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________________ किरण ३ ] अशोककालीन ब्राह्मी लिपिका ही विकसित रूप है। लगभग २२०० वर्षोंसे अशोक के स्तम्भ देशके विभिन्न भागों मे खड़े हुए उसके यशको उजागर बनाते रहे है । अशोकके माढ़े छः सौ वर्ष बाद आने वाले चीनी यात्री फाहियानने छः खम्भोंका उल्लेख किया है, लेकिन सातवी शताब्दीम हर्षके समय मे आने वाले चीनी धर्म यात्री य्वान च्वाङ्गने अशोक के गांधीजीका पुण्य-स्तम्भ प्रयाग स्थित अशोक स्तम्भ ९५ पन्द्रह खम्भोंका आँखा देखा वर्णन लिखा है, जिनमें से कई अब नम्र हो चुके है। अब तक अशांशके शैलस्तम्भ निम्नलिखित स्थानोंमे मिल चुके है: - (१) टोपरा, जिला अम्बाला । (२) मेरठ। (३) इलाहाबाद । (४) कौशाम्बी । (५) लौरिया - अरराज | (६) लौरिया-नन्दनगढ़ ( सिंह- शीर्षक- युक्त) । (७) रामपुरवा । (८) साँची । (९) सारनाथ । (१०) विमा | (११) रुम्मिनि देई (वृद्धका जन्मस्थान ) । (१२) निगलीव | हो सकता है इनमें से अशोक से पहले कुछ क भी रहे हो, क्योंकि अपने लेख मे उसने एक जगह ऐसा मङ्केन किया है'जहाँ शिला यन्त्र या फलक से वहाँ यह धर्मलपि लिखवा दी जाय, जिसमे यह चिरस्थायी हो।" भौगोलिक बंटवारेकी दृष्टि भी अशोक के लेख विचारणीय है। उनसे कुछ तो बुद्ध पवित्र स्थानोंको सूचित करते है, जैसे कम्मिनिका स्थान, और कुछ उस समयकी बड़ी राजधानियों को जैसे साची, सारनाथ और कौशाम्बी आदि । उसके फैले हुए लिखोसे उसके राज्य और विस्तार की सीमा मिलनी है। सभव है ये सभी दृष्टिकोण सम्राट के मन में रहे हो । अशोक स्तम्भोंकी कला कलाकी दृष्टि से अशोक के स्वम्भे भारतीय कलाका एक
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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