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________________ ६६ अनेकान्त [वर्ष - - सम्बन्ध है। निर्वाणस्थान कहना प्रारम्भ कर दिया हो। और बहुत मथुगके समीप ही चौरासी नामका स्थान है जहायर सम्भव है कि उक्त कल्पना या इसी तरहकी कोई अन्य बात एक विशाल जैन मन्दिर बना हुआ है। इसी स्थानको मथुरा या चौरासीकी निर्वाणभूमि-प्रसिद्धिका कारण बन जंबू स्यामीका निर्वाणस्थान कहा जाता है, परन्तु अन्वेषण गई हो; पं० राजमल के जंबूस्वामिचरित्रसे इतना तो निश्चित करने पर भी जंबूस्वामी के चौरासीपर निर्वाण प्राप्त करनेका है कि जम्बूस्वामीने मगधादि नगरियोमें विहार करते हुए कोई प्रामाणिक उल्लेख अभी तक मेरे देखने में नहीं धर्मोपदेश दिया था जैसाकि निम्न पद्योंसे प्रकट है:घाया। मालूम नहीं इस कल्पनाका क्या श्राधार है। प्रो० हागलाल जी एम० ए० ने अपनी जैन इतिहासकी विजहर्ष ततो भूमौ श्रतो गंधकुटी जिनः । पूर्वपीठिका और हमारा अभ्युत्थान' नामकी पुस्तकक ___मगधादि-महादेश-मथुरादि-पुरींस्तथा ॥११॥ पृष्ठ ८० में संयुक्तपानका परिची कराते हए जंबूस्वामीकी कुर्वन्धर्मापदेशं स केवलज्ञानलोचनः । घर्षाष्टदशपर्यन्तं स्थितस्तत्र जिनाधिपः ॥१२०॥ निर्वाणभूमि उक्त चोगसी स्थान घर यतलाई हैं। उनकी इस मान्यताका कारण भी प्रचलित मान्यता आन परन्तु जम्बूस्थामीका निर्वाण विपुलाचल या विपुल. पड़ती है । क्योंकि लेग्यमें किसी प्रमाणविशेषका उल्लेख्य गिरिसे ही बतलाया है. जो वर्तमान राजगिर के, जिसे पंचनहीं है। शैलपर भी कहते हैं, पंच पहाडोमें से प्रथम है । जैमाकि यद्यपि मथुग जैनियोंका पमिद्ध ऐतिहासिक स्थान है। निम्न पासे प्रकट है:यहाँके कंकाली टोलेमे प्राप्त मूर्तियाँ अाज मी जैनियों के सतो जगाम निर्वाणं केवली विपुलाचल्लात् । प्राचीन गौरवको उहीम कर रही है और जैनियोकी अतीत कर्माष्टका श्वतानंतसौख्यभाक् ॥१२॥ स्मृति के गौरवका प्रतीक हैं। उनकी वास्तुकला और महाकवि वीरने भी अपने अम्ब-स्वामी-चरितमें, मूर्तियोंकी प्रशान्तमद्रा भक्तिमार्गका निदर्शन कर रही जिसका रचनाकाल वि० सं० १०७६ है, जम्बूस्थामीका है। पंडित गजमल जीके जंबूस्वामिचरिन में, निसका रचना- निर्याणस्थान विपलाचल ही बतलाया है, जैसाकि उसकी काल १६३२ है, मथुग ५१४ दिगम्बर स्तूरों के होनेका १०वीं साधिके २४वें कडवकके निम्न अंशसे प्रकट :-- उल्लेख है और उनका जीणोद्धार अागरा निवासी साहू Hamar ह श्रार उनका जागणद्धार आगरा निवासा सा भव्वयण-चित्त-यरिय-कुतक्कू, अट्ठारह वरिसह जामथक्कु टोडरने कगया था। इन सब बातोसे जैनियोंके लिये मधुगकी nिs, "का विउल इरिसिहरि कम्यदृचंत, सिद्धालय-सासय-सोव्यव-पत्त महना गौरवकी वस्तु है । परन्तु वह निर्वाणभूमि यह मान्यता ठीक नहीं है। क्योंकि इसका समर्थन किसी प्राचीन ऊपर के जम्बूस्वामि-चरित ग्रन्थोके उल्लेखोपर से यही उपलब्ध प्रमाणसे नहीं होता। और या भी प्रायः निमित स्पष्ट जाना जाता है कि जम्बूस्वामीकी निर्वाणभूमि मथुरा है कि हम मान्यता के प्रचलित होनेका प्राधार या .. या चौरासी नहीं है किन्तु विपन गिरि है। यदि मधुगकी कब और किमने से जन्म दिया है। हाँ, यह हो सकता। निशेणभूमिकी मान्यता विक्रमकी ११वीं शताब्दी से कि जब अन्तिम केवली जम्बूस्वामी गंधकटी-सहित विहार १७वीं शताब्दी तक प्रचलित होती तो उसका उल्लेख करते हए मथुराके उद्यान में पधारे हो और वह अपने उक्त दोनों ग्रन्थकार अवश्य करते । किन्तु यह प्रचलित धर्मापदेश द्वारा जनताका कल्यागा किया हो और उनकी मान्यता १७वीं शताब्दीके बहुत बाद की है, इसीलिए पं. उम पवित्र यादगारमें कोई मन्दिर या स्तुप मनवा राजमलज ने उसका निर्देश तक नहीं किया। श्रतः मधुरा दिया गया हो और बादको उमी स्थानपर या उसके या चौगसीको निर्वाणभूमि कहना या मानना ठंक मालूम पास के स्थानमें; यह विशाल मन्दिर बनवाया गया नहीं होता। हो । तथा बाद में भ्रमसे जनताने से ही अंबूस्वाभीका ता. ११-१-४॥ बीरधामन्दिर सरसावा
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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