंकी शक्ति युद्धभांमम हुणोंपमन्द किया होगा । इमका एक उदाहरगा यह है कि से लोहा लेकर इम पृथ्वीको कम्पायमान कर दिया। गुम-वशके प्रतापी महागज ममुद्रगुमने अपनी गुप्त-काल के बाद भारत में अनेक प्रकारके म्तम्भ दिग्विजयका लेब लिम्बवाने के लिये अशोक स्वम्भं बनाये जाने लगे। विशेषकर गुफाओं और मन्दिरोंके