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________________ किरण १] आ० अनन्तवीय और उनकी सिद्धिविनिश्चय-टीका गूढमर्थमकलङ्कवाङ्मयागाधभूमिनिहितं तदर्थिनाम। प्रकरणों के मर्म और सिद्धविनिश्चटीका तथा प्रमाणसंग्रहव्यब्जयत्यमलमनन्तवीर्यवाकदीवतिरनिशंपदे पदे ॥३ भाष्यके रचयिता प्रस्तुत अनन्ववीर्य ही है। अर्थात्-'प्रकलदेवके गूढ पदोका प्रर्थ अनन्तवीर्यके विद्यानन्द भी प्रकन व्याख्याकार है और प्रभाबचन-प्रदीपद्वारा ही मैंने अबलोकित किया है। इन्हीं चन्द्र तथा वादिराज-द्वारा स्मृत होमेसे उनके पूर्ववर्ती है। वादिराजने उक्त विवरण के अन्त और पार्श्वनाथचरितमें लेकिन अनन्तवीर्य और विद्यानन्दमें पूर्ववती कौन है? अनन्तवीर्यको बन्दनारूपसे भी स्मृत किया। यथा- इसका पता अभीतक न तो अन्य साधनसे चना और विद्यानन्दमनन्तवीर्यसुखदं श्रीपूज्यपादं दया- इन दोनों विद्वानोंके ग्रन्थोंपरसे ही पता, क्योंकि यालं सन्मतिसागरं कनकसेनामध्यमभ्युद्यमी। एक दूसरेके साहित्यका एक दूसरेपर कोई प्रभाव नहीं जान शुद्धचन्नीतिनरेन्दसेनमकलहूं वादिराजं सदा पढ़ता । अनन्तबीयंने सिद्धिविनिमयटीकामें अनेक पूर्ववर्ती । श्रीमत्स्वामिसमन्तभद्रमतुलं वन्दे जिनेन्द्र मुदा। प्राचार्य और विद्वानों एवं ग्रन्थकारोंका नामोल्लेख किया -न्यायवि०बि०, प्रशस्ति श्लो. २। और जहां तहां उनके प्रन्यवाक्योंको भी उद्धत किया है। वन्दाभ्यनन्तवीर्याब्दं यद्वागमृतवृष्टिभिः । स्वामी समन्तभद्र, तत्वार्यसूत्रकार, पूज्यपाद, पाकेशरी जगजिधित्सन्निर्वाणःशून्यवादहताशनः ॥-पा०च०। धर्मकीर्ति, प्रज्ञाकर, धर्मोत्तर, कर्णक (कर्णकगोमि), प्रचंट __वादिराजके इन उल्लेखोंसे भी यही प्रकट है कि शान्तभद्र, कुमारित्र प्रमाकर, गाजकीर्ति, पाणिमि अनन्तवीर्य उनके पूर्ववर्ती विद्वान है। वादिराजने पार्श्वनाथ तत्वोपटलवकार भादिके नामोल्लेखपूर्वक वाक्य उद्धत किये चरितमें अपना समय शक सं० १५. (ई.१.२५) हैं। सिद्धसेनका भी नामोल्लेख है और सनके सम्मतिसन दिया है। अतः अनन्तवीर्य ११ वीं शताब्दीसे पहले के हैं। ग्रन्थकी तीसरे क रगत ५० वीं गाया भी उद्धत हो नकि प्रभाचन्द्र और वादिराज दोनों ही विद्वानोंने उन्हें २ सिद्धिविन्टीकामें निम्नप्रकारसे एक उल्लेख पाया है :-- अकलके वाहमयके पदोंका अर्थस्फोटक बतलाया । 'इमामेवार्थ समर्थयना प्राद-पाधत्तामित्यादि, और इसलिये इनके द्वारा स्मृत अनन्तवीर्य सिद्धिविनिश्चय नन्वयमोंऽनन्तर कारिका वृत्तायुक्तो न च पनस्तस्यैवाभिधाने टीका रचयिता अनन्तवीर्य ही हैं। इन्हीं अनन्तवीर्यने स एव सथितो नामानिप्रसङ्गात् । किन्त्वन्यस्माद्धेतो: अत्यन्त दुरूह प्रकलङ्कके प्रमाणसंग्रहपर भी टीका सचात्र नोक्तस्तस्मादुक्तार्थोऽनन्तर श्लोकोऽयमित्यनन्तवीयः। (भाष्य) लिखी है और जो सिद्धिविनिश्चयटीकासे पूर्वकी अस्यायमर्थ श्राधत्तमाद् व्यक्त। क्षणिकैकान्तस्वार्थउनकी रचना है। सिद्धिविनिश्चयटीकामें उसको देखने संविदिति....'-पृ० ६६ । 'लिये अनेक जगह' प्रेरणा कीबो उनका विद्यानन्दके इस उल्लेखमें 'इत्यनन्तवीयः' पदका प्रयोग विद्यानन्दमहोदय जैसा ही महत्वका विशिष्ट प्रन्य जान श्राया है। यदि वह अशुद्ध नहीं है और वह किसी व्यक्तिपड़ता है और जो भाज अनुपलब्ध है तथा उनकी विशेषका बोधक है तो मालूम होता है कि अनन्तवीर्यके + सिद्धविनिश्चयटीकामें ही उसके उल्लेख हैं। प्रतएव पहलेभी कोई अन्य तीसरे अनन्तवार्य होगये हैं और जिनके प्रभाचन्द्र और वादिराजके विवचित अनन्तवीर्य प्रकलंक मतको टीकामें टीकाकार अनन्तवीयने नामोन्लेख-पूर्चक १ 'इति चर्चितं प्रमाण संग्रहभाष्ये' पृ. १२, 'इत्युक्तं उद्धत किया है । यह विचारणीय है। ॥ लिलारे' पृ० १६, शेषमत्र प्रमाण संग्रहभायात् ३ 'स्वयूथ्योऽन्याह-सिद्धसेनेन कचित्तस्यासिद्धस्यावचनादप्रत्ययं पृ. ३६२। युक्तभेतदिति तेन कदाचिदेतत् (?) श्रुतं'प्रपञ्चस्तुवेदोक्तोग्रन्थगौरवान् प्रमाणसंग्रहभाध्याज्ज्ञेयः'पृ. "जे संतवायदोसे सकोलया भणंति संखाणं। १२१, प्रमाणसंग्रहभाये निरस्तम्' पृ० ११०३, 'दोषो संखा य असवाए तेसि सव्वे वि ते सच्चा ॥" रागादिप्ल्याक प्रमाणसंग्रहभाप्ये' पृ० १२२२ । -सिद्धिवि.टी.पृ.६३३ ।
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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