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________________ अनकान्त [वप ९ लिए बहुत प्रकारके स्तम्भोंका उपयोग होने लगा। शरीर ममझा था। गाधीजीने भी जो कुछ कहा अजन्ताकी गुफाओम या एलोराक कैलाश मन्दिरमे वह उनके विचारोंका प्रत्यक्ष प्रतिनिधि होनके कारण अथवा चिदम्बरमक महम्र बम्भो वाल मण्डपमे हम उनका विचार-शरीर कहा जा मकता है। इमकी अनेक प्रकारकी कारीगरीस सुजित अच्छे अच्छे रक्षा और चिर-स्थिनिका प्रयत्न हमारा राष्ट्रीय खम्भ पाते है । इनकी . विविधता और ख्याको देखकर कहा जा सकता है कि भारतवर्ष कला क्षेत्रम म्तम्भोंका देश रहा है। स्तम्भोंकी निर्माण-कला कलाकी दृष्टिम सुन्दर . म्तम्भके नीन भाग होने चाहिए-अधिष्ठान या नीच- ! का भाग, दगड या बानका भाग और शीर्ष या परका भाग, इन नीनों के भी और । कितने ही अलरण कहे गये है। मध्यकालम प्रायः प्रत्येक बड़े मन्दिरके सामने एक स्वतन्त्र म्तम्भ या मान म्तम्भ बनाने की प्रथा चल पड़ी थी। किन्तु प्राचीन विजय-स्तमांकी पर पगम कीर्ति-स्तम्भ : भी बनने लगे थे जो पत्थरकी ऊंची मीनार कहे जा मकने है। चित्तौड़म राणा कुम्भाका कीर्ति-स्तम्भ इमी प्रकारकी वस्तु है और कलाकी एमे बहन ही आकर्षक है। ki:+24 गांधीजीका पुण्य-स्तम्भ बुद्धक उपदेशोंको उनके शिष्यान पीछे उनका धर्म चित्तोडका मामिद विजय स्तम्भ इसे राणा कुम्भान अपनी विजयके स्मारकमे बनवाया था।
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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