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________________ अनेकान्त [ वषे ९ के मामन ईरानी सम्राट महान दाग प्रथमका उदाहरगा था जिमने तीन-तीन भाषाओंमे बडे-बड़े लेख बिहिस्तृन (प्राचीन भगम्थान अर्थात देवताओंका स्थान) और ममा (मस्कृत शृपा) आदि स्थानाम अपनी दिग्विजयका डट्का पीटनक लिये लिखवाय । व लंग्व: आज भी अम्निन्वमे हैं और दागकी हिमा और मारकाटम भरे हुए दिग्विजय चित्रका हमारे सामने लाने है । पर अशाककी विजय दुमरे प्रकारकी थी और उसके शब्दाम हम शियाकी श्राश्वम्न आत्माकी पुकार सुन सकते है। अशाकका श्रादश भविष्यके लिये है। दागका यज्ञ पर्गिमत किन्तु अशोकका अपरिमित है। अशोक मचे श्राम भारतीय संस्कृतिका पुत्र था। अशोक स्तम्भोंकी विशेषता भापा, लिपि और विपयकी दृष्टिम भी अशोक शिलालेख और स्तम्भलग्य अशोक स्तम्भ जो नन्दगढमे बना हुआ है। हमारे लिय शिक्षाप्रद है। उसने जननाकी बोलचालकी भापाको अपनाया। रिवाजांका पचड़ा नहीं था बल्कि जीवनको ऊँचा उमने अपने एक लेखमे कहा कि मैं ठेठ देहातक उठाने के लिय आत्मामे निकली हुई एक मीधी पुकार मनुप्योंके (जानपदम जनम) दशन करना चाहता है, थी जो सबकी समझमे श्राने योग्य थी। अशोकके उनका कुशल-प्रश्न प्रलना चाहता है और उन तक लेग्याकी दूसरी विशेषता उनकी ब्राह्मी लिपि है । उम अपने धार्मिक, उपदेश की आवाज पहुंचाना चाहता के अक्षर सुन्दर है और वह उम ममयकी राष्ट्रीय हैं। जैसा कि हम पहले कह चुके है, यह गति- लिपि थी। हमारी वनमान देवनागरी लिपि उमी
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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