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अनकान्त
[वर्ष ९
RECENNA
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विलक्षण चमत्कार कह जासकते है । पत्थरके खम्भापर जो दमक है वह शीशेको भी मान करती है । मत्रही शताब्दीम टीमकारियंट नामक यात्राने दिल्ली । खम्भको नाका बना हुआ समझ लिया था। प्रसिद्ध इनिहाम-निखक श्री विन्मेण्ट म्मिथने लिम्बा है-"पन्थरका काम करने वालांकी निपुणता इन खम्भोंक निर्माणम अपनी पग्ण । पराकाष्ठाको पहुंच गई। थी और उन्होंने वह चमत्कार कर दिखाया जोश यद बीमवीं मदाकी शक्तिमे भी बाहर है । नीम-चालीम फुट लम्ब कंई पत्थरके खम्भोंपर बहुत ही बारीकीका काम हुआ है और ोमा प्रोप लगाया गया है जो अब किमी कारीगरकी शक्तिमें बाहर है।" मारनाथका सिंह-शीर्षक स्तम्भ
अशोक कालीन एक और म्नम्भ जो है लीडोरोम नामक स्थानपर स्थित है । इम कलाकी पराकाणाको सूचित करता है। वानस्वाइने भी लिखा है में लिखा है-"शैली और कारीगरी दोनों दृष्टियोंसे कि यह ग्वम्भा उम जगह लगाया गया था जहां बुद्धने यह मर्वोत्कृष्ट है। इमकी नकाशी भारतीय शिल्पम पहली बार अपने धर्मका उपदेश दिया। यह खम्भा अद्वितीय है और मेरे विचारमं प्राचीन समाग्मे मनर फुट ऊँचा था और इमकी दमक यशवकी कोई चीज इस क्षेत्रमे इममें बढ़कर नहीं बनी।" जैसी थी । अन्तिम बान श्राज भी ज्या-की-त्या मच्ची मारनाथका सिंहम्नम्भ और उमपर बना हुआ चक्र है। मर जान मार्शलने इस भारतीय कलाकी प्रशंमा. अब हमारी राष्ट्रीय मुद्रा और चक्रध्वज नामक